फाहिम के मकबरे के पास ही उस सड़क की दाहिनी ओर जो हुमायूँ के मकबरे से बारह पुले को जाती है, और निजामुद्दीन-मथुरा रोड पर बाएं हाथ पर अब्दुल रहीम खानखाना का मकबरा है। यह बैरम खां के बेटे थे, जो हुमायूँ बादशाह के मित्र और जनरल थे। इनकी मां एक मेवाती रईस की लड़की थी अकबर इनकी योग्यता से बड़ा प्रभावित था और इनको बड़े-बड़े जिम्मेदारी के काम सुपुर्द किए हुए थे। इन्होंने गुजरात में एक बड़ी भारी बगावत को रोका, सिंध को फतह किया और दक्षिण में खराब हालत में भी अकबर के जमाने तक शाही वकार को कायम रखा। जहांगीर के जमाने में इनकी किस्मत ने पलटा खाया।

यह जहांगीर के लड़के खुर्रम का साथ देते थे, लेकिन तटस्थ न रह सके। कभी किसी के साथ तो कभी किसी के साथ। आखिर महावत खां ने इन्हें गिरफ्तार करके बादशाह के हुक्म से दिल्ली भेज दिया। वहां से वह लाहौर भेजे गए, जहां वह बीमार पड़े और मरने के लिए दिल्ली लौट आए। एक लेख के अनुसार उनका जीवन दिल्ली हुकूमत के पचास साला कारनामों का इतिहास था। उनकी मृत्यु 1626 ई. में हुई।

मकबरा 14 फुट ऊंचे और 166 मुरब्बा फुट के चबूतरे पर चूने-पत्थर का बना हुआ है। मकबरे के चारों ओर सत्रह सत्रह महराबें हैं, जिनमें से 14 दीवारदोज हैं। बाकी में से कमरों में जाने का रास्ता है। चबतूरे के दक्षिण में 14 सीढ़ियां हैं। गुंबद अठपहलू है, जिसके चार भाग लंबे और चार तंग हैं। व्यास 85 फुट है। तंग भाग में दो-दो महरायें हैं, जो गैलरी में जाने के रास्ते हैं। छत तंग जिलों पर बनी हुई है। उस पर एक बुर्ज है। चबूतरे पर से गुंबद की ऊंचाई 37 फुट है। पहले यह संगमरमर का बना हुआ था, मगर आसफुद्दौला के काल में वह सब उखाड़ लिया गया। अब तो नंगी दीवारें खड़ी हैं और घास उगी रहती है। कब्र का भी अब पता नहीं रहा।

हर खंभे के ऊपरी और नीची तह के आग पर पत्तों का कटावदार काम हो रहा है और बीच के भाग पर बहुत खूबसूरत पालिश हुआ है। खंभों की ऊंचाई 10 फुट है, जिसमें कुछ के ऊपर पच्चीकारी का काम किया हुआ है। पदों के ऊपर जो महराबें हैं, वे खुली हुई हैं। भवन में जाने को चार दरवाजे हैं, जो चौतरफा बीच की महराब के नीचे बने हुए हैं।

मकबरे के फर्श का बहुत कम हिस्सा लाल पत्थर से जड़ा हुआ है। कुछ जगह जहां संगमरमर की जालियां खराब हो गई थीं, उन्हें सफेद पत्थर से तब्दील कर दिया गया है।

पूर्वी द्वार से मकबरे में दाखिल हों तो भवन चार-चार खंभों की कतार द्वारा पांच भागों में बंटा दिखाई देता है। पहला और दूसरा भाग खाली है, तीसरे में मिर्जा अजीज के बड़े भाई यूसुफ मोहम्मद खां और भतीजी की कब्रें हैं, चौथे में इसकी अपनी कब्र है और इसके पैरों की तरफ इसके दूसरे भतीजे की पांचवें भाग में इसकी बीवी की और उत्तरी कोने में, जो तमाम अन्य कब्रों से एक कटघरे द्वारा अलहदा किया हुआ है, मिर्जा के एक और भतीजे की कब्र है। अन्य कर्त्रे कुकलताश परिवार की हैं। सब मिलाकर चौंसठ खंभों में दस कब्रें हैं। मिर्जा अजीज की कब्र पर जो कुतुबा खुदा हुआ है, उसमें इसका नाम और मृत्यु तिथि लिखी हुई है, जो 1634 ई. है, लेकिन यह जो यादगार है वह दस्तकारी का एक खास नमूना है। इसकी शक्ल कलमदान जैसी है और उस पर जो फूल-पत्ती बने हुए हैं, वे कमाल के हैं। पत्तियां, कलियां, फूल और कॉपले सब एक खास पसंदगी के नमूने हैं। यद्यपि मिर्जा जहांगीर की कब का तो यह मुकाबला नहीं करते, लेकिन चूंकि मौसमी तब्दीलियों से इसकी रक्षा होती रहती है; इसलिए यह बेहतर हालत में है और है भी देरपा।

मकबरे का बाहरी भाग कोई खास दिखावे का नहीं है, लेकिन अंदर का भाग बड़ा प्रभावशाली है; खासकर इसके खंभों की कला, इसकी महराबों की सफाई और इसकी जालियां देखते ही बनती हैं। मकबरे का अंदरूनी भाग बहुत मुलायम और नाजुक है और इस लिहाज से यह लामिसाल है तथा शाहजहां के भवनों के मुकाबले में बखूबी टिक सकता है। चौंसठ खंभे के साए में दिल्ली के आखिरी बादशाह बहादुर शाह की बीवियों और लड़कियों की कब्रें हैं।

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