शाह आलम को महरौली में कुतुब साहब की दरगाह में दफनाया गया था। मोती मस्जिद के पास शाह आलम बहादुर जिस अहाते में दफन है, इसी में इसको भी 1806 ई. में दफन किया गया। इसके दाहिनी तरफ इसके बेटे अकबर सानी की कब्र है। इसकी कब्र 6 फुट लंबी, डेढ़ फुट चौड़ी और डेढ़ फुट ऊंची है। मकबरा संगमरमर का बना हुआ है और कब्र भी संगमरमर की ही है।
कब्र के सिरहाने एक खुतबा लिखा हुआ है और कब्र के तावीज पर कुरान की आयतें दर्ज हैं। इसकी कब्र और अकबर शाह सानी की कब्र के बीच में बहादुर शाह की कब के लिए, जो मुगलिया खानदान के आखिरी बादशाह थे, जगह छूटी हुई थी, लेकिन 1857 ई. के गदर के हालात के परिणामस्वरूप बादशाह को गद्दी से उतारकर रंगून भेज दिया गया, जहां उसकी मृत्यु हुई और उसे दफन किया गया।
इस प्रकार शाहजहां के काल से, जब से मौजूदा दिल्ली आबाद हुई, और शाह आलम के जमाने तक, जब कि दिल्ली अंग्रेजों के हाथों में चली गई, हालात देखने से पता चलता है कि शाहजहाँ तो औरंगजेब द्वारा कैद किए जाने तक दिल्ली में ही रहता रहा। औरंगजेब अपनी सल्तनत के शुरू काल में दिल्ली में रहा। उसके दरबार में दो विदेशी- बर्नियर और देवर्नियर आए जिन्होंने दिल्ली का हाल लिखा है और उसी जमाने में अर्थात 1666 ई. के करीब शिवाजी दिल्ली आए, जो मुगल सल्तनत के सही बरबाद करने वाले कहे जा सकते हैं। चांदनी चौक ने यदि कोई सबसे बढ़कर दर्दनाक और शोकप्रद दृश्य देखा है, तो दाराशिकोह की गिरफ्तारी के बाद उसकी नुमाइश का, और उससे भी बढ़कर उसके शव के दर्दनाक प्रदर्शन का।