शम्मसुद्दीन अल्तमश ने तीन लड़के और एक लड़की छोड़ी लड़की का नाम रजिया था। तख्त पर बैठा बड़ा लड़का रुकनुद्दीन। मगर यह अय्याश निकला। सात महीने के बाद ही उसे तख्त से उतार दिया गया। सात महीने में ही उसने इस कदर ऊधम मचाया कि रिआया उससे तंग आ गई। सारा काम-काज इसने अपनी मां के सुपुर्द कर रखा था। वह बड़ी कपटी थी। गर्ज कि उसके सौतेले भाई मारे गए और वह खुद अपनी मां के साथ कैद किया गया। कैद ही में 1237 ई. में ये दोनों मर गए और मौजा मलकपुर में दफन किए गए, जहां सुलतान गारी का मकबरा है। 1238 ई. में इनका मकबरा बनाया गया। रुकनुद्दीन की जगह रजिया बेगनम को गद्दी पर बैठाया गया।

रजिया बेगम 1236 ई. से 1239 ई. तक हुक्मरां रही। वह बहुत बुद्धिमान थी। मुस्लिम काल में यह एक ही मिसाल है कि एक औरत ने हुकूमत की। वह मरदाना लिबास पहनती थी और किसी की परवाह नहीं करती थी। खुद रोज तख्त पर बैठती और अदालत करती थी। गो नूरजहां ने भी एक तरह से हुकूमत की, वह जहांगीर के साए के नीचे, खुद मुख्तारी से नहीं यह बहुत बहादुर औरत थी। मगर यह एक हब्शी के साथ शादी करना चाहती थी। इस पर इसके उमरा इससे नाराज हो गए और बगावत कर दी। हब्शी मारा गया और रजिया ने एक अमीर से शादी कर ली जिसने उसका साथ दिया था। मगर दोनों गिरफ्तार हो गए और दोनों को कैथल के पास (जिला करनाल) 1239 ई. में कत्ल कर दिया गया और रजिया का भाई मुइउद्दीन बहराम शाह तख्त पर बैठा।

इब्नबतूता ने रजिया बेगम के कत्ल के बारे में लिखा है कि इसे एक काश्तकार से कत्ल करवाया गया, जो उसे कत्ल करके और दफनाने के बाद उसके चंद कपड़े बाजार में बेचने ले गया, मगर वहां वह पकड़ा गया और मुसिफ के सामने पेश किया गया। उसने इकबाले जुर्म किया और दफन करने की जगह का पता बता दिया। वहां से उसकी लाश को निकालकर स्नान कराने और कफन पहनाने के बाद उसी स्थान में दफना दिया गया। उसकी कब्र पर एक छोटा-सा मकबरा बनाया गया। जिसे दर्शक देखने जाते हैं और इसे पवित्र स्थान मानते हैं। मकबरा उसके भाई मुझउद्दीन बहराम शाह ने बनवाया बताते हैं। यह एक अहाते के अंदर बनाया गया है, जो 35 मुरब्बा फुट है और लाल पत्थर का है। इसकी ऊंचाई आठ फुट तीन इंच है। दरवाजा भी लाल पत्थर का बनाया गया है, जो सवा छह फुट ऊंचा है। अहाते में पश्चिम की ओर की दीवार में एक मस्जिद है। अहाते के उत्तर में लाल पत्थर के एक चबूतरे पर पत्थर चूने की दो कब्रें बनी हैं। इनमें से एक के सिरहाने एक पक्का स्तंभ है, जो डेढ़ फुट ऊंचा है, जिस पर दीपक जलता था। यह रजिया की कब्र है। दूसरी उसकी छोटी बहन की बताई जाती है जिसका नाम साजिया बेगम था। कब्रें जमीन से करीब साढ़े तीन फुट ऊंची और आठ फुट लंबी हैं। दक्षिण-पूर्व के कोने में दो नामालूम करें और हैं।

रजिया बेगम तुर्कमान दरवाजे के पास अंदर एक गली में जाकर दफन की गई। कहते हैं, इसकी कब्र 1240 ई. में युमना नदी के किनारे बनाई गई थी। शायद उस जमाने में यमुना की धारा वहां बहती हो।

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