हाइलाइट्स
- वैज्ञानिकों को मिली बड़ी सफलता, दिल्ली के अरावली बायोडाइवर्सिटी पार्क में खिला फूल
- बायोडायवर्सिटी पार्क में कई पक्षी 80-90 साल बाद दिखे
- दक्षिणी दिल्ली के बड़े भूभाग का भूमिगत जलस्तर बढ़ाने में मददगार साबित हुआ पार्क
वसंत विहार मेट्रो स्टेशन से दूतावासों का जो सिलसिला शुरू होता है वह अगले डेढ़ किलोमीटर के ज्यादा दूरी तक चौड़ी सड़क पर जारी रहता है। आरबीआई अधिकारियों के आवास तक पहुंचते ही दूर से दिखता अरावली बायो डायवर्सिटी पार्क का गेट प्रकृति प्रेमियों के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए काफी होता है। गेट पर हवा संग झूमती पेड़ों की शाखाएं मानों आगंतुकों का स्वागत करती है। दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहर में शुमार दिल्ली के एक कोने पर अरावली बायो डाइवर्सिटी पार्क की अप्रतिम छटा को शब्दों में पिरोना मुश्किल है। माइनिंग की काली छाया से होते हुए जो रास्ता अरावली बायो डायवर्सिटी ले जाता है वह एक रोमांचक सफर का एहसास कराता है। पार्क में एक हजार से अधिक किस्म के पेड़-पौधे लगाकर इस पथरीली पहाड़ियों को को खूबसूरत जंगल के रूप में तैयार किया गया है। जहां कहीं रंग बिरंगी तितलियों का समूह दिखाई देता है तो कहीं मोर, सेही, खरहा। प्रकृति की गोद में सांप, स्तनधारी जीवों का यह बसेरा ना केवल मानव प्रकृति के बेहतरीन तालमेल का उदाहरण बन चुका है बल्कि दिल्ली की आबोहवा स्वच्छ रखने और भूमिगत जल के संरक्षण में भी महती भूमिका अदा कर रहा है। शायद यही कारण है कि यहां कई पक्षी 70 सालों बाद दिखे है। जबकि पहली बार हिम क्षेत्रों में पेड़ों पर उगने वाला पौधा भी इस बार गर्मी में यहां उगा है। औषधीय पौधे की विविधता ज्ञानवर्धक है। प्रतिवर्ष 50 हजार बच्चों को जैव परिस्थिति संतुलन का पाठ पढ़ाते इस बायो डाइवर्सिटी पार्क में खूबियों की भरमार है। इस आर्टिकल में हम अरावली बायो डाइवर्सिटी पार्क के सफर पर आपको ले चलेंगे।
पहली बार खिला फॉक्सटेल ऑर्किड
अरावली बायोडाइवर्सिटी पार्क के इकोलॉजिस्ट एवं साइंटिस्ट इंचार्ज डॉ. एम शाह हुसैन कहते हैं कि इस पार्क को इस तरह से तैयार किया गया है जिसमें जंगली जानवरों को प्राकृतिक माहौल प्रदान किया जा सके। यहां ऑर्किड कंजर्वेटरी में पहली बार हिम क्षेत्रों में पाए जाने वाले फॉक्सटेल ऑर्किड लगाए गए। ये फूल हिम क्षेत्रों में दिखते हैं। दरअसल, ये हिम क्षेत्रों में पेड़ों पर उगते हैं एवं फिर इनकी जड़े पेड़ के तनों पर फैलती हैं। इनके लिए 20 डिग्री से कम तापमान चाहिए होता है। इसके लिए अरावली बायो डाइवर्सिटी पार्क में 20 फूट से ज्यादा गहरे स्थान पर नमी वाले जगह पर इन्हें लगाया गया है। पहली बार इसके फूल खिले हैं जो शुभ संकेत है। यहां साथ ही कत्था, लीकन फलोमा, कपूर, आख, एजेरेटम, लैटना केमा, मिस्वाक, गुग्गल, इंद्राजु जैसे पौधे भी है। यही नहीं यहां कई ऐसे पौधे भी है जो प्रदूषण का माप भी बताते हैं। दरअसल,अगर इन पौधों में फूल खिलता है तो यह माना जाता है कि पर्यावरण दुरूस्त है अन्यथा खतरनाक।
90 साल बाद दिखे पक्षी
डॉ. हुसैन कहते हैं डीडीए के मास्टर प्लान में वन क्षेत्र डेवलप करना था। जिसके तहत यह विकसित किया गया। 2004 में इसे शुरू किया गया। अरावली एक रेस्टोरेशन है यानी जो पहले था उसे दोबारा वापस लेना था। यहां वन क्षेत्र बढ़ने से जानवर, पक्षी अपना आवास बनाए। दरअसल, वन क्षेत्र बढ़ने की वजह से कीटों की संख्या में बढ़ोतरी हुई। जब खाद्य श्रृंखला उपलब्ध हुई तो वो पक्षी भी दोबारा लौटे जो सालों पहले चले गए थे। तभी तो ब्लैक ईगल 90 वर्ष बाद दिखाई दिए हैं। ये पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ने की वजह से दिल्ली छोड़ बाहर चले गए थे। इसके अलावा 70 वर्ष पूर्व यहां से गायब हुए इंडियन पिट्टा यानी नवरत्न और 20 वर्ष पूर्व गायब हुए पाइड हॉर्नबिल भी वापस आ गए हैं।
भूमिगत जल स्तर बढ़ाने में मददगार
692 एकड़ क्षेत्रफल में फैले इस पार्क को विकसित करने का काम 10 वर्ष पहले शुरू किया गया था। इस काम में दिल्ली विश्र्वविद्यालय के सेंटर फॉर एंवायरमेंटल मैनेजमेंट ऑफ डिग्रेटेड ईको सिस्टम (सीईएमडीई) ने तकनीकी सहायता प्रदान की है। बारिश का 90 प्रतिशत पानी अब यहां पर धरती में अवशोषित हो जाता है जिससे भूमिगत जलस्तर को मेंटेन रखने में मदद मिल रही है। वैज्ञानिकों की मानें तो इतने बड़े वन क्षेत्र की वजह से आसपास के कई इलाकों में भूमिगत जलस्तर मेटेन रहता है।
50 हजार छात्रों की पाठशाला
डॉ हुसैन कहते हैं कि पार्क को सीमित संख्या में और विशेषज्ञों की निगरानी में भ्रमण के लिए खोला गया है। अभी स्कूली छात्र-छात्राएं, डीयू के छात्र-छात्राओं के अलावा आरडब्ल्यूए के समूह, शैक्षिक भ्रमण पर आए लोगों के समूह को विशेषज्ञों की निगरानी में पार्क का भ्रमण कराया जाता है। प्रतिवर्ष करीब 50 हजार छात्र-छात्राएं यहां भ्रमण करते हैं। बच्चे यहां तितली, ऑर्किड, औषधीय पौधों के बारे में जानकारी हासिल करते हैं।
हर मर्ज की दवा औषधीय पौधे
औषधीय———उपयोग
बटरकप फ्लावर–कैंसर, टयूमर, त्वचा जलने।
पत्थरचट्टा—-किडनी स्टोन,लीवर डिस्आर्डर, आर्थाराइटिस, घाव, मोच,प्रदर, हैजा,बवासीर
सतावर-शांति प्रदान करने, डायरिया में लाभदायक।
ऑयस्टर प्लांट- फीवर कॅफ और ब्रोंकाइटिस
कांटेदार नागफनी- मधुमेह, लिपिड डिसआर्डर, सूजन, अल्सर।
लीक–कीट कांटना, आंत के कीड़े, समयपूर्व बुढ़ापा
कॉलमेग–मलेरिया, टाइफाइड, बुखार, भूख की कमी।
वज्रदंती–पत्तियां-बुखार और दांत दर्द, जड़-फोड़े, छाल-खांसी
ब्रम्हबुटी–पत्तियों का रस दिमाग दुरूस्त रखने, पेचिश में
लेमन ग्रास–ब्रोंकाइटिस, कुष्ठ रोग, मिर्गी, गैस,हैजा, नसों का दर्द
मलकांगनी–याददाश्त तेज करने, बाल झड़ने, डायरिया आदि।
सार्वज्जया–सेवन से शांति।
केओरा–टयूमर, कुष्ठ रोग, चेचक, खुजली, शरीर की गर्मी।
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पार्क की खासियत
-पार्क में 18 प्रकार के सरीसृप है। जिसमें कोबरा, करैत, वाइपर व कॉमन क्रेट शामिल हैं।
– पक्षियों की 192 स्पेसीज हैं जो पहले सिर्फ 40 थीं।
– तितलियों की 113 स्पेसीज हैं जो पहले मात्र 25 थीं। इनमें प्रमुख रूप से प्लेन टाइगर, रेड पीरियोट, ग्रास येलो, लाइम बटरफ्लाइ, लेमन पेंजी, पीकॉक पेंजी, सिल्वर लाइन व लेपर्ड बटरफ्लाई शामिल हैं।
– स्तनधारियों के 18 स्पेसीज।
– कत्था, लीकन फलोमा, कपूर, आख, एजेरेटम, लैटना केमा आदि पौधे भी लगाए गए हैं।
– बटरफ्लाई कंजर्वेटरी में ऐसे पौधे लगाए गए हैं जिनसे आकर्षित होकर हजारों की संख्या में यहां तितलियां आती हैं।
-नील गाय, सेही, सियार, मोर, गीदड़, ऊदबिलाव, उल्लू, सीवेट कैट, ,खरहा आदि बड़ी संख्या में पार्क में हैं।
– मिस्वाक, गुग्गल, इंद्राजु, देसी सदर, देसी कीकर यानी बबूल, खेजरी, तलाई, धाऊ, ढाक यानी फ्लेम ऑफ फॉरेस्ट, खैर।
दिल्ली के ये पेड़ भी मौजूद
हरसिंगार, गूंजा, आमदा, कारी, कुडा, दायरा, दूधी, खजूरी, हिंगोट, मेदसिंगी, आकाशनीम, रोहेदा, सेमल, लसोढ़ा, दही पलाश, गूंदी, पनिया, चमरौद, सलाई, आम्ती, कनियार, झिंझेरी, कचनार, अमलतास, अंजन, इमली, केर, बरना, कंकेरा, गनियार, चकवा, धावड़ा, धाऊ, अर्जुन, बहेड़ा, बिस्तेंदू, कमला, ठोर, टुमरी, पलाश, शीशम, तिनसा, तोता, हदुआ, मिलेतिया, करंज, आर्नी, गमहर, मरोदफली, कुलू, नीम, चुकरस्सी, बकैन, खैर, रोंझ, फलाही, बबूल, कुम्मथ, कृष्ण सिरीश, सिरास, बासा, दून सिरास, बिलाट्री, खेजड़ी, बधाल, जड़ी, पीपली, बरगद, कटुंबर, उस्बा, सोन पाकड़, अंजीरी, गूलर, पीपल, पिलखन, तूत, दहिया, सोंजना, जामुन, कसाई, आमला, बेर, पपड़ा, कैम, आल, कातुल, बेल, भीरा, कैथा, बिलांगदा, बिल्सा, खबर, पीलू, कोसम, महुआ, खिरनी, उल्लू, झाऊ, खिर्क, चुड़ैल पापड़ी।
तितलियों के प्रकार
ब्राउन आउल, कॉमन बैंडेड आउल, इंडियन स्किपर, कंच्वाइंड स्विफ्ट, इंडियन पॉम बॉब, राइस स्विफ्ट, कॉमन पाइरेट, कॉमन सिल्वरलाइन, डार्क ग्रास ब्लू, डल बबूल ब्लू, फॉर्गेट मी नॉट, ग्रास च्वेल, इंडियन रेड फ्लैश, पेल ग्रास ब्लू, पी ब्ल, रेड पिरेट, राउंडेड पिरेट, टाइनी ग्रास ब्लू, जेब्रा ब्लू, ब्राइट बबूल ब्लू, ब्लू पैंजी, ब्लू टाइगर, चॉकलेट पैंजी, कॉमन बुशब्राउन, कॉमन कैस्टर, कॉमन क्रो, कॉमन इवनिंग ब्राउन, कॉमन थ्री रिंग, कॉमन लेपर्ड, डेनैड एगफ्लाई, डार्क इविनिंग ब्राउन, ग्लासी टाइगर, ग्रेट एगफ्लाई, लेमन पैंजी, पेंटेड लेडी आदि।
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