कुतुबुद्​दीन ऐबन ने रायपिथौरा में बनाया था कस्रे सफेद महल

1205 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने रायपिथौरा के किले में एक महल बनवाया था, जिसका नाम कस्रे सफेद पड़ा। इब्नबतूता ने इसकी बाबत लिखा है कि यह महल बड़ी मस्जिद के पास था, मगर अब उसका कोई पता नहीं चलता। इसी महल के मैदान में मलिक बख्तियार खिलजी, जो शाहबुद्दीन गोरी का सूबेदार था, हाथी से लड़ा था। इसी महल में शम्सुद्दीन अल्तमश और उसके पोते नासिरुद्दीन महमूद शाह तथा बलबन और दूसरे चंद बादशाहों की ताजपोशियां हुईं। फीरोज शाह खिलजी यद्यपि कैकबाद को कत्ल करके किलोखड़ी के किले में गद्दी पर बैठा था, मगर रिवाज के अनुसार ताजपोशी उसकी भी इसी महल में हुई। इसी प्रकार इसके भतीजे तथा वारिस अलाउद्दीन खिलजी की ताजपोशी भी यहीं ही हुई। इस प्रकार सात बादशाहों की ताजपोशी भी इसी महल में हुई। नासिरुद्दीन महमूद शाह के समय में (1259 ई.) हलाकू खां के राजदूत की आवभगत, इसी महल में हुई थी।

महमूद तुगलक की ताजपोशी भी उसके गद्दी पर बैठने के 40 रोज बाद इसी महल में हुई, यद्यपि वह गद्दी पर तुगलकाबाद में बैठा था। इस महल में ताजपोशियां ही नहीं होती रहीं, बल्कि इसमें बड़े-बड़े लोगों को कैद में भी रखा गया था। कभी-कभी इस महल में खून की नदियां भी वही हैं। मलिक बख्तियारुद्दीन को, जो मुईउद्दीन बहराम शाह का वजीर था. 1241 ई. में यहां कत्ल किया गया। जब कभी कोई खास सभा किसी कठिनाई के समय होती थी तो इसी जगह होती थी। बहराम शाह का जानशीन कैद में से निकालकर इस महल में लाया गया था और फिर कुश्के फीरोजी में सुलतान अलाउद्दीन मसऊद के नाम से उसकी ताजपोशी हुई थी। मगर जब से राजधानी यहां से तब्दील होकर नए शहर में ले जाई गई, इस महल की तबाही शुरू हो गई।

कुतुबुद्दीन ऐबक की वफात लाहौर में 1210 ई. में चौगान खेलते हुए घोड़े से गिरकर हुई । उसकी कब्र का पता नहीं लगता कि कहां बनवाई गई। यह चार वर्ष बादशाह रहा। वैसे उसने 24 वर्ष 6 माह हुकूमत की। उसके बाद उसका बेटा आराम शाह गद्दी पर बैठा। मगर वह वर्ष-भर भी हुकुमत न कर सका। अपनी कमजोरियों के कारण वह तख्त पर से उतार दिया गया। बेशक उसने अपने नाम का सिक्का जरूर चला दिया था। बदायूं के गवर्नर अल्तमश ने आराम शाह की मनमानी देखी और चारों ओर अराजकता दिखाई दी तो वह फौरन दिल्ली पहुंच गया और गद्दी को हथियाकर उसने आराम शाह को कत्ल करवा दिया।

अल्तमश लगातार हिंदू राजाओं से लड़ता रहा और भिन्न-भिन्न प्रदेशों को अपने अधीन करता रहा। जब वह मुलतान को फतह करने गया हुआ था तो वह बीमार हुआ और दिल्ली लाया गया। 1236 ई. उसकी मृत्यु हो गई। उसे मस्जिद कुव्वतुलइस्लाम में दफन किया गया।

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