दिल्ली में महात्मा गांधी से जुड़ी जगहें
हरे भरे पेड़ों के बीच गांधी की स्मृतियों को संजोए राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय। फर्स्ट फ्लोर पर दाखिल होते ही दीवार पर लगी गांधी की फोटो। पुराने लैंडलाइन फोन से बात करते गांधी जी की तस्वीर है। फोन उठाते ही महात्मा गांधी की जो आवाज गूंजती है वो एक बारगी हर किसी को हतप्रभ कर देती है। मुंह से निकल जाता है-क्या यह गांधी की आवाज है.. जी हां यह गांधी की आवाज है। गांधी कहते हैं- अगर हिंदुस्तान में हिंदू और मुस्लिम एक दूसरे से लड़ेंगे तो शांति कहां से आएगी। यह समझना होगा कि जिस जगह सत्य है, वहीं खुदा है। भारत में यदि शांति नहीं होगी तो यह सिर्फ हिंदु-मुस्लिम के लिए ही नहीं भारत-पाकिस्तान के लिए भी बुरा होगा। गांधी जी सिर्फ भारत-पाकिस्तान ही नहीं कई अन्य मसलों पर बोलते हैं। यह उनका प्रभाव ही है कि यह जानते हुए भी कि यह रिकार्डिग है, सुनने वाला हां में सिर हिलाता रहता है। कुछ ऐसा कि मानों, गांधी से सच में उसकी बात हो रही है। गांधी संग्रहालय में गांधी से जुड़ी चीजों के संग्रहण की यह बानगी भर है। यहां महात्मा गांधी के जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त तक उनसे जुड़े सामान, आंदोलन से रूबरू हुआ जा सकता है। दिल्ली से गांधी जी के जुड़ाव को यहां तस्वीरों, दस्तावेजों के जरिए समझा जा सकता है।
हिंदी-अंग्रेजी में सुनें गांधी को
यहां विभिन्न विषयों पर महात्मा गांधी के विचारों को सुना जा स कता है। पदाधिकारी कहते हैं कि यहां चार फोन रखे हुए है। ये सभी फोन गांधी जी के समय के दौरान प्रयोग किए जाते थे। आवाज महात्मा गांधी की ही है। इनकी आवाज उन दिनों रिकार्ड की गई थी। हिंदी और अंग्रेजी में दो-दो रिसीवर के जरिए आवाज सुनी जा सकती है। गांधी के विचार बंगाल विभाजन, साम्प्रदायिक दंगों, शांति और सद्भाव की जरूरत समेत कई अन्य मसलों पर हैं।
जन्मभूमि से कर्मभूमि तक
राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय में ही महात्मा गांधी के जन्मभूमि पोरबंदर से अफ्रीका एवं फिर भारत आकर विभिन्न आंदोलनों का प्रणेता बनने की कहानी है। गांधी जिस जगह पैदा हुए थे, वहां फूलों से स्वास्तिक बनाए जाने की फोटो है। महात्मा गांधी के एक मंजिला घर की फोटो, बड़ी बहन रलियतबेन, पिता करमचंद गांधी की भी फोटो यहां है। गांधी जी ने सामलदास महाविद्यालय, भावनगर से पढ़ाई की थी। इस महाविद्यालय की भी फोटो यहां मौजूद है। साथ ही मां पुतलीबाई, 14 वर्ष के गांधी की सहपाठी के साथ फोटो है। दक्षिण अफ्रीका में जोहांसबर्ग जाते हुए ट्रेन से 1893 में गांधी के बाहर फेंके जाने की घटना संबंधी पीटसबर्ग रेलवे स्टेशन की भी फोटो है। क्या आपको पता है, गांधी 1899-1900 में हुए बोअर युद्ध के समय इंडियन एंबुलेस कोर के साथ थे। बोअर और जुलू विद्रोह के समय अंग्रेज सरकार द्वारा दिया गया चांदी का सेवा पदक भी यहां देखा जा सकता है। गांधी जी ने कश्मीरी टोपी पहली बार 1915 में पहनी थी। इसी के बाद इसे गांधी टोपी के नाम से जाना जाने लगा। इसकी फोटो यहां लोगों को खूब आकर्षित करती है।
दिल्ली और गांधी
महात्मा गांधी सबसे पहले अप्रैल 1915 में दिल्ली आए थे। पहली बार दिल्ली आए गांधी की सेंट स्टीफंस कालेज की फोटो यहां प्रदर्शनी में उपलब्ध है। इसके अलावा गांधी द्वारा सम्पूर्ण भारत में हो रहे साम्प्रदायिक दंगों के विरूद्ध प्रायश्चित करते हुए 1924 में 21 दिन के उपवास की तस्वीर भी देखी जा सकती है। इस फोटो में 6 वर्षीय इंदिरा गांधी भी उनके सिरहाने बैठी हुई है। महात्मा गांधी और जिन्ना की वायसराय से मिलने जाते हुए भी फोटो है। दिल्ली में ही प्रार्थना सभा में जाते मुंबई हाईकोर्ट के वकील भुलाभाई देसाई की फोटो भी देखी जा सकती है। महात्मा गांधी ने दिल्ली के लक्ष्मी नारायण मंदिर का भी उद्घाटन किया था। यहां लक्ष्मी नारायण मंदिर के उदघाटन के बाद आराम करते गांधी की भी फोटो है। सन 1945 में सरद चंद्र बोस के साथ भंगी कालोनी में भ्रमण करते गांधी भी यहां आसानी से देखे जा सकते हैं। महरौली स्थित कुतुबुद्दीन की दरगाह पर गए गांधी की फोटो धार्मिक सदभाव का प्रतीक है।
देखें महात्मा गांधी के बनाए चरखे को
संग्रहालय में महात्मा गांधी द्वारा यरवदा जेल में अपने हाथों से बनाए गए पेटी चरखे को भी देखा जा सकता है। पदाधिकारियों ने बताया कि यह चरखा अमूल्य धरोहर है। इसके अलावा यहां करीब 30 से ज्यादा चरखे प्रदर्शित किए गए हैं। प्रारंभिक काल से ही भारत के घर-घर में चरखे का प्रयोग होता था। हड़प्पा-मोहनजोदड़ो के उत्खन्न से भी इसके प्रमाण मिलते हैं। ऋगवेद में कताई और बुनाई के बारे में जानकारी मिलती है। गांधी ने कहा था कि पहली बार उनके मन में चरखे का ख्याल सन 1909 में लंदन में आया था। दिमाग में कौंधा कि चरखे के बिना स्वराज्य की कल्पना नहीं की जा सकती। बकौल गांधी 1915 में बुनकर बना और बाद में कातने वाला। गांधी के इसी सपने को यहां संजोया गया है। संग्रहालय में पंजाबी चरखा, गुजराती चरखा, बारडोली चरखा, बिहार चरखा, एक तकुवा चरखा, पेटी चरखा, किसान चरखा, पुस्तक चरखा, चार तकुआ लकड़ी का चरखा, अेरि चरखा, मूगा रेलिंग,एल्युमिनियम पेटी चरखा, एक तकुआ डिब्बा चरखा, छह तकुआ अंबर चरखा, सात तकुआ मस्लिन चरखा समेत कई अन्य प्रकार के चरखे लोगों का ज्ञानवर्धन करते हैं।
गांधी की स्मृतियां
मनु बेन द्वारा प्रदत्त महात्मा गांधी एवं कस्तूरबा गांधी के सामान यहां प्रदर्शनी के लिए रखे गए हैं। इसके अलावा गांधी की कपूर की माला, मार्तड टेबल घड़ी, पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा लंदन वापसी पर दिया गया पारकर फाउंटन पेन, 25 दिसंबर को क्रिसमस के अवसर पर मिस्टर ग्लेन और एंथनी द्वारा गिफ्ट दी गई जिलेट रेजर ब्लेड और दो कैंची, नोआखली यात्रा के दौरान प्रयोग की गई दो माचिस की डिबिया, सन 1945 से अंतिम दिनों तक पहना गया चमड़े की चप्पल, लकड़ी का डिब्बा, सेवाग्राम में उपयोग किया पीतल की कटोरी प्रदर्शित है। 1947 में गांधी द्वारा उपयोग की गई पत्थर की थाली, 1946 में उपयोग की गई पीतल की थाली और जूसर, पैर साफ करने के लिए प्रयुक्त पत्थर, फिटकरी, थूकदानी, चम्मच, तवा, बेलन, कूकर, बालपेन, घड़ी गांधी के जीवन से परिचित कराते हैं।
यहां भी गांधी की यादों को संजोया गया है—
गांधी स्मृति–तीस जनवरी मार्ग पर स्थित गांधी स्मृति दरअसल बिरला हाउस है। जहां गांधी जी दिल्ली आने पर ठहरते थे। यहीं 30 जनवरी 1948 को प्रार्थना सभा में जाते हुए उन्हें गोली मारी गई थी। यहां प्रार्थना सभा, गांधी की जिस जगह मौत हुई थी उस जगह को संग्रहालय में तब्दील किया गया है। गांधी स्मृति सुबह दस बजे से शाम पांच बजे के बीच जाकर देखा जा सकता है। सोमवार को यह बंद रहता है।
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गांधी शिक्षक के रोल में
मंदिर मार्ग स्थित वाल्मीकि मंदिर इलाके में ही महात्मा गांधी 200 से ज्यादा दिन रहे। यहां बापू बस्ती के बच्चों को भी पढ़ाते थे। यहां एक बापू का कक्ष भी बनाया गया है। जिसमें बापू की तस्वीर लगाई गई है। ऐसा कहा जाता है कि यहां गांधी छोटे छोटे बच्चों को भी पढ़ाया करते थे।
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जब गांधी ने ली कैदियों की क्लास
25 अक्टूबर 1947 को महात्मा गांधी दिल्ली स्थित सेंट्रल जेल पहुंचे। यहां करीब 3000 कैदियों की उन्होंने क्लास ली। उन्होंने कहा कि, जब उन्हें यहां आने का निमंत्रण मिला तो वो काफी प्रसन्न हुए। क्यों कि दक्षिण अफ्रीका और भारत में कई बार वो खुद कैदी रह चुके हैं। उन्होंने जेल प्रवास के दौरान अपना रुटीन, अपनी यादें भी कैदियों से शेयर की। साथ ही उन्होंने नसीहत भी दी कि जेल सिर्फ कैदखाना नहीं सुधरने की जगह है। कैदियों को भी यह मानना चाहिए कि जेल के अधिकारी उनके मित्र है एवं उसी अनुरूप व्यवहार एवं कार्य करना चाहिए।
शरणार्थी कैंप पहुंचे गांधी
20 नवंबर, 1947 के दिन गांधी जी अचानक ओखला स्थित शरणार्थी कैंप पहुंचे। उन्होंने सफाई पर प्रसन्नता जाहिर की लेकिन कई अन्य मसलों पर अधिकारियों को कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि पता चला है कि यहां पानी की आपूर्ति दुरूस्त नहीं है। अधिकारी ब्लैक मार्केटिंग को बढ़ावा दे रहे है। बिना घूस दिए रहने की जगह तक नहीं दी जाती।