जब कंपनी के हमले से बाल-बाल बचे बहादुर शाह जफर,दासी की गई जान
1857 की क्रांति: विद्रोही लाल किले में मौजूद थे। ईस्ट इंडिया कंपनी के सिपाही लगातार लाल किले पर हमला कर रहे थे। किले में दोबारा कब्जा जमाने के मकसद से सिपाही डटे थे। अंग्रेजों द्वारा छोडे गए एक गोले ने यमुना के किनारे बने हुए शाह बुर्ज को बहुत नुकसान पहुंचाया। दूसरा गोला लाल किले में बादशाह के महल यानी लाल पर्दे के करीब आकर गिरा, जिसकी वजह से एक अस्तबल का नौकर मारा गया।
एक और गोला महल के दक्षिण में स्थित जनानखाने पर गिरा, जिससे ज़ीनत महल की एक खास दासी चमेली कुचल गई। उसके बाद जीनत महल किले को छोड़कर लाल कुएं की अपनी हवेली में चली गई, जिसे वह कम असुरक्षित मानती थीं और शायद उन सिपाहियों की मौजूदगी से आज़ाद भी, जो अब किले में हर जगह मौजूद थे। इससे वह अपने और अपने लाड़ले इकलौते बेटे जवांबख्त, और क्रांतिकारियों के बीच कुछ दूरी बरतने में भी कामयाब रहीं।”
इसके कुछ ही समय बाद गोलों की एक बौछार में बादशाह सलामत खुद बाल-बाल बचे। सईद मुबारक शाह जिसे हाल में ही मुईनुद्दीन की जगह कोतवाल बनाया गया था, उस वक्त महल में ही मौजूद था।
उसने लिखाः
“एक सुबह आठ बजे बादशाह के अपने कक्ष से बाहर आने से पहले तीस-चालीस अमीर महल में हीज के चारों ओर बैठे उनका इंतजार कर रहे थे। जैसे ही बादशाह सलामत अपने निजी कक्ष से बाहर निकले, तीन गोले उनके बिल्कुल सामने और पीछे आकर गिरे और फट गए लेकिन हैरतअंगेज ढंग से किसी को चोट नहीं आई। बादशाह फौरन वापस चले गए और बाकी लोग भी, जो वहां बैठे थे उठकर चले गए।
उसी शाम को बादशाह ने फौज के बड़े अफसरों को बुलवाया और उनसे कहा, ‘मेरे भाइयो, अब तुम्हारे लिए या दिल्ली के बाकी शहरियों के लिए या खुद मेरे बैठने के लिए भी कोई सुरक्षित जगह नहीं रह गई है। इस लगातार होती गोलाबारी ने उसको भी खत्म कर दिया, जैसा कि तुम देख रहे हो। जिस हौज पर मैं रोजाना आकर बैठता था, उस पर भी गोला-बारूद बरस रहा है। तुम कहते हो कि तुम यहां लड़ने और ईसाइयों को भगाने आए हो। क्या तुम इतना भी नहीं कर सकते कि मेरे महल पर हो रही इस गोले-बारूद की बारिश को रोक दो? जफर के लिए इस हफ्ते में यह परेशानी का दूसरी घटना थी। 14 जून को उनके खास खिदमतगार महबूब अली खां की अचानक मौत हो गई। वह काफी दिन से बीमार था, मगर किले में अफवाह थी कि उसको जहर दिया गया है।