लाडो सराय (lado sarai) और राजौरी गार्डन (rajouri garden) से भला कौन दिल्लीवासी नहीं परिचित होगा। लेकिन क्या आपको इनके नाम के पीछे का इतिहास पता है। कुछ सालों पहले तक राजौरी गार्डन में बाग-बगीचे तो थे भी नहीं। आइए आपको इन दोनों के नाम के पीछे का रोचक इतिहास बताते हैं-
लाडो सराय
लाडो सराय अपने नाम के अनुरूप ही कभी सराय हुआ करता था। स्थानीय निवासी दलबीर के मुताबिक इसका इतिहास 800 साल से भी पुराना है। करीब 700 साल तो इसपर मुस्लिम शासकों ने शासन किया। नाम के पीछे कई कहानियां यहां प्रचलित है। मसलन, 12वीं सदी में हिंदु राजा पृथ्वीराज चौहान ने एक लाडो नाम की लड़की को वचन दिया कि तुम जितना कदम चलकर जमीन नाप लोगी। उस जमीन पर सराय बना दी जाएगी। बाद में जितनी जमीन वो नापी, उसे लाडो की सराय नाम दिया गया। जो आगे चलकर लाडो सराय में तब्दील हो गया। एक अन्य किवंदीति के अनुसार यहां के वंशज लाड सिंह थे जो कन्नौज के राजा जयचंद की फौज में थे। इन्होंने अपने चार बेटों संग पृथ्वीराज चौहान को परास्त किया एवं लाडो सराय की नींव डाली।
भट्टों से लेकर मंडी और गार्डन का सफर
इतिहासकार आरवी स्मिथ कहते हैं कि राजौरी गार्डन का नाम भले ही बगीचे के उपर है लेकिन पहले यहां भट्टे ज्यादा थे। दर्जनों भट्टों की वजह से यह इलाका बहुत ही प्रसिद्ध था। उस समय इसका नाम सिर्फ राजौरी था। सन 1960 में इसे बसाया गया था। जब इसे बसाया गया तो मार्केट, कालोनियाें के प्लॉट के साथ बाग बगीचे भी बसाए गए। जिस कारण इसके नाम के पीछे गार्डन जुड़ गया। इसी तरह मंडी हाउस भी ईंट भट्टों के लिए ही जाना जाता था। हालांकि कुछ लोग इसके नाम के पीछे मंडी के नरेश के यहां आवास को भी मानते हैं। मेट्रो के एक वरिष्ठ पदाधिकारी की मानें तो सन 1940 में मंडी स्टेट के राजा सर जोगिंदर बहादुर ने यहां आवास बनवाया था जो आज भी हिमाचल भवन के रूप में सबके सामने है। हालांकि बाद में इसी भवन के एक हिस्से में दूरदर्शन भवन भी बना। मंडी हाउस मेट्रो स्टेशन भी उन्हीं की टेरिटरि का हिस्सा कहा जाता है।