1857 की क्रांति: 14 सितंबर को निर्णायक जंग होनी थी। क्रांतिकारी भी पूरी तैयारी कर चुके थे। विलियम डेलरिंपल ने अपनी किताब आखिरी मुगल में लिखा है कि जंग से ठीक पहले की शाम लोग ज्यादातर अपनी वसीयतें और आखरी खत लिखने में व्यस्त रहे।

एक नौजवान अफसर ने अपनी परेशाना मां को लिखाः “कल हम लोग दीवारों पर चढ़ेंगे। आपको मालूम है यह कैसे होगा-सीढ़ी लगाकर तेजी से चढ़ना, जबकि ऊपर से लोग गोली चलाकर और संगीनों से हमको नीचे गिराने की कोशिश कर रहे होंगे।

लेकिन हमको बस अपनी तलवार घुमाकर यह सोचना होगा कि यह बड़ा मजेदार काम है, और फिर जितनी जल्दी मुमकिन हो अपने आदमियों को ऊपर लाना होगा। और फिर उन लोगों पर कूद पड़ना होगा, जो हाथों में संगीनें लिए हमारा इंतजार कर रहे होंगे।

यह सब ठंडे दिल से सोचना आसान नहीं है लेकिन जब वह वक़्त आता है, तो जोश में आकर आदमी जितनी मुमकिन हो खुशी महसूस करता है… उम्मीद है कि मैं गालियां देने पर नहीं उत्तर आऊंगा। हालांकि अगर कोई जोश से पागल हो जाए, तो इसकी इजाजत होनी चाहिए। मुझे नहीं मालूम कि आप क्या सोच रही होंगी। लेकिन मैं ऐसा न करने की पूरी कोशिश करूंगा।

एडवर्ड कैंपबैल ने रिज पर पादरी रॉटन के चर्च की आखरी सभा में भाग लिया,  जबकि उसने यूकेरिस्ट मनाया- ‘एक बहुत प्रभावशाली और गंभीर अवसर’ और सेंट पॉल के टिमोथी को लिखे हुए पत्र से उपदेश दिया।  ‘मैं अपनी बलि देने को तैयार हूं’। लेकिन रॉटन ने बहुत चाव से जो सुनाया वह बाइबिल की कहानी थी, जिसमें नीनवा के ‘झूठ और लूटमार से भरे खूनी शहर’ के पतन की भविष्यवाणी की गई थी।

यह कहानी रॉटन को बहुत पसंद थी और उसने बड़ी तफ्सील से इसको सुनाया, और नेहम की किताब से यह पढ़ा ‘घेराबंदी के लिए हौसला जुटाओ और अपने किले को मजबूत करो। तब आग तुमको घेरेगी और तलवार तुमको काटेगी, यह तुम्हें घुन की तरह चाट जाएगी… वहां मकतूलों का एक ढेर है और बड़ी संख्या में लाशें हैं. वह अपने मुर्दों पर खुद ही ठोकर खाकर गिरेंगे।

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