12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी (mahatma gandhi) ने दांडी यात्रा (dandi march) शुरू की। यह यात्रा 6 अप्रैल 1930 तक चली। ब्रितानिया हुकूमत के नमक कानून को तोड़ने के मकसद से गांधी जी (mahatma gandhi dandi yatra) ने यह यात्रा शुरू की थी। इस यात्रा के शुरु होने के बाद देश के हजारों युवाओं को जिंदगी जीने का एक मकसद मिला। हरिवंश राय बच्चन (harivansh rai bachchan) के मन पर भी इसका असर पड़ा। अचानक उनके मन में ऐसा बदलाव आया कि जुलाई में विश्वविद्यालय खुलने के बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई ही बंद कर दी। अपने दो दोस्तों से सलाह करके उन्होंने खद्दर का प्रचार शुरू कर दिया। शहर में तीन युवकों द्वारा किए जाने वाले खद्दर के प्रचार पर जवाहर लाल नेहरू (jawahar lal nehru) का ध्यान गया, उन्होंने मिलने बुलाया। शाबाशी पाकर हरिवंश राय का जोश दुगना हो गया। आजादी के जोश में एक रात उन्होंने एक गीत लिख डाला – ‘सब जाए तो जाए पर हिंद आजादी पाए।’

इलाहाबाद में इस गीत का खूब प्रचार हुआ। एक दिन गांधीजी की मौजूदगी में यह गीत गाया भी गया। हालांकि उस वक्त कम लोगों को ही यह बात पता थी कि हरिवंश राय श्रीवास्तव ने यह गीत लिखा है, जिनका घरेलू नाम बच्चन है। इस ‘बच्चन’ नाम से प्रकाशित उनके गीतों का पहला संग्रह ‘तेरा हार’ नाम से जब छपा तब बेहद कष्ट के बावजूद श्यामा बहुत खुश हुई थीं। यह सन् 1932 के जनवरी महीने की बात है।

कटरा के रामनारायण लाल पब्लिशर्स और बुकसेलर्स ने उनका यह संग्रह छापा था । पुस्तक छपने से पहले हरिवंश राय बच्चन से कहा था, ‘किताब की हजार प्रतियां छापूंगा, जिसमें से ढाई सौ प्रतियां आपको दे दूंगा। उन्हें आप बेचिए या बांटिए, जो मर्जी हो कीजिए। रायल्टी हम नहीं दे सकते।

बच्चनजी राजी हो गए। जिस दिन उनकी किताब छपी, उनका मन आनंद और तृप्ति से भर गया। ढाई सौ किताबों का बोझ खुद उठाकर वह प्रेस से पैदल ही अपने घर की ओर चल पड़े। उस वक्त उनके मन में गजब का जोश था। उस दिन पैदल नहीं, जैसे पंख लगाकर बच्चनजी घर लौटे थे।

घर लौटकर बीमार श्यामा की खाट पर किताबों का बंडल रखकर उन्होंने कहा, ‘यह लो अपना उपहार – ‘तेरा हार !’ काफी दिनों बाद अचानक उस दिन श्यामा का बुखार उतर गया-खुशी और गर्व से। हालांकि बाद में श्यामा जी का निधन हो गया।

श्यामा की मौत के ठीक 5वें साल बड़े दिन की छुट्टियों में अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन का वार्षिक अधिवेशन अबोहर में प्रस्तावित था। इलाहबाद यूनिवर्सिटी के अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष अमरनाथ झा को इस सम्मेलन का सभापति बनाया गया था। इस अधिवेशन में शामिल होने का निमंत्रण बच्चनजी को भी मिला। ‘मधुशाला’ के कारण उन दिनों वह बहुत विख्यात हो गए थे।

साहित्य सम्मेलन के आखिरी दिन यानी 29 दिसंबर की रात को कवि सम्मेलन का आयोजन था। वापसी का दिन बच्चनजी ने पहले से ही तय कर रखा था। रात भर कवि सम्मेलन में भाग लेने के बाद 30 दिसंबर की सुबह गाड़ी से दिल्ली पहुंचकर रात की गाड़ी से इलाहाबाद जाने का उनका इरादा था। वर्ष के आखिरी दिन की सुबह वह इलाहाबाद पहुंचना चाहते थे, जिससे कि वर्ष के पहले दिन वह संगम स्नान कर सकें।

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