चंदे में आयी कमी, खर्चे कम करने के लिए कार बेचने का लिया गया निर्णय
समय बहुत बलवान होता है….अक्सर आपने बड़े बुजुर्गों के मुंह से यह कहावत सुनी होगी। लेकिन राजनीतिक गलियारे में आजकल यह कहावत खूब चर्चा में है। दरअसल, बंगाल की सियासत से कुछ खबर ही ऐसी आयी है, जिसपर एकबारगी विश्वास करना मुश्किल है। बंगाल में सत्ता के शिखर पर तीन दशकों तक वाममोर्चा की अगुवाई करने वाली माकपा को अपने खर्चे कम करने के लिए कारें बेचनी पड़ रहीं हैं।
2001 में सत्ता गंवाने के बाद माकपा ताश के पत्तों की तरह बिखरती चली गई। इसके कुछ नेता तृणमुल कांग्रेस (TMC) कुछ बीजेपी (BJP) तो कुछ ने कांग्रेस (Congress) की अंगुली थामना बेहतर समझा। वहीं सदस्यों की बात करें तो बहुतों ने सदस्यता का नवीनीकरण ही नहीं कराया। पार्टी के चंदे और सदस्यों की संख्या में काफी गिरावट हुई। अब तो मिलने वाले चंदे व पार्टी फंड की स्थिति और भी दयनीय हो चुकी है।
हालत यह है कि खर्च कम करने के लिए माकपा जिला नेतृत्व को दी गई गाड़ियां बेची जा रही है। माकपा की पूर्व बर्द्धमान जिला कमेटी के नेताओं को दी गई 6 गाड़ियों को बेचने का निर्णय लिया गया है।
भाजपा
वहीं दूसरी तरह भाजपा लगातार नए वाहन खरीद रही है। माकपा के शासनकाल में सिर्फ एक बार एक विधायक वाली पार्टी भाजपा इस समय मुख्य विपक्षी पार्टी है और 2024 में होने वाले पंचायत चुनावों की तैयारी कर रही है। पार्टी ने पंचायत चुनाव के मद्देनजर नए वाहन खरीदने का निर्णय लिया है। पार्टी सूत्रों की मानें तो पंचायत चुनाव के लिए पार्टी 42 कार समेत 300 से अधिक बाइक खरीदेगी। दोनों पार्टियों से जुड़ी इन खबरों पर लोग चटखारे लेकर खूब चर्चा कर रहे हैं।
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