उन्नीसवीं सदी के अंत में और बीसवीं सदी के प्रारंभ में भी कई पक्के थियेटर बने। इन थियेटरों में रामा थियेटर (जो बाद में मैजिस्टिक सिनेमा बना), बनारसी कृष्ण थियेटर (मोती टाकीज) और संगम थियेटर (संगम टाकीज) उल्लेखनीय हैं। इन थियेटरों में नाटक भी दिखाए जाते थे और इनमें शहर के लोग अपनी सभाएं आदि भी कर लेते थे। दिल्ली में स्थापित कुछ थियेट्रिकल कंपनियों या दिल्ली में जिन थियेट्रिकल कंपनियों ने नाटक मंचित किए उनके नाम नीचे दिए जा रहे हैं-

रॉयल थियेट्रिकल कंपनी ऑफ़ दिल्ली–1926 में बाबू मोहनलाल ने कायम की थी। दिल्ली और आसपास के श्रेष्ठ अभिनेता इसमें नियुक्त किए गए थे।

श्रीमती मंजरी थियेट्रिकल कंपनी ऑफ बंबई, दिल्ली— बाबू इफ्तिखार हुसैन ने 1930 में स्थापित की थी। चंपा बाई, आशा बाई और बिल्लो बाई इसकी प्रसिद्ध अभिनेत्रियां थीं। इसके तमाशे ‘श्रीमती मंजरी’ ने बड़ी ख्याति प्राप्त की थी। यह कंपनी रामा थियेटर में, जो फव्वारे पर स्थित था, तमाशे दिखाती थी।

न्यू इंपीरियल थियेट्रिकल कंपनी ऑफ दिल्ली, दिल्ली—इस कंपनी के मालिक अबुल हसन थे। 1927 में यह कंपनी बनाई गई थी। इसने अपना नाटक ‘तुर्की फ़रिश्ता उर्फ मज़लूम-ए-समरना’ मछलीवालान में स्थित संगम थियेटर में मंचित किया था। यह नाटक दिल्ली में बहुत लोकप्रिय हुआ।

एम्प्रेस थियेट्रिकल कम्पनी ऑफ बंबई, दिल्ली—इस कंपनी को मुंशी शराफत अली ने शुरू किया था। यह 1922 में स्थापित हुई थी। कंपनी सब पुराने खेल दिखाती थी। इसका अपना केवल एक तमाशा था, ‘फ़तह-ए-जंग’ जो ज्यादा सफल नहीं रहा। मिस धन्नो और मिस रेशम इसी कंपनी में काम करती थी।

पारसी अलेक्जैंडर एंड थियेट्रिकल कम्पनी ऑफ बंबई, दिल्ली—-इस कंपनी के मालिक मुहम्मद भाई पारसिया और हबीव भाई पारसिया थे, जो शक्ल में एक-दूसरे से इतने मिलते-जुलते थे कि पहचाने नहीं जाते थे। अपनी पहचान के लिए वे अपने सीनों पर भिन्न-भिन्न प्रकार के फूल लगाते थे। इस कंपनी का खेल ‘वतन’ बहुत लोकप्रिय हुआ। इस कंपनी का नाम बाद में मून अलेक्जेंडर थियेट्रिकल कंपनी हो गया था।

पंजाब थियेट्रिकल कंपनी ऑफ लाहौर, दिल्ली—-सैयद दिलावर शाह ने 1920 में क़ायम की थी। इस कंपनी ने चार नाटक पेश किए, जिनके नाम थे ‘बावफ़ा, क़ातिल’, ‘दर्द-ए-जिगर’, ‘नूर की पुतली’ और ‘यहूदी की लड़की। ये सब ड्रामे लोकप्रिय हुए।

राजस्थान वियेट्रिकल कंपनी ऑफ दिल्ली—1946 में कायम हुई थी। इसके मालिक बाबू मानक लाल थे, जिन्होंने खुद भी इसके लिए नाटक ‘सिपाही’ लिखा था। कंपनी ने परेड ग्राउंड पर एक कच्चा मंडवा बनवा रखा था और अपने तमाशे उसमें करती थी।

रॉयल इंडियन थियेट्रिकल कंपनी ऑफ दिल्ली–-इस कंपनी के मालिक बाबू रोशन लाल थे और यह 1938 में क़ायम हुई थी। उनका तमाशा ‘हिटलर’ जिसे 1939 के अंत में प्रस्तुत किया गया, काफी लोकप्रिय हुआ।

मिनर्वा थियेट्रिकल कंपनी ऑफ दिल्ली— हवीव सेठ और मुहम्मद सेठ ने रॉयल थियेट्रिकल कंपनी के बंद हो जाने के बाद शुरू की थी। सिर्फ़ एक तमाशे ‘जवानी की हवा” के सहारे कुछ दिनों तक चली। 1924 में बंद हो गई थी।

विक्टोरिया थियेट्रिकल कंपनी ऑफ दिल्ली—इस कंपनी के मालिक राजाराम मुजफ्फरपुरी थे और ये कंपनी 1919 में कायम हुई थी। शुरू में मारवाड़ी स्टाफ ज्यादा था, मगर 1920 में उर्दू स्टाफ ज़्यादा रखा गया। कंपनी का नाटक ‘खूनी तीर’ काफी लोकप्रिय हुआ। नाटक के रचनाकार अशरफ कसूरी थे।

इंटरनेशनल थियेट्रिकल कंपनी ऑफ़ इंडिया, दिल्ली—वजीरजान ने इसे 1917 में कायम किया था। यह महिला दिल्ली की ही थी। कंपनी के डायरेक्टर हाफिज मुहम्मद अय्यूब थे वजीरजान खुद इसमें काम करती थी यह कंपनी आमतौर पर पुराने नाटक दिखाती थी, मगर इसने एक नया तमाशा ‘इटली का फूल’ भी पेश किया। इस कंपनी में दो-तीन बार आग भी लगी, मगर वजीरजान हिम्मत न हारती थी और कंपनी को नए सिरे से शुरू कर देती थी।

शाइनिंग स्टार थियेट्रिकल कंपनी ऑफ़ इंडिया, दिल्ली—शीरीजान और उसके पति मुहम्मद हसन ने 1922 में क़ायम की थी। शीरीजान खुद स्टेज पर काम करती थी। इस कंपनी ने कई सफल नाटक प्रस्तुत किए जिनमें ‘लैला-मजनूं भी शामिल था।

वीनस थियेट्रिकल कंपनी ऑफ दिल्ली—एक ईसाई महिला मिसेज सिन्हा ने 1924 में क़ायम की थी। कंपनी के दो विशेष नाटक थे एक, असरफ कसूरी का लिखा हुआ ‘खूनी तीर’ और दूसरा, उसी लेखक का ‘खूनी दुलहन’।

युनाइटेड सिमेट्रिकल कंपनी ऑफ दिल्ली—इस कंपनी को अभिनेत्री चंदा बाई ने बाबू इफ्तिखार के साथ मिलकर कायम किया था। चंदा बाई बाबू इफ्तिखार हुसैन के साथ ही रहती थी। 1929 में इस कंपनी ने दिल्ली में कई अच्छे तमाशे दिखाए कंपनी में उस समय के चुने हुए अभिनेता और अभिनेत्रियां जुड़े थे।

आर्य समाज नाटक मंडली, दिल्ली—इस कंपनी को 1924 में सेठ मानक लाल ने स्थापित किया था। यह कंपनी आमतौर पर पुराने नाटक प्रस्तुत करती थी। मुश्किल से तीन वर्ष तक चली होंगी कि पूंजी की कमी के कारण बंद हो गई।

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