जब दर्द से कराहते हुए जफर को अदालत से ले जाना पड़ा बाहर

1857 की क्रांति: अंग्रेजी सरकार ने बहादुर शाह जफर पर मुकदमा चलाया। उनके ऊपर अभियोग लगाने के लिए तीसरी कैवेलरी के मेजर जेएफ हैरियट को जज एडवोकेट जनरल नियुक्त किया गया। मुकदमा शुरू हुए करीब दो महीना हो गया था।

अक्सर जफर की बीमारी की वजह से उसको मुलतवी करना पड़ता था। एक बार ज़फ़र को कराहते हुए अदालत से ले जाना पड़ा। शुरू-शुरू में उनके चेहरे पर परेशानी और घबराहट के आसार थे ‘लेकिन जैसे-जैसे हफ्ते गुजरते गए, उनका चेहरा जज़्बात से खाली होता गया और उन्होंने बिल्कुल उदासीनता ओढ़ ली या महसूस करने लगे। कार्रवाई के वक्त वह ज़्यादातर बिल्कुल निष्क्रियता जैसी स्थिति मे रहते और आंखें बंद किए रहते।”

कोर्ट मार्शल आखरी बार 9 मार्च को दिन के ग्यारह बजे एक खचाखच भरी अदालत में बैठा। हैरियट ने ढाई घंटे का समापन भाषण दिया, जिसमें उसने फिर से गदर के एक अंतर्राष्ट्रीय इस्लामी साजिश होने की अपनी थ्योरी को दोहराया। उसने कहा, “मेरी कोशिश बाहरी है कि साबित कर सकूं कि यह कैदी हिंदुस्तान में मुसलमानों का लीडर होने की हैसियत से उस साजिश के संगठन से उसके अगुआ या बेजमीर मददगार की हैसियत से किस हद तक जुड़ा रहा है… अब जबकि मुसलमानों की दगाबाजी सावित हो चुकी है, क्या मुझे सुनने वाला कोई भी यह यकीन कर सकता है कि एक सोची-समझी साजिश से इसका कोई ताल्लुक नहीं था… अगर हम उन तमाम हालात पर गौर करें जो हमें अपनी गहरी छानबीन के दौरान विभिन्न जरियों से हासिल हुए हैं, तो हम देखेंगे कि किस तरह वह सारे प्रमुख बिंदु मुसलमान हैं जो इससे जुड़े हुए हैं।

एक मुसलमान मौलवी, जो अज्ञात के बारे में जानने और चमत्कारिक शक्तियां रखने का झूठा दावा करता है-एक मुसलमान बादशाह, उसका धोखा खाया व्यक्ति और उसका साथी-ईरान और तुर्की की इस्लामी ताकतों के लिए एक खुफिया इस्लामी दूतावास-मुसलमानों की हमारे पतन के बारे में भविष्यवाणियां–हमारी हुकूमत के बाद इस्लामी हुकूमत-मुसलमान कातिलों द्वारा क्रूर हत्याएं-मुसलमान उत्थान के लिए एक मजहबी जंग-एक मुसलमान प्रेस जो उनकी बिल्कुल बेउसूल मददगार है–और मुसलमान सिपाहियों का गुदर की शुरुआत करना। मेरा कहना है कि इस सब में हिंदू मजहब का न कहीं प्रतिनिधित्व है और न मौजूदगी…”

हैरियट ने आखिर में एक और बात कही, जिसमें उसने इस बात की कड़ी आलोचना की कि बगावत का किसी तरह से भी ईसाई मिशनरियों या उनके प्रचार से कुछ संबंध था, जैसाकि कुछ लोग कह रहे थे; “जीजस के मानने वालों में इजाफा करने के लिए जो स्पष्ट और खुली कोशिश की गई है, वह मेरी राय में यहां के निवासियों में कहीं भी नापसंद की नजर से नहीं देखी गई है… ईसाइयत को अगर उसकी शुद्ध रोशनी में देखा जाए तो वह यहां के लोगों के लिए किसी खतरे का कारण नहीं है.. शाम तीन बजे से कुछ पहले, जज अपने फैसले पर गौर करने अंदर चुने गए। कुछ ही मिनट बाद, उन्होंने एकमत से जफर को मुजरिम करार दे दिया, ‘हर उस इल्जाम का जो मुकद्दमे के दौरान उन पर लगाए गए हो।

पीठ के अध्यक्ष ने कहा कि आम हालात में, ‘एक गद्दार और अपराधी श्री मील के अध्यक्ष ने कहा कि आम हालात की गारंटी की बदौलत देती सीता नामुमकिन थी। इसलिए जफर को सजा दी गई कि ‘उन्हें अपनी जिंदगी के बाकी दिनों के लिए अंडमान द्वीप या किसी ऐसी जगह भेज दिया जाएगा जिसका चयन काउंसिल में गवर्नर जनरल करेंगे’।

इसके बाद सात महीने और गुजर गए, और इस दौरान दिल्ली, कलकत्ता, रंगून, अंडमान और यहां तक कि केप कॉलोनी के बीच भी, पत्राचार चलता रहा, और अंग्रेज़ ज़फ़ के निर्वासन के लिए उचित जगह ढूंढ़ते रहे। साथ ही यह भी खतरा था कि जब तक हिंदुस्तान के पूर्वी इलाकों में बगावत बिल्कुल खत्म नहीं हो जाती, तब तक जफर को निर्वासित करने के दौरान उन्हें छुड़ाने की कोशिश की जा सकती है।

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