ओपी नैयर की जिंदगी से जुड़े कई विवादों पर आज भी होती है चर्चा
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
मोहम्मद रफी ने इस महान संगीतकार के बारे में कहा .. ..मैंने कई संगीतकार देखे हैं.. ..लेकिन मैंने उनके जैसा कोई नहीं देखा। जी हां, हम बात कर रहे हैं ओंकार प्रसाद नैय्यर यानी… ओ. पी. नैय्यर की।
ओपी नैयर का जन्म
फिल्मों के अलबेले व अलमस्त संगीतकार और संगीत के जादूगर का जन्म 26 जनवरी 1926 को लाहौर (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ। प्रारंभ में उनका संबंध जालंधर आकाशवाणी से था। सन् 1944 में उन्होंने सी. एच. आत्मा को लेकर एक गाना रिकॉर्ड करवाया।
वह गीत था ‘प्रीतम आन मिलो‘, जो बिलकुल कुंदन लाल सहगल की गायन शैली से मिलता था। उस समय के. एल. सहगल जीवित थे, अतः किसी ने उनके जीवनकाल में इस गीत को प्रकाशित करने की हिम्मत नहीं की। उनके देहांत के उपरांत ही यह गीत रिलीज हुआ।
सीएच आत्मा को दिलाई प्रसिद्धि
सी.एच. आत्मा को फिल्म जगत् में प्रतिष्ठित करने का श्रेय इन्हीं को है। सी.एच. आत्मा के इसी गीत को सुनकर ‘पंचोली’ फिल्म के श्री दलसुख पंचोली ने उन्हें फिल्म ‘नगीना’ में प्रथम अवसर दिया। तत्पश्चात् फिल्म ‘आसमान’ में ओ. पी. नय्यर के संगीत निर्देशन में गाने का अवसर प्राप्त हुआ।
गुरुदत्त संग हिट रही जोड़ी
कुछ समय के बाद नय्यर साहब प्रख्यात अभिनेता व निर्देशक गुरुदत्त के संपर्क में आए। गुरुदत्त से संपर्क इतना फलदायी सिद्ध हुआ कि उनकी फिल्म ‘आर पार‘ में उनका संगीत सुपर हिट हुआ और इस फिल्म के लगभग सभी गीत इतने प्रसिद्ध हुए कि संगीतकारों की पहली पंक्ति में उनकी गिनती होने लगी।
नशीले गीतों के बादशाह
फिल्म ‘आर पार’ के गीतों से वह नशीले गीतों के बादशाह कहलाने लगे। अपनी विशिष्ट शैली के गीतों के लिए उन्होंने जिन गायक- गायिकाओं का सदुपयोग किया, उनमें प्रमुख हैं गीता दत्त, आशा भोसले , शमशाद बेगम, सी.एच. आत्मा, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, तलत महमूद, महेंद्र कपूर आदि।
कभी नही गवाया लता मंगेशकर से गाना
ओ.पी. नय्यर ही एकमात्र संगीतकार थे, जो लता मंगेशकर के उस जमाने में, जहाँ प्रायः सभी संगीतकार उन्हें प्रयोग कर उनके साथ अपनी प्रसिद्धि को फैला रहे थे, एक दुःसाहसिक कार्य यह किया कि उन्होंने जीवनपर्यंत लता की आवाज का इस्तेमाल नहीं किया।
वह लता के जमाने में रहते हुए भी लताजी की आवाज के गुलाम नहीं बने। आशा भोसले की आवाज चाहे एकल गान हो अथवा युगल गान, सबसे अधिक इस्तेमाल ओ. पी. नय्यर साहब ने ही की। जिन्हें लोग आशा स्टाइल कहते हैं, वह वास्तविक में ओ. पी. नय्यर की स्टाइल थीं।
ट्रेंड सेटर थे ओपी नय्यर
ओ. पी. नय्यर फिल्म इंडस्ट्री की अनेक प्रसिद्ध हस्तियों में एक अलग अंदाज के संगीतकार थे। उन्होंने किसी की नकल नहीं की और अपनी अलग पहचान बनाई। उनका संगीत किसी मान्यता से बंधा हुआ नहीं था, उनकी यही बेबाकी उन्हें अलग पहचान देती थी। एक इनसान के रूप में स्पष्टवादी एवं आदर्शवादी होने के साथ-साथ लोगों के बीच हमेशा सफेद पैंट-शर्ट और काले हैट में दिखते थे।
मोहम्मद रफी के बड़े प्रशंसक
वैसे उनका स्वाभिमान लोगों को बाह्य रूप से अहंम जैसा लगता था, किंतु संगीत निर्देशकों की जमात में अपना दीपक लेकर खड़े रहनेवाले वह अकेले व्यक्ति थे। मोहम्मद रफी को वह के. एल. सहगल के बाद दूसरे सब मूड में गानेवाले कलाकार मानते थे।
मध्यप्रदेश सरकार का सम्मान ठुकराया
शमशाद एवं आशा भोसले की खनखनाती आवाज उन्हें अत्यंत प्रिय थी। सी.एच. आत्मा की आवाज उन्हें पसंद थी; लेकिन उन्होंने सहगल से न तो तुलना ही की और न ही अच्छा कहा। मध्य प्रदेश शासन द्वारा दिया गया ‘लता मंगेशकर पुरस्कार, उन्होंने इसलिए स्वीकार नहीं किया कि यह सम्मान पुरस्कार किसी संगीत निर्देशक या संगीतकार के नाम से नहीं है अपितु वह गायक के नाम पर है, जो अभी जीवित है। हालाँकि इस पर कई विरोधाभास मंतव्य भी प्रकट हुए कि उन्होंने लता मंगेशकर सम्मान इसलिए भी अस्वीकार किया कि लताजी ने अपने कैरियर में उनके लिए गाने नहीं गए, जबकि लताजी के समकालीन अन्य कलाकारों का उपयोग किया।
आकाशवाणी ने नय्यर साहब को किया खारिज
ओ. पी. नय्यर जब पहली बार आकाशवाणी जालंधर से किस्मत आजमाने बंबई नगरी आए तो बंबई में उन्हें खारिज कर दिया। किंतु दूसरी बार जब दृढ़ निश्चय के साथ बंबई पहुँचे तो उनकी प्रतिभा को नजरअंदाज करनेवाले नदारद हो चुके थे। उनके कुछ परिचितों के अनुसार नय्यर साहब ने निर्माता-निर्देशक के रूप में केवल कृष्ण की फिल्म ‘कनोज‘ (१९४९) से अपने कैरियर की शुरुआत की और कुछ वर्षों तक पहचान के लिए संघर्षरत रहने के बाद सत्तर से अधिक फिल्मों में अविस्मरणीय संगीत दिया।
शास्त्रीय संगीत की दीक्षा के बिना सफल
नय्यर अकेले ऐसे संगीतकार थे, जिन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा के बिना अनेक कालजयी बनाकर लगभग तीन दशकों तक कामयाबी का सफर जारी रखा। वर्ष १९५७ में ‘नया दौर‘ फिल्म के संगीत के लिए उन्हें ‘फिल्म फेयर अवार्ड’ से सम्मानित किया गया। उन्होंने अपने अधिकांश गीतों में पंजाबी रिदम, ढोलक की विशेष थाप तथा घोड़े व ताँगे की गति के साथवाली टिक् टिकू की ध्वनि का इस्तेमाल किया। यही उनके संगीत की विशिष्ट पहचान थी। उनके द्वारा रचित गीतों की सूची लंबी है; किंतु कुछ निम्नांकित गीतों की तालिका प्रस्तुत है, जो आज भी जीवंत है।
ओ. पी. नय्यर के लोकप्रिय गीतों की सूची
ओपी नैय्यर ने 1950 से 1970 के दशक में बेहतरीन गाने दिए।
1. बाबूजी धीरे चलना – फिल्म: आर पार (1954), गायक: गीता दत्त
2. जरा हौले हौले चलो मोरे साजना – फिल्म: सावन की घटा (1966), गायक: आशा भोसले
3. मांग के साथ तुम्हारा – फिल्म: नया दौर (1957), गायक: मोहम्मद रफी, आशा भोसले
4. इशारों इशारों में दिल लेने वाले – फिल्म: कश्मीर की कली (1964), गायक: मोहम्मद रफी
5. लाखों हैं यहाँ दिलवाले – फिल्म: कश्मीर की कली (1964), गायक: मोहम्मद रफी
6. ये है रेशमी जुल्फों का अँधेरा – फिल्म: मेरे सनम (1965), गायक: मोहम्मद रफी
7. जाइए आप कहाँ जाएँगे – फिल्म: मेरे सनम (1965), गायक: आशा भोसले
8. ऐ दिल है मुश्किल जीना यहाँ – फिल्म: सीआईडी (1956), गायक: मोहम्मद रफी
9. उड़े जब जब जुल्फें तेरी – फिल्म: नया दौर (1957), गायक: मोहम्मद रफी, आशा भोसले
10. अभी ना जाओ छोड़ कर – फिल्म: हम दोनों (1961), गायक: मोहम्मद रफी, आशा भोसले
11- आओ हुजूर तुमको सितारों में ले चलूँ – फिल्म: कौन अपना कौन पराया (1963), गायक: आशा भोसले
12- पिया पिया पिया मेरा जिया पुकारे – फिल्म: बहार (1951), गायक: गीता दत्त, शमशाद बेगम
13- हाय रे हाय नींद नहीं आए – फिल्म: हमसाया (1968), गायक: आशा भोसले
14- ऐ मेरी ज़ोहराजबीं – फिल्म: वक्त (1965), गायक: मन्ना डे
फिल्मों से लिया सन्यास
उन्होंने व्यक्तिगत कारणों से कालांतर में फिल्म से संन्यास ले लिया। परिवार से उनके संबंध भी अंतिम दिनों में अच्छे नहीं रहे और पारिवारिक संबंध-विच्छेद की अवस्था में ओ. पी. नय्यर साहब अपनी रिश्तेदार रानी नखवा के घर रहते हुए गुमनामी भरी जिंदगी व्यतीत करने लगे।
यदा-कदा लोगों के विशेष आग्रह व दबाव पर किसी-किसी सामाजिक समारोह में उन्हें देखा जाता था। इस स्वाभिमानी संगीतज्ञ का निधन २८ जनवरी, २००७ को इक्यासी वर्ष की अवस्था में अकस्मात् हृदय गति रुक जाने के कारण हुआ।