कुतुब साहब की लाट के करीब दक्षिण-पश्चिम में ऊधम खां के मकबरे के दक्षिण में एक आलीशान मकान है, जिसे सिकंदर लोदी के एक अमीर दौलत खां ने 1516 ई. में बनवाया था। मकान चूने और पत्थर का बना हुआ है, मगर निहायत आलीशान है। यहीं एक बावली निहायत खूबसूरत बनी हुई है। बावली के उत्तर में 66 सीढ़ियां हैं, जो पानी तक चली गई हैं। पास में ही एक मस्जिद है। चूंकि इसमें राजा रहा करते थे, इसलिए इसका नाम राजाओं की बावली पड़ गया।
लंगर खां का मकबरा
इसे भी सिकंदर लोदी के एक अमीर लंगर खां ने मौजा जमरुंदपुर और रायपुर को सीमा पर 1494 ई. में अपने लिए बनवाया था। कमरा, जिसमें लंगर खां की कब्र है, जमीन से छत तक 33 फुट ऊंचा है। इसमें तीन दरवाजे हैं। सारी इमारत चूने पत्थर की बनी हुई है।
तिबुज
मुबारकपुर कोटले की बस्ती से निकलते ही मोठ की मस्जिद के पास पश्चिम की ओर कई बुर्ज बने हुए हैं। इनमें तीन गुंबद छोटे खां, बड़े खां और भूरे खां के हैं। ये लोदियों के काल 1494 ई. के बने हुए हैं। बीच का बुर्ज दूसरे दोनों से दुगुना ऊंचा है। तीनों चौकोर हैं। (17 गुंबद काले खां का भी है, जिसमें काले खां दफन है। उसकी मृत्यु 1481 ई. में हुई थी)।
दरगाह यूसुफ कत्ताल
यह दरगाह खिड़की की मस्जिद के पास है। यह 1497 ई. में सिकंदर लोदी के समय में बनाई गई। बुर्ज और इधर-उधर की जालियां लाल पत्थर की हैं, और गुंबद चूने का है। गुंबद के हाशिए पर चीनी का काम बना हुआ है। एक और चूने पत्थर की मस्जिद है। यूसुफ कत्ताल भी जलालुद्दीन लाहौरी के शिष्य थे।
शेख शहाबुद्दीन ताज खां और सुलतान अबूसईद के मकबरे
ये दोनों सिकंदर लोदी के उमरा थे। ये मकबरे खडेडा गांव में बने हुए हैं। इनका नाम बाग आलम पड़ गया है। मकबरे बहुत खूबसूरत बने हुए हैं।