UP के पूर्व DGP ओपी सिंह ने लिखी अपनी बायोग्राफी
पूर्व डीजीपी ने योगी की तारीफ में पढ़े कसीदे, मायावती को घेरा
उत्तर प्रदेश की राजनीति इतिहास में ‘गेस्ट हाउस कांड’ वो कालिख है, जिसके दाग कभी नहीं धूल पाएंगे। आज भी यूपी की राजनीति उस घटना से उबर नहीं पायी है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एक बार फिर गेस्ट हाउस कांड का जिन्न बाहर आया है। दरअसल, उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक (UP DGP) ने अपने संस्मरणों पर आधारित एक किताब लिखी है। ओपी सिंह वही अधिकारी है जो गेस्ट हाउस कांड के समय तैनात थे। किताब का नाम ‘क्राइम, ग्रिम एंड गम्प्शन: केस फाइल्स ऑफ एन आईपीएस ऑफिसर’’ रखा गया है।
ओपी सिंह ने अपनी पुस्तक में गेस्ट हाउस कांड के बारे में विस्तार से लिखा है। मूलरूप से बिहार के गया निवासी ओपी सिंह पुलिस में अपनी 37 साल की सेवा के बाद जनवरी 2020 में रिटायर्ड हुए थे। सर्विस के दौरान उन्होंने दो केंद्रीय बलों सीआईएसएफ और एनडीआरएफ का भी नेतृत्व किया था।
किताब में ‘सुनामी वर्ष’ नामक अध्याय गेस्ट हाउस कांड पर ही केंद्रित है। सिंह ने इस घटना को आधुनिक भारत के इतिहास में एक ‘अशोभनीय’ राजनीतिक नाटक करार दिया है। वो लिखते हैं कि 2 जून 1995 को घटित हुई इस घटना ने यूपी की सियासत ही नहीं बल्कि देश की राजनीति की दिशा और दशा को भी पूरी तरह से बदल दी। इस दिन को सिंह कभी नहीं भूल सकते, क्योंकि इसी दिन उन्होंने लखनऊ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) का कार्यभार संभाला था।
सिलसिलेवार ब्यौरा
सिंह के पास दोपहर करीब दो बजे मीरा बाई मार्ग पर स्थित गेस्ट हाउस में कुछ ‘गैरकानूनी तत्वों द्वारा गड़बड़ी’ को लेकर पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ने फोन किया। वह शाम में सवा पांच बजे के आसपास जिलाधिकारी व अन्य अधिकारियों के साथ मौके पर पहुंचे। उन्हें पता चला कि सुइट संख्या 1 और 2 में उस समय मायावती रह रही हैं। वह गेस्टहाउस में अपने विधायकों से मुलाकात कर रही थीं। क्योंकि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली सरकार से समर्थन वापस ले लिया है।
सिंह लिखते हैं कि गेस्ट हाउस की ‘बिजली आपूर्ति बंद होने और टेलीफोन लाइनें काट दिए जाने के कारण स्थिति काफी अस्पष्ट थी। यहां पूरी तरह अराजकता की स्थिति थी।’
उन्होंने तत्काल अधिकारियों को निर्देश दिए कि सुइट्स 1 और 2 में कड़ी सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। तभी अचानक हंगामा शुरू हो गया। पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। जब तक हालात सामान्य नहीं हुए सिंह गेस्ट हाउस में ही रहे।
पूर्व डीजीपी के मुताबिक गेस्ट हाउस कांड को लेकर कई अफवाहें फैली। जिनमें से एक एलपीजी सिलेंडर से जुड़ी थी। जबकि असलियत यह थी कि ‘मायावती ने चाय पीने की इच्छा व्यक्त की थी। संपदा अधिकारी द्वारा सूचित किए जाने के बाद कि रसोई गैस नहीं है, पड़ोस से एक सिलेंडर की व्यवस्था की गई थी।’ सिंह ने लिखा है कि ‘सिलेंडर को किचन की तरफ लुढ़काकर ले जाते देख ये अफवाह फैल गई कि मायावती को आग लगाने की कोशिश की गईं।
मायावती ने लगाए आरोप
इसी दिन मायावती ने राज्यपाल को एक पत्र लिखा। जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि गेस्ट हाउस में एकत्र हुए सपा सदस्यों ने हमला किया और कुछ बसपा कार्यकर्ताओं को ‘पुलिस और जिला प्रशासन के अधिकारियों के नाक के नीचे से उठाकर ले गए।
बकौल पूर्व डीजीपी इस घटना के बाद वो दो राजनीतिक दलों के बीच शक्ति प्रदर्शन के खेल में लगाए जा रहे आरोप-प्रत्यारोप में बुरी तरह से फंस गए। राज्यपाल ने उसी रात मुलायम सिंह यादव की सरकार बर्खास्त कर, मायावती को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। नई सरकार ने सिंह को 4 जून, 1995 को निलंबित कर दिया। सिंह सवाल उठाते हैं कि आखिर केवल उन्हें ही क्यों निलंबित किया गया। जबकि वहां डीएम, एडीएम (सिटी) और एसपी (सिटी) भी मौजूद थे।
अधिकारी ने कार्यालय से बाहर निकाला
रिटायर्ड आईपीएम अधिकारी, ने लिखा कि गेस्ट हाउस कांड में निलंबित किए जाने के बाद उन्हें ‘कायर वरिष्ठों’ और सहकर्मियों द्वारा पुलिस बिरादरी से बाहर’ कर दिया गया। नेताओं से ज्यादा मेरे वरिष्ठों और उनके कायराना व्यवहार ने मुझे निराश किया। सिंह लिखते हैं कि मैं उस पल को कभी नहीं भूल पाउंगा जब मैं एक वरिष्ठ आईपीएम अधिकारी, से मिलने गया। अपने कार्यालय में मुझे देखकर वो परेशान हो गए। यह बताने से नहीं चूके कि मैं बिन बुलाया मेहमान हूं। दरअसल, उन दिनों मायावती का इतना खौफ था कि कोई भी अधिकारी मेरे साथ दिखना नहीं चाहता था। एक वरिष्ठ अधिकारी ने सचमुच उन्हें अपने कार्यालय से बाहर निकाल दिया था।’
खलनायक बना दिया गया
सिंह के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज की गई थी। प्रत्येक में उन्हें खलनायक बता दिया गया। ऐसा खलनायक जो मायावती के खिलाफ द्वेष पाल रहा था और बसपा विधायकों के अपहरण में शामिल था। हालांकि, कुछ महीने बाद सरकार ने उन्हें सेवा में बहाल कर दिया और उनके खिलाफ मामले भी वापस ले लिये गये।
मायावती से पूछा सवाल
गेस्ट हाउस कांड के तीन साल बाद सिंह की मुख्यमंत्री मायावती से आजमगढ़ में मुलाकात हुई। उस समय वो आजमगढ़ रेंज के उप महानिरीक्षक (डीआईजी)पद पर तैनात थे। उन्होंने मायावती से पूछा कि 2 जून 1995 के उस मनहूस दिन पर उनकी क्या गलती थी? उन्होंने मायावती से पूछा ‘मैडम, आखिर क्यों? मुझे ही क्यों निलंबित किया गया? मैं तो एक गैर राजनीतिक अधिकारी हूं। मेरा पूरा सर्विस रिकॉर्ड इसकी पुष्टि कर देगा…।’
सिंह ने आगे कहा, क्या यह सही काम करने का इनाम था। मायावती ने एक भी शब्द नहीं कहा और वो वहां से चली गई। सिंह ने अपनी किताब में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यशैली की प्रशंसा भी की है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर प्रदेश के ‘तराई’ क्षेत्रों में खालिस्तानी आतंकवाद से निपटने का जिक्र किया है।