swami shailendra saraswati
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स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती ने वैज्ञानिक अध्ययनों के आधार पर खोले उनकी खुशियों के वो रहस्य, जिन्हें अपनाकर आप भी तनावमुक्त और आनंदित जीवन जी सकते हैं

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

How To Be Happy: एक आध्यात्मिक सत्संग के दौरान, जब साधकों ने जीवन में खुशी और तनाव से जुड़े प्रश्न पूछे, तो स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती मा अमृत प्रिया ने इसका गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया। एक साधक ने पूछा, “खुशी किस चिड़िया का नाम है? मुझे पता नहीं। मुझे कभी-कभी आश्चर्य होता है कि दुनिया में लोग खुश कैसे रहते हैं?” इस सीधे और सरल प्रश्न में आज के अधिकांश लोगों की पीड़ा छिपी है। इस तनावपूर्ण जीवन में, जहां हर कोई सफलता के पीछे भाग रहा है, खुशी एक दूर के सपने जैसी लगती है। लेकिन स्वामी शैलेन्द्र सरस्वती ने बताया कि यह एक सपना नहीं, बल्कि एक विज्ञान है। उन्होंने उन लोगों के जीवन के लक्षणों का खुलासा किया जो हर परिस्थिति में खुश रहते हैं, और बताया कि कैसे हम भी उस कला को सीख सकते हैं।

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सदाबहार खुश रहने वाले 33% लोग: क्या है इनका रहस्य?

स्वामी जी ने बताया कि मनोविज्ञान के सवा सौ वर्षों के इतिहास में अनगिनत अध्ययन हुए हैं। इन सभी अध्ययनों का डेटा जब इकट्ठा किया गया तो एक आश्चर्यजनक तथ्य सामने आया। दुनिया में लगभग 33 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो हर हाल में खुश रहते हैं। यह अध्ययन उन लोगों पर किया गया जो गरीबी रेखा से ऊपर हैं और जिनके पास जीवन की सामान्य सुविधाएं मौजूद हैं।

इन सौ सालों में दुनिया ने दो विश्व युद्ध, आर्थिक महामंदी, अनगिनत राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल, प्राकृतिक आपदाएं और महामारियां देखीं। सब कुछ बदल गया, लेकिन खुश रहने वाले लोगों का यह 33 प्रतिशत का आंकड़ा लगभग स्थिर रहा। इससे यह सिद्ध होता है कि खुशी का बाहरी परिस्थितियों से केवल 10% संबंध है, जबकि 90% संबंध हमारी आंतरिक मनःस्थिति से होता है। तो आखिर क्या गुण हैं इन लोगों में जो इन्हें हर हाल में खुश रखते हैं? आइए जानते हैं उनके जीवन के 5 सुनहरे लक्षण।

खुशमिजाज लोगों के 5 सुनहरे लक्षण (The 5 Golden Traits of Happy People)

1. वे स्वधर्मसे जीते हैं (They Live by Their Own Nature)

खुश रहने वाले लोगों का पहला और सबसे महत्वपूर्ण लक्षण है कि वे दूसरों के निर्देशों या सामाजिक दबाव में नहीं, बल्कि अपनी अंतःप्रेरणा (Inner Inspiration) से जीते हैं। वे वही करते हैं जो उनका हृदय, उनकी आत्मा करने को कहती है। जब आप अपने ‘स्वधर्म’ के अनुसार जीते हैं, तो आपके काम में बोझ नहीं, बल्कि एक उत्सव का भाव होता है। आप समाज के बनाए सफलता के पैमानों के पीछे नहीं भागते, बल्कि अपनी आंतरिक संतुष्टि को प्राथमिकता देते हैं।

2. वे सृजनशील होते हैं और फ्लोमें जीते हैं (They are Creative and Live in ‘Flow’)

ये लोग बड़े रचनात्मक (Creative) होते हैं। जब वे कोई काम करते हैं, चाहे वो पेंटिंग हो, संगीत हो, लेखन हो, या कोई भी छोटा-बड़ा सृजन का कार्य हो, तो वे उसमें पूरी तरह डूब जाते हैं। मनोविज्ञान में इस अवस्था को ‘फ्लो स्टेट’ (Flow State) कहते हैं। इस अवस्था में व्यक्ति को समय का भान नहीं रहता, उसे भूख-प्यास या शरीर के दर्द का भी एहसास नहीं होता। एक पेंटर तीन घंटे तक पेंटिंग बनाता रहता है, उसकी कमर में दर्द हो रहा होता है, पर उसे पता भी नहीं चलता क्योंकि वह अपने काम में पूरी तरह तल्लीन है। यह ‘फ्लो’ की अवस्था आनंद का उच्चतम शिखर है।

3. वे केवल धन-यश के लिए काम नहीं करते (They Don’t Work for Money-Fame)

इन लोगों की प्रेरणा का स्रोत बाहरी पुरस्कार जैसे धन, पद या प्रसिद्धि नहीं होता। वे काम इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें उस काम से प्रेम है, उनके भीतर एक जुनून (Passion) है, एक दीवानगी है। वे अपनी मौज में मगन होकर काम करते हैं। यह अलग बात है कि उनके इस जुनून से उन्हें धन और यश मिल जाता है, लेकिन वह उनका मुख्य लक्ष्य नहीं होता। जब आप किसी काम को केवल उसके आनंद के लिए करते हैं, तो परिणाम का तनाव आप पर हावी नहीं होता और प्रक्रिया ही एक उत्सव बन जाती है।

4. वे खुद को माध्यमसमझते हैं (They Consider Themselves a ‘Medium’)

जब ये लोग ‘फ्लो’ की गहरी अवस्था में होते हैं, तो उन्हें ऐसा नहीं लगता कि ‘मैं’ यह काम कर रहा हूँ। उन्हें महसूस होता है कि कोई विराट शक्ति (Universal Energy) उनके माध्यम से खुद को अभिव्यक्त कर रही है। उन्हें लगता है कि हम तो बस एक उपकरण हैं, एक माध्यम हैं। जैसे कोई बांसुरी कहे कि गीत मैं नहीं गा रही, कोई और है जो मेरे भीतर से गा रहा है। या जैसे कोई कठपुतली नाचे और कहे कि यह मेरा नाच नहीं, धागे तो किसी और के हाथ में हैं। यह कर्ताभाव का विसर्जन ही उन्हें अहंकार के बोझ से मुक्त कर देता है और वे असीम आनंद का अनुभव करते हैं।

5. उनकी सोच सकारात्मक होती है (Their Thinking is Positive)

खुशमिजाज लोग नकारात्मकता को पकड़कर नहीं बैठते। वे जीवन में ‘सत्यम शिवम् सुंदरम’ को देखने का चुनाव करते हैं। स्वामी जी ने ‘मेडिकल स्कूल सिंड्रोम’ का उदाहरण दिया। मेडिकल के छात्रों को जब किसी बीमारी के लक्षण पढ़ाए जाते हैं, तो 25-30% छात्रों को लगता है कि वे लक्षण उनमें भी हैं और वे सच में बीमार महसूस करने लगते हैं। यह नकारात्मक विचारों को पकड़ने का परिणाम है। इसके ठीक विपरीत, खुश रहने वाले लोग सद्भावनाओं और सद् विचारों के प्रति receptive होते हैं। वे हर घटना के सकारात्मक पहलू को देखने की कोशिश करते हैं और इसीलिए वे खुश रहते हैं।

सफलता = खुशी? समाज का सबसे बड़ा भ्रम!

हमारे समाज ने हमारे मन में एक गहरा सम्मोहन (Hypnosis) बिठा दिया है कि “जब हम सफल हो जाएंगे, तब हमें खुशी मिलेगी।” स्वामी जी कहते हैं कि यह 100% गलत धारणा है। सच्चाई तो इसके ठीक विपरीत है। जो व्यक्ति वर्तमान में खुश है, जो आनंद और मौज से अपना काम करता है, उसकी कुशलता बढ़ जाती है और उसे सफलता मिलने की संभावना भी बढ़ जाती है।

जो व्यक्ति भविष्य पर केंद्रित रहता है कि “जब मेरे पास 20 लाख रुपए होंगे, तब मैं खुश होऊंगा,” वह वर्तमान में तो खुश हो ही नहीं सकता। वह दो साल तक दुखी रहने, तनाव लेने की रिहर्सल करता है। दो साल बाद जब उसे 20 लाख मिल भी जाते हैं, तो दुखी रहना उसकी आदत बन चुकी होती है। तब वह अपनी आदत को सही ठहराने के लिए एक नया लक्ष्य बना लेता है कि “महंगाई बढ़ गई है, 20 लाख में क्या होता है, अब तो 1 करोड़ चाहिए।” वह अपने लक्ष्य को élastique की तरह खींचता जाता है और जीवन भर दुखी बना रहता है। हम सिर्फ सिगरेट-शराब के ही नहीं, उदासी और डिप्रेशन के भी आदी (Addict) हो जाते हैं।

सफलता का शॉर्टकट बनाम खुशी की पगडंडी: एक प्रेरणादायक कहानी

स्वामी जी ने एक यूरोपीय इंजीनियर की कहानी सुनाई जो 8 साल तक अपने ऑफिस जाने के लिए एक शॉर्टकट रास्ता लेता था। 20 मिनट का यह रास्ता ट्रैफिक, शोरगुल और तनाव से भरा होता था। एक दिन संयोग से वह एक दूसरे रास्ते से गया जो 5 मिनट लंबा था। यह रास्ता एक कॉलोनी के पीछे से जाता था, जहां शांति थी, हरे-भरे पेड़ थे, फूलों की सुगंध थी, पक्षियों का कलरव था। उस दिन जब वह 5 मिनट देर से घर पहुंचा, तो वह गीत गुनगुना रहा था।

उसने अपनी पत्नी को बताया कि “मैं 8 साल तक कितना मूर्ख था जो 5 मिनट बचाने के चक्कर में जिंदगी का कितना खूबसूरत खजाना खोता रहा।” यह कहानी हम सबकी है। हमने भी सफलता का शॉर्टकट चुना है और उस रास्ते पर खुशी, शांति, स्वास्थ्य और रिश्तों का न जाने कितना खजाना लुटा दिया है। जबकि उसी के समानांतर एक खुशी की पगडंडी भी मौजूद है, जहाँ आराम से गीत गुनगुनाते हुए भी चला जा सकता था।

खुशी कोई मंजिल नहीं है जिसे भविष्य में किसी सफलता को पाकर हासिल किया जाएगा। खुशी एक चुनाव है, एक निर्णय है जो आपको अभी और इसी क्षण लेना है। यह इस बात पर निर्भर नहीं करता कि आपके पास क्या है, बल्कि इस बात पर निर्भर करता है कि आप कैसा महसूस करने का चुनाव करते हैं। खुशमिजाज लोगों के ये 5 लक्षण हमें यही सिखाते हैं कि अपने स्वधर्म में जीकर, अपने जुनून को फॉलो करके और वर्तमान क्षण का आनंद लेकर कोई भी व्यक्ति उन 33% लोगों में शामिल हो सकता है। आपको बस सफलता के तनाव भरे हाईवे से उतरकर, खुशी की सुंदर पगडंडी पर चलने का निर्णय करना है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Q&A)

Q1: खुशी पाने में लोग सबसे बड़ी गलती क्या करते हैं?

A1: सबसे बड़ी गलती खुशी को भविष्य की किसी शर्त (जैसे सफलता, पैसा, पद) से जोड़ना है। यह “जब ऐसा होगा, तब मैं खुश होऊंगा” वाली सोच वर्तमान की खुशी को खत्म कर देती है और व्यक्ति दुखी रहने का आदी हो जाता है।

Q2: ‘स्वधर्मका क्या अर्थ है और इसे कैसे पहचानें?

A2: ‘स्वधर्म’ का अर्थ है आपकी अपनी आंतरिक प्रकृति, आपका सच्चा जुनून या कॉलिंग। जिस काम को करने में आपको समय का पता न चले, जो आपको बोझ न लगे, और जिसे करने के लिए आपको किसी बाहरी प्रेरणा की जरूरत न पड़े, वही आपका स्वधर्म है।

Q3: क्या खुश रहने का मतलब है कि जीवन में कोई लक्ष्य ही न रखें?

A3: नहीं, इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है। लक्ष्य जरूर रखें, लेकिन लक्ष्य तक पहुंचने की यात्रा को बोझ न बनाएं। यात्रा का भी आनंद लें। खुश रहते हुए जो काम किया जाता है, उसमें सफलता की संभावना कहीं अधिक होती है।

Q4: अगर बाहरी परिस्थितियां सच में खराब हों तो खुश कैसे रहें?

A4: यह सच है कि 10% खुशी बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर करती है। लेकिन 90% हमारी आंतरिक प्रतिक्रिया पर। मुश्किल समय में भी, हम अपनी सोच को सकारात्मक रखने का अभ्यास कर सकते हैं, छोटी-छोटी चीजों में आनंद खोज सकते हैं और इस बात पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं कि हम क्या नियंत्रित कर सकते हैं, बजाय उसके जो हमारे नियंत्रण से बाहर है।

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