1857 की क्रांति: दिल्ली में अब निर्णायक लडाई लडी जा रही थी। जॉन निकल्सन को अंग्रेजी फौज का ब्रिगेडियर जनरल बनाया गया। इससे अंग्रेजी फौज के सिपाही खुश थे। क्रांतिकारियों का सहयोग करने के लिए राजस्थान के नीमच के सिपाही दिल्ली पहुंचे। नीमच सिपाहियों की एक रेजिमेंट ‘कई हजार लोगों के साथ आई, जिनके पास दस मैदानी तोपें और तीन छोटी गोला फेंकने वाली तोपें थीं।
उन्होंने रिज पर एक बड़ा सुनियोजित हमला किया। ग्वालियर ब्रिगेड और बारह फील्ड गन्स की मदद से यह हमला पूरी रात और अगले दिन दो बजे तक चला। दोपहर तक लगभग एक हजार सिपाही मारे गए थे। लेकिन ब्रिटिश जख्मी और मुर्दा सिपाही सिर्फ 46 ही थे।
हेनरी डेली का कहना था कि ‘यह सबसे ज्यादा कामयाब और वैज्ञानिक मार थी। उसका नुकसान बहुत ज्यादा हुआ, उसका गाड़ियों भर जंगी सामान तबाह हुआ और उसने हमारी शक्ल तक नहीं देखी। यह सबक है, जो हमें अपने सुरक्षा दस्तों को पढ़ाना चाहिए’।’
अपनी खाइयों में सुरक्षित अंग्रेजों को खूब अंदाजा था कि उनके दुश्मन कितनी जबर्दस्त, दर्दनाक और अंधाधुंध बहादुरी से काम ले रहे हैं। चार्ल्स ग्रिफिथ्स का कहना था कि ‘उनकी हर रोज हमला करने की निरंतर हिम्मत बेमिसाल थी। वह रोज लड़ते और हर बार मात खाते, लेकिन फिर भी बार-बार लड़ाई करने के लिए वापस आते थे।’