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सोशल मीडिया पर फैंस कर रहे फिल्म की जमकर तारीफ

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।  

Kesari Chapter 2 Review: जलियांवाला बाग हत्याकांड की यादें आज भी जब याद आता है तो दिलों को झकझोर देती हैं। 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन जनरल डायर के आदेश पर हुई इस दरिंदगी में हजारों निहत्थे भारतीयों की जान चली गई थी।

इस नरसंहार पर कई फिल्में और वेब सीरीज बनीं, लेकिन ऐसा पहली बार हैं जब ब्रिटिश हुकूमत को उसके ही कानून के कटघरे में खड़ा करने वाले सी. शंकरन नायर की कहानी बड़े पर्दे पर लाई गई है, जिसका नाम है केसरी चैप्टर 2

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कैसी है फिल्म की कहानी?

फिल्म के आगाज़ में ही अक्षय कुमार ने दर्शकों से अपील की थी कि शुरुआती 10 मिनट मिस न करें — और वाकई, यही 10 मिनट फिल्म की रीढ़ हैं।

जनरल डायर के आदेश पर चलती गोलियों और उससे उपजे खूनखराबे को देखना हर किसी के लिए किसी सदमे से कम नहीं।

इसके बाद ये फिल्म लगातार उस न्याय की तलाश की ओर बढ़ती है, जिसे देखने के लिए दर्शक स्क्रीन से चिपक जाते हैं।

इंसाफ की लड़ाई

पहले हाफ में हम देखते हैं कि कैसे मद्रास के बैरिस्टर C. शंकरन नायर ब्रिटिश सरकार के करीबी बनते हैं। वह अंग्रेजों की ओर से क्रांतिकारियों के खिलाफ केस लड़ते हैं और ‘सर’ की उपाधि पाते हैंl

फिर वायसरॉय काउंसिल में शामिल होते हैं। लेकिन जलियांवाला बाग कांड की जांच के दौरान उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है और फिर वे इंसाफ के लिए लड़ने का फैसला करते हैं।

यहां फिल्म थोड़ी धीमी होती नजर आई, लेकिन शंकरन नायर की आत्मा की पुकार और उनके भीतर चल रहे द्वंद्व को बहुत ही अच्छी तरह से दिखाया गया है।

कोर्टरूम ड्रामा और क्लाइमैक्स

इसके बाद जब यह मामला कोर्ट तक पहुंचता है और माधवन का किरदार नेविल मैकिन्ले दाखिल होता है, तब फिल्म गति पकड़ती है।

कोर्टरूम में सच और झूठ की टकराहट, तर्कों की जंग और किरदारों की तेजी फिल्म को दिलचस्प बनाते हैं। हालांकि बीच-बीच में थोड़ी रुचि टूटती भी है, लेकिन क्लाइमैक्स में जब अक्षय कुमार का मोनोलॉग आता है, तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। लोग स्क्रीन से एक बार फिर चिपक जाते देखने के लिए।

प्रोडक्शन लाजवाब

फिल्म का प्रोडक्शन डिजाइन लाजवाब है। पुराने दौर का सेटअप, कॉस्ट्यूम्स, कोर्ट रूम और बैकग्राउंड डीटेलिंग में काफी मेहनत नजर आती है।

सिनेमैटोग्राफी और कलर टोन तो और ज्यादा बेहतरीन हैं। ‘ओ शेरा’ बैकग्राउंड ट्रैक दृश्य की गहराई को बढ़ाता है, जबकि ‘कित्थे गया सैंया’ गाना ठीक-ठाक लगता है।

दमदार एक्टिंग  

अगर अभिनय की बात करें तो अक्षय कुमार ने शानदार परफॉर्मेंस दी है। कोर्टरूम में उनके डायलॉग डिलीवरी और बॉडी लैंग्वेज बेहद दमदार है।

माधवन ने भी दमदार एक्टिंग की है और फिल्म को झक्कास बना दिया है। जनरल डायर के किरदार में सिमोन पैसले बेहद प्रभावशाली हैं और उनका किरदार नफरत पैदा करने में सफल होता है।

साथ ही अनन्या पांडे ने दिलप्रीत के रोल में ठीक-ठाक काम किया है, जबकि रेजिना कैसेंड्रा का किरदार कमजोर रह गया। अमित सियाल का काम बेमिसाल है।

रेटिंग: 5 में से 3.5 स्टार

खैर जो भी हो यह फिल्म आपको एक बार तो देखनी ही चाहिए — बशर्ते आप मनोरंजन नहीं, सच और इतिहास के साथ कुछ वक्त बिताना चाहते हो तो…….

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