जफर महल या जलमहल (1842 ई.)
महताब बाग के हौज के बीचोंबीच बहादुर शाह ने 1842 ई. में यह सारा महल लाल पत्थर का बनवाया था। इसका एक दरजा है और चारों तरफ गुलाम गर्दिश के तौर पर मकान और कोनों पर हुजरे बने हुए हैं। एक तरफ इस मकान में आने-जाने का पुल बना हुआ था। अब उसका पता नहीं है। दालान की छत भी गिर गई है। गदर के बाद फौज के लिए इसे तैरने का हौज बना दिया गया था।
बावली
यह हयात बाग के पश्चिम में परेड ग्राउंड पर बनी हुई है। यह अठपहलू है, जिसका व्यास 21 फुट है। इसी के पास एक तालाब 20 फुट मुरब्बा है। यह हौज तैरने के लिए बनाया गया है। तालाब के उत्तर और पश्चिम में सीढ़ियां हैं और दोनों तरफ कमरे भी बने हुए हैं। अब बावली और तालाब- दोनों पर जस्त की चादरें जड़ी हुई हैं। इसी से अब किले के बागात को पानी दिया जाता है।
मस्जिद
यह छत्ता चौक के उत्तर में है। यह 42.5 फुट लंबी और 24 फुट चौड़ी है। यह भी बहादुर शाह की बनवाई हुई है।