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मां स्वरूप रानी ने नेहरू को पढ़ाया भारतीय संस्कृति और परंपरा के मूल्यों का पाठ

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

jawaharlal nehru ka jivan Parichay: किसी राष्ट्र को ऐसा सौभाग्य बार-बार नहीं मिलता कि उसका नेतृत्व एक ऐसे ओजस्वी व्यक्तित्व के हाथ में हो जिसमें स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, राजनेता, दार्शनिक, सर्वहितैषी और एक राष्ट्र निर्माता के सभी गुण मौजूद हों।

जवाहर लाल नेहरू का जन्म व प्रारंभिक शिक्षा

आधुनिक भारत के निर्माता तथा बहु-आयामी व्यक्तित्व के धनी पंडित जवाहर लाल नेहरू (jawaharlal nehru) का जन्म 14 नवम्बर, 1889 को इलाहाबाद के आनन्द भवन में हुआ था। उनके पिता मोतीलाल नेहरू शहर के एक नामी वकील थे।

जवाहर लाल नेहरू (jawaharlal nehru) की माता स्वरूप रानी ने उन्हें भारतीय संस्कृति और परम्परा के मूल्यों का पाठ पढ़ाया। वर्ष 1905 में मोतीलाल नेहरू अपने परिवार के साथ इंग्लैंड चले गये।

वहां उन्होंने पन्द्रह वर्षीय जवाहर लाल को हैरो स्कूल में दाखिला दिला दिया जहां उन्होंने लैटिन भाषा की पढ़ाई की।

बाद में उन्होंने हैरो छोड़ दिया और अक्तूबर 1907 के प्रारम्भ में ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज में प्रवेश लिया। ज्ञान की खोज के लिए जागृत हो चुकी उनकी आकांक्षा को कैम्ब्रिज में बड़ा प्रोत्साहन मिला।

कैम्ब्रिज में उनका सारा समय अध्ययन, खेलों और मनोविनोद में व्यतीत होता था, किन्तु बाल गंगाधर तिलक और अरविन्द घोष के नेतृत्व में चल रही राजनीतिक उथल-पुथल से उनका मन व्यथित हो उठा।

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स्वतंत्रता आंदोलनों से व्यथीत हुआ मन

बंगाल विभाजन, स्वदेशी आन्दोलन और लाला लाजपत राय तथा सरदार अजीत सिंह के देश से निष्कासन के समाचारों ने उनके मस्तिष्क को काफी उद्वेलित कर दिया।

कैम्ब्रिज में भारतीय विद्यार्थियों द्वारा गठित ‘मजलिस’ भारत में चल रही राजनीतिक उथल-पुथल पर चर्चा करने का एक अच्छा मंच सिद्ध हुआ।

युवा जवाहर लाल नेहरू एक के बाद एक कानून की परोक्षाएं भी पास करते गये। वह भारत लौटने से पहले थोड़े दिनों तक लन्दन स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स में भी रहे।

भारत लौटने पर शुरू की वकालत

इंग्लैंड से 1912 में वापस आने पर जवाहर लाल नेहरू ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत शुरू की। 8 फरवरी, 1916 को बसंत पंचमी के दिन जवाहर लाल नेहरू कमला कौल के साथ परिणय सूत्र में बंध गए।

बाद में उन्होंने कांग्रेस की गतिविधियों में भाग लेने के लिए कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली।

जब भारतीय मजदूरों के लिए फिजी अनुबंध प्रणाली के विरुद्ध आंदोलन अथवा दक्षिण अफ्रीकी भारतीय मामले जैसे विशेष अवसर आये तो वह पूरे मनोयोग से उनसे जुड़ गये और उन्होंन लगन में और निष्ठापूर्वक कार्य किया।

जब लोकमान्य तिलक की रिहाई के साथ भारत में राजनीतिक संघर्ष अपनी नई जमा रहा था तभी जवाहर लाल नेहरू, बाल गंगाधर तिलक और मती एनी बेसेन्ट द्वारा आरंभ किये गये होम रूल लीग में शामिल हो गये।

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जलियावाला बाग में नरसंहार से दुखी होकर छोड़ी वकालत

दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की घृणित प्रथा के विरुद्ध गांधी जी की लड़ाई से वह काफी प्रभावित थे। वह विशेष रूप से उस कृषक आंदोलन से प्रभावित हुए जिसका नेतृत्व गांधी जी ने बिहार में 1917 में किया था।

प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् भारत में स्व-शासन के लिए राजनीतिक आशाएं बढ़ गई थीं।

किन्तु इन बढ़ती हुई आशाओं पर उस समय तुषारापात हो गया जब ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी और क्रूरता भरा रॉलेट अधिनियम लागू किया।

इसके विरोध में महात्मा गांधी के आहवान पर सत्याग्रह के रूप में सारे भारतवर्ष में भारी विरोध और प्रदर्शन हुए।

जलियांवाला बाग में नरसंहार की भयावह घटना और ऐसी ही अन्य दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं से जवाहर लाल इतने अधिक आन्दोलित हुए कि उन्होंने वकालत छोड़ दी।

वह जीवन में आराम छोड़कर कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता और गांधी जी के सिपहसालार बन गये। जुलाई 1920 में वह इलाहाबाद जिला कांग्रेस समिति के उपाध्यक्ष चुने गये।

समाजवादी व्यवस्था की नितांत आवश्यकता

वर्ष 1926 के अंत में बर्लिन की एक लघु यात्रा के दौरान जवाहर लाल नेहरू को फरवरी 1927 में ब्रुसेल्स में गुलाम देशों के प्रस्तावित सम्मेलन के संबंध में पता चला।

ब्रुसेल्स सम्मेलन, जो नेहरू जी की राजनीतिक विचारधारा के विकास में मील का पत्थर साबित हुआ, में वह पहली बार अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त व्यक्तियों के संपर्क में आए थे।

कांग्रेस ने औपनिवेशिक तथा आश्रित देशों की कुछेक समस्याओं को समझने में उनकी सहायता की। अपनी यूरोप यात्रा के अंतिम चरण में जवाहर लाल नेहरू नवम्बर 1927 में मास्को पहुंचे।

उनकी विदेश यात्राएं, विशेषतया ब्रुसेल्स सम्मेलन में उनका भाग लेना तथा तत्पश्चात् उनकी मास्को यात्रा से उन्हें विश्वास हो गया कि भारत के लिए समाजवादी व्यवस्था की आवश्यकता है।

कांग्रेस का ऐतिहासिक घोषणापत्र नेहरू ने किया जारी

दिसम्बर 1927 में जवाहर लाल नेहरू उस समय मद्रास पहुंचे जब वहां कांग्रेस का अधिवेशन हो रहा था।

भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता अथवा डोमीनियन दर्जा दिए जाने के विवाद को जवाहर लाल नेहरू ने उस समय एक नई दिशा दी जब उन्होंने मद्रास में कांग्रेस की बैठक में 27 दिसंबर 1927 को उस प्रसिद्ध संकल्प को प्रस्तुत किया जिसमें कहा गया था- ‘कांग्रेस घाषणा करती है कि भारतीय जनता का ध्येय पूर्ण राष्ट्रीय स्वतंत्रता प्राप्त करना है’।

दिसम्बर 1929 के अंत में लाहौर में हुए कांग्रेस के ऐतिहासिक अधिवेशन में जवाहर लाल नेहरू का समाजवादी सिद्धान्त सार्वजनिक रूप से मुखरित हुआ।

इसीलिए उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य से पूर्ण स्वतंत्रता के आहान को दोहराया। पूर्ण राष्ट्रीय स्वतंता के प्रस्ताव को दोहराया गया और कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में 31 दिसम्बर 1929 की आधी रात को इसे पारित किया गया।

चार वर्ष जेल में बिताए

पूर्ण राष्ट्रीय स्वतंत्रता के आह्रान ने संपूर्ण देश में नए जोश का संचार कर दिया। इसी संबंध में गांधी जी ने नमक सत्याग्रह आरंभ किया जो सविनय अवज्ञा का एक अनोखा तरीका था।

जवाहर लाल नेहरू ने 1930 और 1935 के बीच चार वर्ष जेल में बिताए। कारावास के एकाकीपन से उन्हें चिंतन, आत्म-मंथन और विगत घटनाचक्र पर मनन करने के अवसर के साथ-साथ स्वाध्याय के लिए भी काफी समय मिला।

उनकी सरल और प्रवाहमयी लेखनी और प्रखर एवं प्रबुद्ध मानस ने “लेटर्स फ्रॉम ए फादर टु ए डॉटर” (1929), “ग्लिम्पसिज ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री” (1934) और “ऑटोबायोग्राफी” (1936) जैसी कुछ गौरवशाली कृतियों का सृजन किया।

कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन पूर्ण राष्ट्रीय स्वतंत्रता की उद्घोषणा के लिए उल्लेखनीय था, किन्तु मार्च 1931 में कराची में हुए कांग्रेस अधिवेशन में जवाहर लाल नेहरू का समाजवादी चिंतन उनके मौलिक अधिकारों संबंधी संकल्प में साकार हुआ।

वस्तुतः यह संकल्प स्वतंत्र भारत के संविधान में प्रतिष्ठापित पंथनिरपेक्ष, समाजवादी और लोकतांत्रिक राज्य के आदशों और उद्देश्यों का पूर्वाभास था।

भारत छोड़ो आंदोलन का संकल्प पारित

कांग्रेस ने क्रिप्स मिशन के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और 8 अगस्त 1942 को “भारत छोड़ो आंदोलन छेड़ने का संकल्प पारित किया।

ब्रिटिश सरकार ने जवाहर लाल नेहरू जैसे अग्रणी नेताओं को जेल में डाल कर इस जन-विद्रोह को कठोरतापूर्वक कुचलने की कोशिश की।

यह नेहरू के जीवन की दीर्घतम कारावास अवधि थी। उन्हें जून 1945 में ठीक उस वक्त रिहा किया गया जब वायसराय लॉर्ड वेवल ने गतिरोध को दूर करने के लिये शिमला में एक सम्मेलन आयोजित किया।

इन वार्ताओं और बाद में 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन से हुई वार्ताओं में नेहरू की महत्त्वपूर्ण भूमिका से उनका महान नेतृत्व परिलक्षित होता है। स्वतंत्रता संग्राम के फलस्वरूप भारत को उपनिवेशवाद के चंगुल से मुक्ति मिली।

स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री

दिनांक 15 अगस्त 1947 को मध्य रात्रि के समय भारत के अंतिम ब्रिटिश गवर्नर जनरल और वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने विधान मंडल को संबोधित करने एवं ब्रिटिश सम्राट की ओर से स‌द्भावना और बधाई संदेश देने हेतु असेम्बली चैम्बर में प्रवेश किया।

स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ऐसे भार्यावहवल वातावरण में एक नए भारत राष्ट्र के प्रति पूर्ण निष्ठा के साथ समर्पित रहने की प्रतिज्ञा दिलाने के लिए खड़े हुए।

अपने ऐतिहासिक भाषण, जिसे नियति से साक्षात्कार” (Trist With Destiny) कहा गया, में उन्होने कहा:

“बरसों पहले हमने नियति से मिलने की प्रतीक्षा की थी। अब वो यहीं आ गई है कि हम अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करेंगे पूरी तरह न सही लेकिन काफी हद तक। ठीक आधी रात को जब सारी दुनिया सोती होगी भारत जीवन और आजादी की अंगड़ाई लेकर उठेगा। …..

समस्याओं को कुशलतापूवर्क सुलझाया

महाद्वीपीय स्वरूप वाले इस नवोदित राष्ट्र का संचालन करने का दुष्कर कार्य अब जवाहर लाल नेहरू के कंधों पर आ पड़ा। इस संक्रमण काल ने अनेक समस्याएं खड़ी कर दीं जिनको उन्होंने बड़ी कुशलता से सुलझाया। एक दूरदर्शी राजनेता के रूप में उन्होंने इस राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक भवन की नींव रखी।

उन्होंने गुट निरपेक्षता की नीति और पंचशील के सिद्धांतों के साथ विश्व समुदाय में भारत की भूमिका के संबंध में एक स्पष्ट दिशा भी प्रदान की।

जवाहर लाल नेहरू ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास में भी काफी रुचि ली।

जैसाकि उन्होंने स्वयं स्पष्ट किया है: “राजनीति मुझे अर्थशास्त्र की ओर ले गई और उसने मुझे अपरिहार्य रूप से विज्ञान और अपनी सभी समस्याओं तथा जीवन के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की ओर उन्मुख किया। केवल विज्ञान ही भूख और गरीबी की समस्याओं का समाधान कर सकेगा।”

पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत

जवाहर लाल नेहरू नियोजित आर्थिक विकास में विश्वास करते थे। उन्होंने आम जनता के समक्ष मौजूद भयावह गरीबी और बेरोजगारी को दूर करने तथा प्रत्येक नागरिक के लिए कम से कम एक सम्मानजनक स्तर सुनिश्चित करने हेतु भारत में योजनाओं की शुरुआत की ताकि समान अवसर दिए जाने की अवधारणा को यथार्थ में बदला जा सके।

इस वांछित उद्देश्य की प्राप्ति हेतु, उन्होंने सामुदायिक विकास कार्यक्रमों, नदी घाटी परियोजनाओं और पंचवर्षीय योजनाओं की श्रृंखला शुरू की। पंडित नेहरू ने 1950 के प्रारंभ में योजना आयोग का गठन करके एक नए युग का सूत्रपात किया।

चाहे मंत्रिमंडल हो अथवा संसद, अन्य राष्ट्रों के साथ संबंध का मामला हो या जनमत तैयार करने और उसे बदलने का अथवा देश के आर्थिक एवं सामाजिक लक्ष्यों को विदेशों में प्रस्तुत करने का मामला हो, वह भारत के सुनियोजित विकास में हमेशा सर्वाधिक प्रेरणादायी स्रोत रहे।

योजना आयोग के साथ उनकी अंतिम बैठक 10 मई 1964 को हुई जिसमें उन्होंने कहा कि इस कार्य हेतु जितना भी समय चाहिए उतना समय देने में उन्हें खुशी होगी क्योंकि नियोजन कार्य में उनको गहरी दिलचस्पी है।

बच्चों के चाचा नेहरू

पं. नेहरू ने कला, संस्कृति और साहित्य को भरपूर संरक्षण प्रदान किया। वह बच्चों के प्रति सदैव बेहद स्नेह रखते थे और बच्चे उन्हें स्नेहपूर्वक “चाचा नेहरू” कहते थे। उन्हें भली भांति जात था कि आज के बच्चे ही करा के नागरिक हैं। इसलिए, उन्होंने समाज में उनके सर्वांगीण विकास में गहरी रुचि ली।

भारत माता के लाड़ले सपूत जवाहर लाल नेहरू का 27 मई 1964 को देहावसान हो गया। वह हमारे लिए एक समृद्ध विरासत छोड़ गए जो आज भी हमारे लिए सहायक है।

यद्यपि नेहरू स्वभाव और प्रवृत्ति से विश्व बन्धुत्व में विश्वास रखते थे, फिर भी अपने देश की मिट्टी और लोगों से वह बेहद प्यार करते थे।

उनकी वसीयत में जो इच्छा व्यक्त की गई है, उससे उनके भारत के प्रति पूर्णतः समर्पित होने एवं अपने देशवासियों के प्रति अगाध प्रेम का पता चलता है। उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए उनकी राख को हिमालय सहित देश भर में आकाश से बिखेर दिया गया और उसे पवित्र नदी गंगा में भी प्रवाहित कर दिया गया।

लाल बहादुर शास्त्री ने नेहरू को असाधारण कहा

पंडित नेहरू को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए लाल बहादुर शास्त्री, जिन्होंने उनके बाद प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया, ने उन्हें एक ऐसा असाधारण व्यक्तित्व बताया जिसने सर्वाधिक ख्याति प्राप्त की। विश्व भर में स्वतंत्रता संग्राम में संघर्षरत व्यक्तियों के लिए उनका नाम आशा और प्रेरणा का प्रतीक बन गया।

भारत के अंतिम ब्रिटिश गवर्नर जनरल और वायसराय, लॉर्ड माउंटबेटन ने पंडित नेहरू को इतिहास की महान हस्तियों में से एक बताया। वह अत्यधिक विशाल हृदय वाले और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी थे।

तत्कालीन लोक सभा अध्यक्ष, सरदार हुकम सिंह ने पं. नेहरू के प्रति अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा था,

जवाहर लाल नेहरू आधुनिक भारत के निर्माता थे और उनका संपूर्ण जीवन राष्ट्र के प्रति समर्पित था तथा उन्होंने अपनी अंतिम सांस उन्हीं कार्यों को करते हुए ली जो उन्हें सर्वाधिक प्रिय थे। उनको मृत्यु से भारत ने एक महान नेता तथा विश्व ने एक ऐसा सच्चा सपूत खो दिया है जो सर्वत्र शांति, न्याय और मानव मर्यादा का सबसे प्रबल समर्थक था”।

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