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दो-सुखने

दिल्ली में पहेलियों के अलावा ‘दो-सुखने’ कहने का रिवाज भी था। दो सुखने, जैसा कि नाम से जाहिर है, दो बातों पर आधारित होते थे, जिनका जवाब एक ही होता था। दो सुख़ने भी एक तरह से मानसिक विकास और मानसिक कसरत ही कराते थे। इनमें भी बच्चे और बड़े एक-सी दिलचस्पी लेते थे और हमजोलियों को बार-बार सुनाते थे। मगर दो-सुखनों को पहेलियों जैसी लोकप्रियता प्राप्त नहीं हुई और अब तो ये लगभग लुप्त ही हो गए हैं। कुछ दो सुखने जो दिल्ली में बहुत लोकप्रिय थे, देखिए-

दही क्यों न जमा, नौकर क्यों न रखा? —- जामिन न था
बाम्हन प्यासा क्यों, गधा उदासा क्यों? —–लोटा न था
जूता क्यों न पहना, समोसा क्यों न खाया? ——-तला न था
गोश्त क्यों न खाया, डोंग क्यों न गाया? ——–गला न था
अनार क्यों न चखा, वजीर क्यों न रखा? ——–दाना न था
घोड़ा अड़ा क्यों, पान सड़ा क्यों?————-फेरा न था

मुकरियां

इनमें स्त्रियों की भाषा में द्वयर्थक बात बयान की जाती है, जिसमें एक से प्रेमी अभिप्रेत होता था और दूसरी से कुछ और उन्हें किले की बेगमात की जबान में सखियां और मुकरियां भी कहते थे। कुछ लोकप्रिय मुकरियां देखिए-

  1. इस बन मुझको चैन न आवे
    वह मेरी टीस आन बुझावे
    हाय वे सब गुन बारह आनी
    ए सखि साजन? ना सखि पानी
  2. इक साजन वह खड़ा पियारा
    जा से घर मोरा भया उजारा
  3. मुख मोरा चूमत दिन रात
    होंटन लगत कहे ना बात
    जा से मोरी जग में पात
    ऐ सखि साजन? ना सखि हाथ

4 अति सुरंग है रंग रंगीले
अरु गुणवंत बहुत मटकीले

राम भजन बिन कभी न सोता
ऐ सखि साजन ? ना सखि तोता

बुझव्वल

हालांकि पहेली का दूसरा नाम बुझव्वल या बुझारत है, कई ऐसी पहेलियां जिनके बारे में दिमाग़ पर ज्यादा जोर देकर कुछ हिसाब-किताब लगाना पड़ता था बुझब्बल के तहत आती हैं। बुझव्वल के ये बढ़िया नमूने देखिए-

हम्मा बेटी तुम्मा बेटी चली बाग को जाएं
तीन नींबू तोड़ के साजे साजे खाएं

एक आदमी है और एक औरत। औरत कपास बीन रही है। आदमी औरत से कहता है-

बीनन वाली बीन कपास
तेरी मेरी एक ही सास,

बताओ उस आदमी का औरत से क्या रिश्ता है। जवाब है—————- (सलहज और ननदोई का)

बेजोड़ टुकड़े
लोगों ने सबको हंसाने के लिए अनमोल-बेजोड़ टुकड़े गढ़ रखे थे। जैसे-

1—-एक अचरज में ऐसा देखा बिल्ली चाबे पान

पूरा बजाए ढोलकी, मेंढक तोड़े तान

2–चींटी चड़ी पहाड़ पर लप लप गूलर खाए

मारा डंडा, गिरी गाजरें मर्दगन के खेत
दादी मां बच्चों की भाषा में शक्ति पैदा करने के लिए तरह तरह के टुकड़े सुनातीं, जैसे—–

छज्जू के छोटे की छोरी ने छज्जे पर छत से छछूंदर छोड़ दी।
चंदू के चाचा ने चंदू की चाची को चांदी के चम्मच से चटनी चटाई
कुछ ऊट ऊंचा कुछ पूंछ ऊंची कुछ पूंछ ऊंची उस ऊंट की

बच्चों से कहा जाता है कि इन वाक्यों को जल्दी-जल्दी सुनाओ। लेकिन बच्चे इन वाक्यों की आसानी से तुकबंदी न लगा पाते। जब किसी से कोई गलती होती या बोलते-बोलते जवान अटकती तो उसकी खूब हंसी उड़ाई जाती।

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