1856 और 1857 में दिल्ली का रेजिडेंट थियो मैटकाफ भी बुरे दौर से गुजर रहा था। अपने पिता और बीवी को अचानक खो देने के बाद उसने चाहा कि अपने आपको काम में डुबो दे और अपने ज्वाइंट मजिस्ट्रेट के काम में अपना पूरा ध्यान लगा दे। लेकिन एक छोटे से बच्चे की ज़िम्मेदारी अकेले उठाने और अपने पिता की लाइब्रेरी और मैटकाफ हाउस का बाकी सामान बेचने के मायूसी भरे फर्ज़ से उस पर बहुत बोझ पड़ा। वह अपने बच्चे को अपनी मृत बीवी की याद में सीने से कभी भी दूर नहीं रख सकता था। “मुझे उसको दिन में कई घंटे के लिए बगैर किसी औरत की निगरानी के छोड़ना पड़ता है फिर भी उसको बेइंतहा मुहब्बत देता हूं जो मुझे बचपन में कभी न मिली और जिसकी कमी मैं आज तक महसूस करता हूं।”
जैसे-जैसे 1856 गुज़रता गया, उसकी दिमागी उल्झन के बोझ से उसकी सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ा, खासकर उसकी आंखों पर। उसने अगस्त 1856 में जीजी को मेरठ से लिखा:
“तुमको यह सुनकर बहुत अफसोस होगा कि मेरी बाईं आंख में पिछले कई महीनों से दर्द है और यह बहुत कमज़ोर हो गई है। जिसकी वजह से मैं इसका इस्तेमाल करने से बिल्कुल माजूर हो गया हूं और मुझे तीन महीने के लिए काम छोड़ना पड़ा है। हो सकता है कि इतना समय भी इसके ठीक होने के लिए काफ़ी न हो। मुझे एक बिल्कुल अंधेरे कमरे में रहने की सलाह दी गई है जो मेरे लिए कोई बहलाने का तरीका नहीं है। मैं दिल्ली जाकर अपने पिता के सामान का भी कोई इंतज़ाम नहीं कर सकता हूं। अगर मुझे महसूस हुआ कि महीने के आखिर तक मेरी आंख कुछ बेहतर है जो मैं पहाड़ों पर जाकर कुछ दिन गुज़ारना चाहता हूं। क्या तुम किसी विधवा औरत को जानती हो जो एक अकेले आदमी की देखभाल कर सके क्योंकि मैं बिल्कुल लाचार हूँ। मुझे लिखने और पढ़ने के लिए भी बिल्कुल मना कर दिया गया है।
जॉजीना उस वक्त कश्मीर छुट्टियां गुज़ारने गई हुई थी। उसने फ़ौरन थियो को लिखा कि वह खुद उसके बेटे चार्ली की देखभाल करेगी। थियो ने हिचकिचाते हुए लेकिन आभारी होते हुए इस प्रस्ताव को मान लिया। उसने जामा मस्जिद के इश्तहार को दीवार से फाड़ने के बाद ही अपने बहनोई एडवर्ड कैंपबैल को लिखा था कि उसे अच्छी आबो-हवा की सख्त जरूरत है और अगर किस्मत ने साथ दिया तो वह मई 1857 में उसके और जीजी के पास पहाड़ आ सकेगाः “मैं बिल्कुल समझ नहीं पा रहा हूं कि यह बेहिसी मेरे ऊपर क्यों छा जाती है जो मुझ पर एक बोझ बन जाती है और मुझे बिल्कुल बेबस कर देती है। मुझे लगता है कि जब तक मुझे काम से बिल्कुल रिहाई न मिलेगी और मैं मुकम्मल तौर पर एक लंबी छुट्टी नहीं पाऊंगा, तब तक बेहतर नहीं हो पाऊंगा।
कैंपबैल को थियो के साथ जीजी से कम हमदर्दी थी। जब से उसका संरक्षक सर चार्ल्स नेपियर, जिसका वह कलकत्ता फोर्ट विलियम में एडीसी रह चुका था, हिंदुस्तान से वापस गया था, उसकी अपनी नौकरी डांवाडोल हो रही थी। उसे और उसकी 60 राइफल रेजिमेंट को अब पंजाब-सिंध की सरहद पर मुल्तान के आसपास के इलाके का सर्वेक्षण करने को भेजा जा रहा था जो महाद्वीप का सबसे गर्म क्षेत्र माना जाता था। यह नौकरी वित्त और प्रतिष्ठा के लिहाज़ से पहले से बहुत कमतर थी और फोर्ट विलियम के मुकाबले में कुछ भी नहीं थी। इसलिए जब उसको पता चला कि उसकी कम आमदनी में थियो के बच्चे और उसकी आया का खर्च भी शामिल हो जाएगा तो उसको बहुत गुस्सा आया और उसने जीजी को कश्मीर ख़त लिखा कि “मैं थियो से बहुत खफा हूं। उससे किराये की बात करना बिल्कुल बेकार है क्योंकि वह कोई इशारा भी नहीं समझेगा। हमें हिसाब रखना चाहिए कि चार्ली और मिसेज़ बैक्सटर पर कितना खर्च हुआ। और उससे कहना चाहिए कि उसको अदा करे। “”
कैंपबैल को और भी परेशानियां थीं जो उसकी पैसों की कमी और साले की बेहिसी से बढ़कर थीं। फ़ौज में उसको पंजाब के सिपाहियों की ट्रेनिंग का इंचार्ज बना दिया गया था, जिनको बिल्कुल नए और बहुत आधुनिक हथियार दिए गए थे। उसने जीजी को लिखाः
“मैं रेजिमेंट के कामों में बुरी तरह उलझा हुआ हूं। नई एफील्ड राइफलों की पूरी ज़िम्मेदारी मुझ पर है। हमारे सिपाहियों को यह पुरानी राइफलों के मुकाबले में बिल्कुल नापसंद हैं। शायद बाद में वह इनको कुबूल कर लें लेकिन अभी तो समझ में नहीं आता कि क्या किया जाए। हालात काफी खराब हैं क्योंकि हम इनको इतनी बार खाली करके साफ नहीं कर सकते जितना करना चाहिए। हमारे पास बहुत कम बारूद है और चंद बार फायर करने के बाद वह बहुत गंदी हो जाती हैं और उनको भरना मुश्किल हो जाता है।