अटल जी ने पहली बार कहा था रसराज

-कोरोना काल में हम सब को छोड़कर चले गए जसराज

शास्त्रीय संगीत के आसमान पर जो सूरज की तरह चमकते हैं। मेवाती घराने में जिनकी अलग पहचान है। इनकी आवाज का फैलाव साढ़े तीन सप्तकों तक है, जिन्होंने मूर्छना की प्राचीन शैली पर आधारित एक अद्वितीय एवं अनोखी जुगलबन्दी (जसरंगी) अवधारित की और जिनकी आवाज सात सुरों में निखरकर इंद्रधनुष के सात रंगों से मिलकर पूरे विश्र्व में गूंजती है, ऐसे संगीत मार्तड पंडित जसराज की जिंदगी संघर्षो में तपकर कुंदन बनी है। उनकी जिंदगी के हर सफर पर दिल्ली हमसफर बनी है। तभी तो तबियत बिगड़ने पर वो हजरत निजामुद्दीन की दरगाह पहुंच जाते थे। कमानी आडिटोरियम, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर समेत अन्य स्थानों से जुड़े कई ऐसे किस्से हैं जो उनकी ऑटोबायोग्राफी रसराज-पंडित जसराज (pandit jasraj autobiography) में पढ़ने को मिल जाते है। पद्म विभूषण, पद्म भूषण, पद्मश्री, संगीत नाटक अकादमी, मास्टर दीनानाथ मंगेशकर अवार्ड जैसे अन्य कई सम्मानों से सुशोभित किया गया था।

रसराज पंडित जसराज

पंडित जसराज की जिंदगी पर एक ऑटोबायोग्राफी आयी है। जिसे नीता बुद्धिराजा ने लिखी है। कहती हैं, पंडित जसराज से मेरा परिचय सन 1982-83 में वृंदावन में स्वामी हरिदास समारोह में हआ था।उस समारोह का संचालन मैंने किया था। मेरा संचालन पंडित जी को बहुत पसंद आया था। इसके बाद मैं लगभग हर कार्यक्रम में जाती थी। उनकी पत्नी के कहने पर मैंने किताब लिखने का मन बनाया। यह किताब सात साल में पूरी हुई है। किताब लिखने के दौरान 200 से ज्यादा उनके दोस्त, करीबी, रिश्तेदार समेत घरवालों, छात्रों से मिली। इसमें उनका पूरा जीवनक्रम पढ़ने को मिलेगा।

मरी खाल बजाते हो तुम..

पंडित जसराज पहले वो तबला बजाते थे बाद में गायन शुरू किया। आखिर ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने तबला बजाना अचानक बंद कर दिया। इसके पीछे एक बड़ी दिलचस्प कहानी है। जब पंडित जसराज 15 साल के थे तो ये सोलो तबला की प्रस्तुति देते थे। एक बार ये अपने भाई एवं गुरू मणिराम के साथ लाहौर गए थे। वहां पंडित कुमार गंधर्व, मणिराम से मिले और कहा कि उनका एक कार्यक्रम आल इंडिया रेडियो में है। तबला बजाने के लिए जसराज को भेज दें। खैर, अगले दिन जसराज गए एवं कार्यक्रम सकुशल सम्पन्न हुआ। अगले दिन पंडित अमरनाथ उनके बड़े भाई से मिलने आए और कहा कि यदि हमारे वरिष्ठ लोग ही गाने में इस तरह से कुछ अलग करने लगे तो हम लोग क्या करेंगे। उन्होंने पूछा कि क्या हुआ। इस पर अमरनाथ ने कहा कि कुमार गंर्धव ने भीम पलाश गाने में धैवत पर सम रख दिया। इस पर जसराज बोल पड़े कि क्या हुआ जो प्रयोग किया। गाना तो अच्छा था। अमरनाथ ने कहा कि तुम चुप रहो। मरी खाल का तबला बजाते हो, तुम्हें गीत-संगीत की बारीकी का क्या भान। यह सुनकर जसराज रोने लगे। तीन दिन बाद उनके बड़े भाई का एक कार्यक्रम लाहौर में ही था। जसराज, कार्यक्रम से पहले तैयारियों का जायजा लेने पहुंचे तो पाया कि गायक के आसपास तबला, हरमोनियम आदि वालों के बैठने की कोई व्यवस्था नहीं थी। उन्होंने पूछा तो वहां मौजूद कर्मचारियों ने कहा कि –ओए तबले वाले दि मजाल, कि गाने वाले नाल बैठे, ओथे खड विच। यह बात उन्हें चुभ गई। इसके बाद उन्होंने तबला बजाने से ही इंकार कर दिया और गायन सीखने लगे। इस कार्यक्रम के बाद इनके बड़े भाई ने गाना सिखाना शुरू किया। कोई 200 रुपये, कोई 300 रुपये तक तबला बजाने के लिए आफर देता था लेकिन वो मना कर देते थे। दिन में 14 से 16 घंटे रियाज करते हैं। उन्होंने प्रण लिया कि जब तक गाना नहीं सीख लूंगा तब तक बाल नहीं कटवाउंगा।

कभी गिरे तो कभी जामुन गले में अटका

करीब 15 साल पहले की बात है। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में एक कार्यक्रम था। जसराज बच्चों के साथ खेल रहे थे। अचानक उनकी धोती पैर के नीचे फंसी और ये गिरते गिरते बचे। ये आयी गई बात हुई। उसी दिन दिल्ली में किसी के घर गए थे। उन्होंने पंडित जी को रसगुल्ला पेश किया। पंडित जी ने खाया तो रस विंड पाइप में चला गया। उनकी सांस अटक गई। उनकी शिष्या कला राम नाथ ने कहा कि गुरूजी आज दो घटना हो गई। मंदिर चलते हैं, प्रसाद चढ़ाते हैं। ताकि इस तरह की घटना दोबारा ना हो। ऑटो बुक किया गया। पंडित जी ने कनॉट प्लेस स्थित हनुमान मंदिर चलने को कहा। रास्ते में जब आटो निजामुद्दीन दरगाह के सामने से गुजर रही थी तो अचानक पंडित जी ने रुकवा दिया। बकौल पंडित जसराज, दरगाह से उन्हें आवाज आयी और वो खींचे चले गए। वहां उन्हें अंतरआत्मा से आवाज आयी कि हिंदू-मुस्लिम अलग क्यों होते हैं, सब एक ही है। बाद में पंडित जी ने इस पर गाना भी बनाया। मेरा अल्ला मेहरबान।

तीन दिन खुद को कमरे में किया बंद

सन 1955 में जसराज दिल्ली आए तो पंडित रविशंकर से मुलाकात हुई। पंडित रविशंकर ने उनसे कहा कि दो भाई हैं-सलामत अली और नजाकत अली। क्या अच्छा गाते हैं। उन्हें सुनो। पंडित जसराज बताते हैं कि एक कार्यक्रम में उन्हें सुनने का मौका मिला। क्या जबरदस्त गाया। जसराज ने तीन दिन तक अपने आप को कमरे में बंद कर लिया था। न खाना, न पीना, न किसी से बात की। ऐसा कोई था ही नहीं जो पूछता कि मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं। खैर, तीन दिन थोड़ा व्यवस्थित हुए तो कमरे से बाहर निकले। बाद में इन दोनों के कायल हो गए और भूरि भूरि प्रसंशा की।

शीला दीक्षित पहली पंक्ति में ही क्यों?

पंडित जसराज जब भी दिल्ली में गाते, ऑडिटोरियम की पहली पंक्ति में एक महिला लगभग हमेशा दिखती है। वे हैं, दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित। ऑटोबायोग्राफी में लिखा है कि वे संगीत कार्यक्रमों में आती। ऐसा लगता कि मुख्यमंत्री रहते हुए यह उनका एक तरह का दायित्व था। लेकिन मुख्यमंत्री नहीं होने के बावजूद भी वो आती थी। दरअसल, शीला दीक्षित जसराज जी को सुनना पसंद करती थी। उन्होंने कहा कि कई ऐसे कार्यक्रम आयोजित करवाए जिसमें गिरिजा देवी और पंडित जसराज ने प्रस्तुति दी। यह कार्यक्रम आज भी उनके आंखों में बसे हैं। कई बार तो रात के दो-तीन बजे तक प्रस्तुति दी, लेकिन दर्शक टस से मस नहीं होते थे।

अटल जी ने पहली बार कहा था रसराज

लेखिका सुनीता बुद्धिराजा कहती हैं कि पंडित जसराज ने एक बार बताया कि वह अटलजी थे, जिन्होंने पहली बार उन्हें रसराज कहा था। यह उपाधि पंडित जसराज को काफी पसंद था। बुद्धिराजा ने बताया कि भारतीय शास्त्रीय संगीत की अहम हस्ती और ‘संतूर’ वादक पंडित शिवकुमार शर्मा ने उन्हें बताया था कि पंडित जसराज को अपनी उपाधियों और सम्मान में से सबसे ज्यादा रसराज की उपाधि पसंद थी। उन्होंने बताया कि एम्स में वाजपेयी आकाशवाणी एफएम गोल्ड रेडियो स्टेशन पर पुराने हिंदी फिल्मों के गाने और कविताएं सुनते थे।

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