वास्तुकार राजीव वाजपेयी कहते हैं कि संत और कवि जमाली शेख जलाल (jamali kamali) खां के नाम से जाने जाते थे। उन्होंने सिकंदर लोदी (sikandar lodi) और हुमायूं (humayun) का शासन काल देखा था। उनके नाम से जुड़ी मस्जिद महरौली (mehrauli) मार्ग स्थित बलबन के मकबरे के दक्षिण में 300 मीटर की दूरी पर स्थित है। इसका निर्माण कार्य बाबर (babar) के शासन काल में लगभग 1528-29 में शुरू किया गया था और हुमायूं के शासन काल में पूरा किया गया। इनका मकबरा भी पास ही स्थित है। संभवत: लगभग 1528 में उनकी मौत हुई थी। चूंकि इस मस्जिद में दो कब्रें हैं।

एक के बारे में यह कहा जाता है कि जमाली की है जबकि दूसरी किसी अज्ञात व्यक्ति कमाली की है। इस प्रकार इन स्मारकों को दोहरे नाम से जाना जाता है। मस्जिद का मूल फाटक अभी भी दक्षिण दिशा में मौजूद है। इसके प्रार्थनागार हाल में पांच मेहराब दरवाजे हैं जो चतुष्केन्दि्रत झुकाव वाले और उनके चाप स्कंधों को नक्काशी युक्त पट्टों और गोलाकार फलकों से अलंकृत किया गया है। बीच की मेहराब दूसरी मेहराबों से उंची है और ज्यादा शानदार तरीके से सजाई गई है। इसके बगल में गोलाइ वाले अधस्तंम्भ है। पश्चिमी दीवार में आलों को भी सजाया गया है और बीच के एवं उत्तरी आलो को कुरान संबंधी लेखों से सजाया गया है।

प्रार्थनागार के दोनों कोनों पर दो जीने दूसरी मंजिल पर मस्जिद के पीछे सीधी एक तंग वीथी तक जाते हंै। जिनमें पीछे की ओर तीन रोशनदान, एक दक्षिण की ओर और एक छोटी खिडकी बीच की मेहराब के ऊपर है। पीछे के कोनों पर एक एक अष्ट भुजाकार बुर्ज है। मुंडेर के नीचे सामने की ओर कमल की कलियों की लटकन है। एक ही गुंबद बीच के खंड को ढंकता है। वास्तुकला की दृष्टि से यह मस्जिद मोठ मस्जिद से लेकर शेरशाह मस्जिद तक के संक्राति काल की ओर इंगित करती है। जमाली कमाली का मकबरा एक अहाते के भीतर इस मस्जिद के अत्यन्त निकट उत्तर में है। इकसा छोटा कक्ष सपाट छत वाला है और इसकी अंदरुनी छत और दीवारें रंगीन टाइलों और उत्कीर्ण नमूनों तथा चित्रों से अलंकृत है। जिसमें जमाली द्वारा रचित कविताएं भी शामिल है।

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