फीरोज शाह ने दिल्ली के छठे शहर फीरोजाबाद की नींव रखी

मोहम्मद तुगलक के निस्संतान होने के कारण गद्दी पर बैठा भतीजा फीरोज शाह

मोहम्मद तुगलक के निस्संतान होने के कारण उसका भतीजा फीरोज शाह तुगलक 1351 ई. में गद्दी पर बैठा, जिसने 1388 ई. तक राज्य किया। फीरोज शाह का स्वभाव अपने चाचा से बिल्कुल भिन्न था गद्दी पर बैठकर सबसे पहले मुगलों से लड़ा और उन्हें परास्त किया। इसने दो बार बंगाल और सिंध की यात्रा की।

बंगाल से 1354 ई. में लौटकर इसने एक नए शहर फीरोजाबाद की बुनियाद डाली, जो दिल्ली का छठा मुस्लिम शहर था। इसने अपने शासन काल में जनता की भलाई के बहुत से काम किए और उन पर बेहदोहिसाब रुपया खर्च किया। फीरोजाबाद बसाने के दो वर्ष बाद बड़ा सख्त अकाल पड़ा। उससे रक्षा करने के लिए इसने यमुना और सतलुज से दो नहरें निकलवाई।

यह पहला बादशाह था, जिसने नदियों में से नहरें निकालने का काम किया। यद्यपि उस जमाने की नहरों का पता कहीं नहीं चलता, मगर अब भी उनमें से एक नहर थोड़ी तब्दीली के बाद पश्चिमी यमुना के नाम से काम कर रही है। इस बादशाह ने मालगुजारी का महकमा कायम किया और महसूल लगाए।

इतिहासकार फरिश्ते ने इसके शासन काल का हाल लिखते हुए बताया है कि इसने पचास बांध दरियाओं पर बंधवाए, चालीस मस्जिदें, तीस विद्यापीठ, सौ धर्मशालाएं, तीस हौज सौ हमाम और डेढ़ सौ पुल बनवाए। इसने अनेक शफाखाने खोले, सैकड़ों बाग लगवाए, एक सौ बाग तो दिल्ली शहर के गिर्द में ही लगवाए थे। अनेक पुरानी इमारतों की मरम्मत करवाई और नई इमारतें बनवाईं।

दरबारदारी के नियम भी इसने कायम किए, जिनको बाद में मुगलों ने भी अपनाया। इसने दरबार को तीन दर्जों में बांटा पहले दर्जे में आम लोग, दरमियानी दर्जा औसत दर्जे के लोगों के लिए और अंदर का दर्जा उमरा तथा वजीरों के लिए। इसको शिकार का भी बड़ा शौक था। इसने एक शिकारगाह की जगह पहाड़ी (रिज) पर बनवाई थी, जिसमें एक भव्य महल और दरबार भवन था, जिसकी छत पर एक बजने वाला घंटा लगाया गया था।

इसी जगह एक चिड़ियाघर भी बनाया था। इसके जमाने में मस्जिदें बहुत बड़ी संख्या में बनाई गई, जिनमें खास-खास इसके मशहूर वजीर खांजहां ने बनवाई थी। रिज पर चौबुर्जी मस्जिद, तुर्कमान दरवाजे के पास काली मस्जिद, कोटले की मस्जिद, निजामुद्दीन की दरगाह के पास की मस्जिद, काली सराय की मस्जिद, बेगमपुर की मस्जिद और खिड़की की मस्जिद- ये सात मस्जिदें वजीर ने बनवाई। कदम शरीफ की फसील और दरगाह रोशनचिराग दिल्ली इसी बादशाह के समय में बनीं। इसके जमाने में शहर की आबादी बहुत बढ़ गई। तब इसने एक नया शहर भी बसाया।

यद्यपि प्रजा इसके काम से बहुत खुश और खुशहाल थी, मगर यह कट्टर सुन्नी था और हिंदुओं को इसके जमाने में अपना धर्म पालन करने की पूरी आजादी नहीं थी। इसने कितने ही मंदिर तुड़वाकर मस्जिदें बनवाईं। हिंदुओं को धर्म परिवर्तन करने के लिए बाध्य भी किया जाता था और उन पर जजिया (धर्म कर) भी लगाया हुआ था। इसके जमाने में ही मुसलमानों की शक्ति डगमगाने लगी थी। इसके उत्तराधिकारियों ने तो उसे बिल्कुल ही खोखला कर दिया था। इसके जमाने में बहुत-से प्रांत इसके हाथ से निकल गए और जगह-जगह बगावतें हुई, मगर यह उन्हें दबा न सका। अंतिम अवस्था में इसने अपने राज्य का बहुत कुछ भार अपने वजीर खांजहां के ऊपर डाल दिया था और अपने बेटे फतह खां को राज्य के कार्यों में भागीदार बना लिया था। फतह खां के 1387 ई. में मर जाने से इसने अपने दूसरे बेटे मोहम्मद शाह को अपने साथ शामिल कर लिया था। आखिर चालीस वर्ष राज्य करके नब्बे वर्ष की आयु में (1388 ई.) इसका देहांत हुआ और अलाउद्दीन के हौज खास के किनारे इसे दफन किया गया।

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