आवाज के धनी किशोर कुमार की शरारतों की कहानियां भी दिलचस्प
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
किशोर कुमार अपनी अनन्य शैली के अनूठे गायक थे। गायक के साथ-साथ वे अभिनेता, गीतकार, संगीतकार, निर्माता, निर्देशक, स्क्रीन प्ले राइटर, स्क्रिप्ट राइटर इत्यादि सबकुछ थे। उन्होंने हिंदी के अलावा असमी, गुजराती, बँगला, मराठी, कन्नड़, भोजपुरी, मलयालम, उड़िया आदि अनेक क्षेत्रीय भाषाओं में गीत गाए और सबके चहेते गायक बन गए।
जन्मस्थान
किशोर का जन्म 4 अगस्त 1929 को मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में हुआ। उनके पिता कुंजालाल गांगुली वकील थे। उनके दो भाई अशोक कुमार और अनूप कुमार भी जाने-माने अभिनेता थे। किशोर का असली नाम आभास गाँगुली था। उनको माँ गौरी देवी एक धनी बंगाली परिवार से थीं। उनकी एक बहन भी थी सती देवी।
भाई बने अभिनेता
अभी किशोर कुमार किशोर ही थे, जब उनके भाई अशोक और अनूप अभिनेता बन गए। वे भी भाइयों के पास बंबई चले गए और गायन व अभिनय में रुचि लेने लगे। के. एल. सहगल उन्हें बहुत भाए और उन्हें गुरु मानकर वे उनकी नकल करने लगे।
वास्तविक नाम बदला
आभास ने अपना नाम बदलकर ‘किशोर’ कर लिया और ‘बॉम्बे टॉकीज‘ में कोरस सिंगर (समूह गायक) हो गए। इसी कंपनी से उनके भाई अशोक भी जुड़े थे। ‘शिकारी’ (१९४६) फिल्म में उन्हें सर्वप्रथम अभिनय का मौका मिला। अशोक कुमार इसमें बतौर मुख्य अभिनेता थे।
जिद्दी में गाया पहला गीत
‘जिद्दी’ (१९४८) फिल्म के लिए उन्होंने पहला गीत ‘मरने की दुआएँ क्यों माँगें रिकॉर्ड किया। इसके बाद कुछ छोटे-मोटे काम उन्हें मिलते रहे। सन् १९५१ में ‘आंदोलन‘ फिल्म में उन्हें मुख्य अभिनेता के रूप में काम करने का मौका मिला। बॉम्बे टॉकीज के परचम तले बनी इस फिल्म के निर्देशक पानी मजूमदार थे। किशोर कुमार की रुचि अभिनय से अधिक गायन में थी, जबकि भाई अशोक दादा उन्हें अपनी तरह अभिनेता बनाना चाहते थे।
संगीत की पढ़ाई की कमी खली
सन् १९५४ में उन्हें बिमल रॉय की ‘नौकरी’ में अभिनय व गाने का अवसर मिला। लेकिन जब संगीत निर्देशक सलिल चौधरी को पता चला कि उन्होंने संगीत की औपचारिक शिक्षा नहीं ली तो शुरू में उन्होंने इनकार कर दिया। लेकिन उनकी आवाज सुनकर उन्हें एक गीत दिया- ‘छोटा सा घर होगा बादलों की छाँव में‘। यह गीत तो किशोर कुमार ने गाया है लेकिन पब्लिक यही समझती रही कि यह गीत हेमंत कुमार ने गाया है।
किशोर ने इसके बाद कई फिल्मों में अभिनय व गायन किया। इनमें दिल्ली’ (१९५७), ‘आशा’ (१९५७), ‘चलती का नाम गाड़ी’ (१९५८), ‘हाफ टिकट’ (१९६२), ‘पड़ोसन’ (१९६८) फिल्में प्रमुख हैं ‘चलती का नाम गाड़ी’ उनका होम प्रोडक्शन थी, जिसमें तीनों भाई के अलावा मधुबाला मुख्य भूमिका में थी।
विकसित की योडले मोडले शैली
‘मशाल’ (१९५०) के निर्माण के दौरान एस.डी. बर्मन अशोक कुमार के पर जाया करते थे। वहाँ उन्होंने किशोर को सहगल की नकल करते सुना तो उन्हें सलाह दी कि वे अपनी निजी गायन शैली विकसित करें। इस सीख को गाँठ में बाँधकर उन्होंने ‘योडले मोडले’ शैली विकसित की।
वर्मन दा ने किशोर से देव आनंद के खूब गीत गवाए। इनमें मुनीम जी’ (१९५४), ‘टैक्सी ड्राइवर’ (१९५४), ‘हाउस नं. ४४’ (१९५५), ‘फंटूश’ (१९५६), ‘नौ दो ग्यारह’ (१९५७), ‘पेइंग गेस्ट’ (१९५७), ‘गाइड’ (१९६५), ‘ज्पैल थीफ’ (१९६७), ‘प्रेम पुजारी’ (१९७०), ‘तेरे मेरे सपने’ (१९७१) आदि फिल्में प्रमुख हैं।
पुरस्कार और सम्मान
इसके साथ ही उन्होंने अपनी होम प्रोडक्शन की फिल्में बनानी जारी रखीं। ‘झुमरू’ (१९६१), ‘दूर गगन की छाँव में’ (१९६४), ‘दूर का राही’ (१९७९), ‘दूर वादियों में कहीं’ (१९८०) कुछ ऐसी ही फिल्में थीं ।
सन् १९६९ में बनी ‘आराधना’ फिल्म के ‘रूप तेरा मस्ताना’ गीत के लिए किशोर को पहला फिल्म फेयर अवार्ड मिला।
सन् १९७० व १९८० के दशक में किशोर ने सभी बड़े अभिनेताओं को स्वर दिए। इनमें राजेश खन्ना, अमिताभ, धर्मेंद्र, जितेंद्र, संजीव कुमार, देवानंद, शशि कपूर, रणधीर कपूर व ऋषि कपूर, मिथुन, संजय दत्त, सनी देओल, अनिल कपूर, जैकी श्राफ आदि शामिल हैं।
किशोर ने एस. डी. बर्मन के अतिरिक्त सी. रामचंद्र, आर. डी. बर्मन, लक्ष्मीकांत- प्यारेलाल, रवींद्र जैन, खय्याम, हृदयनाथ मंगेशकर, कल्याणजी आनंद जी, राजेश रोशन, अपन चक्रवर्ती, बप्पी लाहिड़ी आदि संगीत की सभी महान विभूतियों के साथ कार्य किया और सब उनके काम से संतुष्ट रहे।
मधुबाला से शादी के लिए धर्म बदला
किशोर ने चार शादियां की थी। पहली १९५० में रूमा गुहा से, जो १९५८ तक चली। सन् १९६० में उन्होंने अभिनेत्री मधुबाला से शादी की, जो कई फिल्मों में उनके साथ अभिनेत्री रही थीं। मधुबाला मुसलिम थीं। निकाह के लिए किशोर ने इसलाम धर्म कबूल कर लिया और अपना नाम ‘करीम अब्दुल’ रख लिया। मधुबाला निकाह के वक्त से ही बीमार थीं। बीमारी के चलते २३ फरवरी, १९६९ को उनका निधन हो गया।
सन् १९७६ में किशोर ने तीसरी शादी योगिता बाली से की, जो ४ अगस्त, १९७८ तक चली। सन् १९८० में किशोर कुमार ने लीना चंद्रावरकर से शादी की, जो आखिर तक चली। उनके दो पुत्र हुए- रूमा गुहा से अमित कुमार (पार्श्व गायक) तथा लीना चंद्रावरकर से सुमित कुमार।
पूरे पैसे लेने के बाद ही गाते थे किशोर कुमार
किशोर कुमार अपनी सनक के पक्के थे। वे पूरे पैसे लेने के बाद ही गीत गाते थे। कई बार पैसे न मिलने पर वे शूटिंग बीच में ही छोड़कर भाग खड़े हुए। आधा पैसा मिलता था तो वे आधे मेकअप के साथ शूटिंग करते थे। वहीं दूसरी ओर कई मौकों पर लोग पैसे देते थे और वे लेने से इनकार कर देते थे। वे अकसर जरूरतमंदों की मदद भी करते थे।
संजय गांधी का अनुरोध ठुकराना पड़ा भारी
आपातकाल (१९७५-७७) के दौरान संजय गांधी ने एक बार किशोर कुमार से कांग्रेस की बंबई रैली में गीत गाने को कहा, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि आकाशवाणी पर उनके गीतों का प्रसारण बंद हो गया।
१२ अक्टूबर, १९८७ को किशोर ने ‘वक्त की आवाज’ (१९८८) फिल्म के लिए ‘गुरु गुरुगीत रिकॉर्ड किया। इसके अगले ही दिन १३ अक्टूबर को दिल का दौरा पड़ने पर उनका निधन हो गया।
किशोर कुमार के सदाबहार गीत-
‘नहीं मैं नहीं देख सकता तुझे रोते हुए.”.
किशोर कुमार का निधन
किशोर एक अच्छे गायक ही नहीं, अच्छे अभिनेता भी रहे। उत्कृष्ट पाश्र्व गायन के लिए उन्हें सात फिल्म फेयर अवार्ड मिले। २० बार फिल्म फेयर अवार्ड के लिए उनका नामांकन भी हुआ, जो उनके नाम से जुड़ी उनकी निजी उपलब्धि है। किशोर ने बगैर औपचारिक शिक्षा के अपनी लगन व समर्पण से गायन के क्षेत्र में जो मुकाम हासिल किया, वह अपने आप में महत्त्वपूर्ण है। उनका नाम बॉलीवुड के फिल्मी इतिहास में संगीत के एक स्तंभ के रूप में दर्ज है। आज के उभरते गायक उन्हें अपना आदर्श मानते हैं। 13 अक्टूबर 1987 को किशोर कुमार का निधन हो गया।