न वकालत, न लेक्चरर बनने का सपना — देव आनंद ने चुना मुश्किल रास्ता, झेला संघर्ष और बन गए बॉलीवुड के पहले ग्लैमरस हीरो
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
Dev Anand: देव आनंद ने अंग्रेजी साहित्य से बी.ए. ऑनर्स किया। लेकिन वह लेक्चरर नहीं बनना चाहते थे। इसी दौर में देव के बड़े भाई चेतन आनंद भी देहरादून छोड़कर बंबई में जमने का प्रयास कर रहे थे। चेतन नाट्य संस्था इप्टा से जुड़े हुए थे, इसलिए ख्वाजा अहमद अब्बास और अन्य लेखकों से देव को भी नजदीकियां हासिल हो गईं थी।
मोतीलाल उनके पड़ोसी थे। लेकिन देव आनंद अपने बलबूते पर कुछ कर दिखाना चाहते थे। अपने एक दोस्त के साथ परेल की ‘चाल’ में रहने लगे। यहीं कुछ नाटकों में भी काम किया, लेकिन यह संघर्षों का दौर था। इसी दौर को तोड़ने के लिए देव को 165 रुपए महीने की सैनिक डाक सेवा के सेंसर में नौकरी की।
काम था सैनिकों की डाक खोलना और पढ़ना।
देव स्वयं कहते हैं ‘मैं फिल्मों में नायक बनने के इरादे से ही बंबई आया था। यही मेरा सपना था। मेरे पिताजी गुरदासपुर के नामी वकील थे। मुझे अँगरेजी में बी.ए. ऑनर्स करने का नाज अब भी है।
लेकिन, मैं परिवार की परंपरा से हटकर बंबई आया था। मैं अपने बूते पर कुछ बनना चाहता था और इसके लिए कमर कस चुका था।’

इस तरह मिला पहला ब्रेक
आखिरकार मेहनत रंग लाई। सपना साकार हुआ। देव आनंद पूना में प्रभात स्टूडियो की फिल्म ‘हम एक हैं‘
के लिए स्क्रीन टेस्ट में सफल हो गए। नायक की भूमिका के लिए चुन लिए जाने पर वे पूना से बंबई पहुँचे, तो उत्तेजना की वजह से तेज बुखार हो आया था। ‘हम एक हैं’ के सैट पर धोती पहनकर जब देव आनंद आए तब किसे पता था इस तरह भविष्य के जबदरस्त ग्लैमरस हीरो का पदार्पण हो रहा है। लेकिन सचाई यही थी। इस फिल्म में देव की नायिका थी कमला कोटनीस, जबकि माँ की भूमिका दुर्गा खोटे ने निभाई थी।
देव आनंद ने पहली बार कैमरे का सामना करने के अनुभव के बारे में एक साक्षात्कार में कहा था ‘मैं घबरा जरूर रहा था, पर हौसला बनाए रखा। अभिनेता बनने का कोई प्रशिक्षण तो लिया नहीं था। इसलिए मेरा तरीका काम करने और गलतियाँ सुधारने का था।
चढ़ती उम्र का जोश था और उसमें कुछ भी नामुमकिन नहीं लगता था। दुर्गा खोटे मेरा उत्साह बढ़ाती रहती थीं। सबसे बड़ी बात तो भी चार सौ रुपए माहवार का वेतन। मैं अपने को किसी शहजादे से कम नहीं समझ रहा था।‘
सन् 1947 में प्रदर्शित हुई हम एक हैं की लागत दस लाख रुपए प्रचारित की गई थी, जो कि उन दिनों दिमाग चकरा देने वाली राशि थी।
- पढ़िए 1857 की क्रांति से पहले दिल्ली का इतिहास, कैसे रसोई तक बहतीं थीं नहरें
- स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती ने बताया ईश्वर को कैसे पाएं?
- पढ़ें दिल्ली के 4000 साल पुराने राजनैतिक उतार-चढ़ाव की अनकही गाथा
- IIT Delhi: पेट में जाने वाली माइक्रोरोबोटिक गोली से अब आंत के बैक्टीरिया की होगी सटीक जाँच!
- भारत छोड़ो आंदोलन: अगस्त 1942 में कैसे सुलग उठी दिल्ली, गोलीकांड, कर्फ्यू और आगजनी की अनसुनी कहानी Exclusive Report






