छुट्टियों में बच्चे मौज मस्ती के दिनों को गुल्लक में सहेजने में व्यस्त हैं। साल भर स्कूल में पढ़ाई व धमाचौकड़ी मचाने वाले मासूम बच्चे इन दिनों घर को गुलजार किए हुए हैं। बच्चों की छुट्टियों में कई लोग पहाड़ों की सैर पर निकल गए हैं तो कुछ गांव, तो कुछ दिल्ली में ही फ्लैट्स के बालकनी में खेल कर खुश हैं। बच्चों को व्यस्त और सीखाने के लिए स्कूल वर्कशॉप आयोजित कर रहा है लेकिन बच्चों को घूमने जाने की जिद्द तो बड़ी है। बच्चों के लिए छुट्टियों का मतलब घूमना फिरना है, थोड़ी मौज मस्ती भी करनी है, थोड़ी शरारतें भी, तो सैर भी। ऐसे में राजधानी में भी बच्चों के लिए कई अनोखे संसार हैं (Places to Visit in Delhi for Kids), जहां बच्चे खेल खेल में सीख सकते हैं और रोमांचित हो सकते हैं। इस दुनिया में गुड़िया- गुड्डे, रेल के डिब्बे, चांद और तारे और इन लम्हों को गुल्लक में जमा कर लेने का सुख भी मौजूद है।
गुड्डे -गुड़ियों का अनूठा संसार
शंकर इंटरनेशनल डॉल म्यूजियम (shankar international doll museum) देश का अनूठा गुड्डे गुड़ियों का संसार है। अनूठे पन के अहसास के लिए इस संसार की गलियों में घूमना जरुरी है। आईटीओ मेट्रो स्टेशन के ठीक बगल में ही अंतरराष्ट्रीय स्तर का संग्रहालय का रास्ता जाता है। शीशे के गेट से अंदर जाते ही रशिया की गुड़ियां मुस्कुराती स्वागत करती नजर आती हैं। रशिया की संस्कृति में रची बसी गुड़ियों को हंसते, रोते, खेलते मुस्कुराते, नाराज से मुंह बनाते देखे जा सकते हैं। वहीं, ऑस्ट्रेलिया में 1800 से लेकर 1990 तक कैसे बदलता रहा फैशन इसकी भी मासूम सी झलक गुड़ियां दिखाती हुई नजर आएंगी। पुर्तगाल में बुल फाइट को गुड्डे नजर आएंगे। क्यूबा, मेक्सिको, तुर्कमेनिस्तान, इटली, कजाक्सितान, न्यूजीलैंड, आरयलैंड, कनाडा, नार्वे, स्पेन की डांसिंग गुड़ियों की झलक। गुड़ियों के माध्यम से करीब 85 देशों की खूबसूरत संस्कृति से रूबरू हो सकते हैं। मासूम बच्चे यहां इन गुड़ियों की मासूमियत से गप्पें लड़ातें दिखाई देते हैं। मिट्टी, कपड़ों और अन्य चीजों से तैयार गुड़ियों में बच्चों सी मासूमियत है। हाल ही में जापान और कोरिया से नई गुड़ियां लाई गई हैं। जापान की गुड़ियों का यह सेट काफी सुंदर हैं। वहां भी बचपन पतंगों की डोर से होते हुए सपनों के संसार में गोते लगाते नजर आऐंगे। वहीं, कोरिया में गीत संगीत के प्रति बच्चों की चाहत देखी जा सकती है। इन सब के बाद देश के कई प्रांतों की खूबसूरत झलक भी देखी जा सकती है। देश के रीति रिवाज, शादी ब्याह में पहने जाने वाले परिधान, तीज त्योहार को गुड़िया बताती नजर आती हैं। केरल की नृत्यशैली कथककली करते हुई गुड़ियां काफी पसंद की जाती है। दुल्हन बनी गुड़ियों को देख कर शायद हर कोई एक पल के लिए अपने बचपन में वापस लौट जाएगा जहां उनकी भी एक गुड़िया हुआ करती थी जिसकी शादी रचाने का खेल खेला जाता था।
शंकर डॉल संग्रहालय की सलाहकार शांता श्रीनिवासन बताती हैं कि शंकर इंटरनेशनल डॉल म्यूजियम की स्थापना की कल्पना हंगरी की उस गुड़िया से शुरू हुई जब मशहूर कार्टूनिस्ट के शंकर पिल्लई को वो गुड़िया भेंट में मिली। उस गुड़िया में अजीब सी कशिश थी जिसने इस संसार को जन्म दे दिया। उसके बाद गुड़िया लाने का सिलसिला शुरू हो गया। भारत में बनाई जाने वाली गुड़ियों के बदले में कई देश की गुड़ियां लाई गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने जवाहरलाल नेहरू ने इस कल्पना को संग्रहालय की शक्ल दे दी। दिल्ली में जब चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट के भवन का निर्माण हुआ तो उसके एक हिस्से में गुडिय़ों के लिए घर बनाया गया। इस तरह दुनियाभर की गुड़ियों को रखने के लिए एक अनोखा घर मिल गया। गुड़िया घर का प्रारम्भ 1000 गुडियों से हुआ था। वर्तमान समय में यहां 85 देशों की करीब सात हजार गुड़ियों का संग्रह देखा जा सकता है।
वे बताती हैं कि यहां गुड़ियों को बनाने का कार्याशाल भी हैं। मिट्टी से तैयार की जाने वाली गुड़ियों को बनाने में एक हफ्ते का समय भी लग जाता है। इस वर्कशॉप से लोग गुड़ियां खरीद कर ले जा सकते हैं।
भाप के इंजन, शाही सफर की सैर
राष्ट्रीय रेल संग्रहालय (rail museum) सिर्फ बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि उनके अभिभावकों के लिए भी एक ऐसी जगह है जहां वे कुछ पलों के लिए ही सही लेकिन अपने बचपन को जी लेते हैं। म्यूजियम में करीब 95 तरह की रंग बिरंगे रेल इंजन हैं। एक छोटा ही सही पर स्टेशन है, एक पुरानी बड़ी घड़ी है और कई बच्चे जिन्हें छोटी सी ट्रेन का इंतजार है। यही से मौज मस्ती का सफर शुरू होता है। जॉय ट्रेन की राइड सिर्फ पांच मिनट की होती है, लेकिन इसमें करीब सौ साल के रेल इंजन में आते बदलाव और कई प्रदेशों के रेल इंजन के सफर भी हमसफर बन जाते हैं। छोटी सी ट्रेन के सफर की शुरुआत में पेशावर से लाया गया भाप से चलने वाला इंजन है। कुछ लोग इस पर चढ़ कर सेल्फी लेते दिखाई देते है, तो कुछ लोग जॉय ट्रेन के साथ-साथ चलते दिख जाते हैं। इस सफर में प्रिंस ऑफ वेल्स के लिए बनायी गई बोगी है, तो इसमें वीआईपी यात्रियों के लिए खास डिब्बा है, बंगाल नागपुर रेलवे का इंजन, पीले रंग की फायरलेस लोको(इंजन), फेयरी क्वीन, मोरिस बेलसाइज इंजन, पटियाला स्टेट मोनोरेल ट्रेनवेज, राजपुताना मालवा इंजन जैसे कई इंजन को देखते देखते सुरंग में ट्रेन जाते ही बच्चों का शोर शुरू हो जाता है।
कुछ क्षण के बाद ट्रेन नीलगीरी और असम, दार्जलिंग के इंजन के करीब से गुजरते हुए मोनो रेल के भी दर्शन कराती है जो कुछ महीने पहले शुरू हुई है। यह एक पटरी पर चलती है और ट्रेन का आठवां हिस्सा जितना छोटा है। लोग ट्रेन के बोगियों के छत पर बैठ कर आनंद लेते भी दिखाई देते हैं। इन नजारों के साथ ट्रेन वापस उसी प्लेटफार्म पर लग जाती है। फिर से शुरू होती है इन इंजन के गलियारों की सैर। इनके साथ कुछ पुराने ठाठ और शाही अंदाज लिए बोगियां भी हैं। बोगियों के शीशों से झांक कर इनमें रखे चंदन की लकड़ी के बेड, कुर्सी, पंखे देखे जा सकते हैं। रेल के इंजन में आते बदलाव को और करीब से जानने के लिए एसी हॉल में जाया जा सकता है। इसमें रेलवे के शुरुआती सफर की कई चीजें रखी गई हैं।
हॉल में प्रवेश करते ही सीलिंग पर लटके तीन तरह के रेल के डिब्बे दिखाई देते हैं। अकसर बच्चों के मन में यह सवाल आता होगा कि रेल नीचे से कैसा दिखाई देता है तो प्रश्न का जवाब देते हुए तीन तरह के डिब्बे, फिर पहले चलन में रहे सिक्के नुमा वीआईपी पास, मेटल के कई प्रांतों के रेलवे कर्मचारियों के अलग अलग बैज, म्यूजियम का पहला टिकट जैसी चीजें देखी जा सकती है। फिर पहले इंजन के बनने का सफर इसमें रिचर्ड द्वारा 1804 में बनाए गए इंजन का मॉडल, फिर रोबर्ट स्टीव द्वारा विकसित किया गया इंजन, शाही लोगों के लिए बनाए गए बोगियां, महात्मा गांधी की अस्थियां ले जाने वाली रेलवे कोच, बंगाल और बिहार में चलने वाली फेरीशिप के मॉडल भी देखे जा सकते हैं। फेरीशिप भी कभी रेलवे के अधीन हुआ करता था। यह पुल की तरह काम किया करता था। इस सफर का रोमांच का अंदाजा भर लगाया जा सकता है जब रेलगाड़ी एक जहाज में समा जाती होगी और उसमें बैठे यात्री पानी के जहाज के सफर का भी आनंद उठाते होंगे। यह बात देश की आजादी के पहले की है। इस फेरी शिप को माल ढुलाई के लिए भी इस्तेमाल किया जाता था। इसके बाद भारत में रेलवे की नींव रखने वाले लॉर्ड डलहौजी की बड़ी सी तस्वीर है और कुछ इतिहास की जानकारी भी है।
इस गैलरी के बाद प्रिंसली स्टेट के रेलवे के लोगों की झलक भी देखी जा सकती है। आजादी से पहले रेलवे प्रांत के अधीन हुआ करता था इनमें कुछ राजसी प्रांत भी थे। मैसूर के राज, महाराजा धौलपुर, सिंधिया स्टेट, मालवा स्टेट जैसे कई शाही अंदाज से लैस रेलवे का अलग अंदाज भी हुआ करता था। इसी गैलरी में आगे इंजन के चलने की पूरी प्रक्रिया देखी जा सकती है। गैलरी में रखे कुछ पुराने फर्नीचर भी आकर्षण का केन्द्र हैं। पहले टिकट काटने के लिए रेलवे कर्मचारियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली ऊंची कुर्सी है, तो शाही डिब्बों में ऊपर की सीट पर जाने के लिए सीढ़ियां भी हैं। बच्चे इस संग्रहालय की गैलरी में क्यिोस्क को टटोलते हुए भी दिख जाते हैं।
चांद तारों की बातें भी होंगी
रेलवे के सफर की कुछ पुरानी यादों के बाद कुछ चांद तारों की रोचक दुनिया की भी सैर की जा सकती है। चाणक्य पुरी के तीन मूर्ति भवन में स्थित तारामंडल में रोजाना हजारों बच्चे सौर्य मंडल की कहानी को जानने के लिए आते हैं। तारामंडल में एक सं्रग्रहालय है तो एक थियेटर जहां हर रोज चार शो दिए जाते हैं। तारामंडल भवन में प्रवेश करते ही गैलरी संग्रहालय की तरफ ले जाती है, जिसमें तारामंडल के क्षेत्र में भारत के योगदान के साथ एस्ट्रोनॉट के यान देखे जा सकते हैं। एस्ट्रोनॉट राकेश शर्मा का सोयूज 10 नामक विमान भी देखा जा सकता है। बच्चों के लिए इंटरएक्टिव सेक्शन बनाए गए हैं। चित्रों के सहारे तारामंडल के दुनिया की खोज के विभिन्न आयाम से रूबरू होते हैं बच्चे। शनिवार शाम को टेलीस्कोप से बच्चे तारों की दुनिया में झांक सकते हैं। बच्चों को सचमुच में तारों के करीब जाना बेहद अच्छा लगता है। इसके अलावा अंतरिक्ष की दुनिया में करीब 45 मिनट की सैर की जा सकती है। रोजाना यहा चार शो आयोजित किए जाते हैं। डोम शेप थियेटर में चांद तारे और बच्चों के सवालों का जवाब एक एक करके सुने और महसूस किए जाते हैं। इसके अलावा इन दिनों मटका प्लेनेटोरियम गैलरी भी काफी चर्चा में है। इन गैलरी में कुछ पांच छह मटके रखे गए हैं जिसमें बच्चे अपने पसंद के तारे का चित्र बना सकते हैं।
तारों की दुनिया से मुलाकात जरुरी है
डॉ. एन रत्नाश्री, नेहरू तारामंडल
नेहरू तारामंडल बच्चों की पंसदीदा स्थानों में से एक है। यहां बच्चे खेल खेल में तारामंडल के बारे में जानते हैं इसलिए उन्हें यहां आना बेहद अच्छा लगता है। शनिवार को बच्चे यहां टेलीस्कोप से तारामंडल के कुछ ग्रह भी देख सकते हैं। गर्मियों की छुट्टियों में तारामंडल बच्चों के लिए खास आयोजन करता है। जैसे अभी तारे बनने की पूरी प्रक्रिया को एक नाटक के माध्यम से बच्चों को समझाने की तैयारी चल रही है। मई में कठपुतलियों के खेल के सहारे बच्चों को तारामंडल के बारे में बताया गया। सौर्य मंडल और ग्रह बनने के सफर में । यह सब जानकारी किताबों में है लेकिन इसे रोचक तरीके से बच्चों को समझाने के लिए उनकी पसंद के माध्यम को चुना जाता है। बच्चे खेल खेल में बहुत कुछ सीख जाते हैं, इसी तरह वे मनोरंजन के माध्यम से भी बहुत कुछ सीखते हैं। मौजूदा समय में बच्चे ही तारा के किरदार के माध्यम से दूसरे बच्चों को जानकारी दे सकते हैं और नाटकों में भाग लेने के लिए प्रेरित होते हैं।