रेलवे पटरियों के निर्माण के लिए पुरानी दिल्ली की कई इमारतों को तोडा गया

पश्चिम रेलवे, जो गदर के समय बिछ रही थी, पहली अगस्त सन् 1864 को खुली और दिल्ली में पहली जनवरी 1867 को, जब यमुना का पुल बनकर तैयार हुआ, पहुंची। रेल की डबल लाइन 1902 में गाजियाबाद से दरिया तक तैयार हुई और 6 मार्च 1913 को जब कि यमुना का दूसरा पुल बनकर तैयार हुआ, दिल्ली तक पहुंची। दिल्ली-अंबाला-कालका लाइन पहली मार्च, 1891 को खुली छोटी लाइन रिवाड़ी से दिल्ली तक 14 फरवरी 1873 को खुली।

दक्षिण पंजाब भटिंडा रेलवे 10 नवंबर 1897 को खुली। दिल्ली-आगरा लाइन दिल्ली सदर से कोसी तक 15 नवंबर 1904 को और आगरा तक, उसी साल 3 दिसंबर को खुली। दिल्ली सदर से दिल्ली जंक्शन तक 1 मार्च 1905 को आई । इन्हीं दिनों में सदर का पुल बना, मोरी गेट का डफरिन पुल 1884-88 में बना। तभी फराशखाने का काठ का पुल और कश्मीरी गेट का लोथियन पुल बना। शाहदरा-सहारनपुर लाइन मई 1907 में खुली।

इस प्रकार शहर की बहुत बड़ी आबादी का खासा बड़ा हिस्सा, जो कश्मीरी दरवाजे और चांदनी चौक के बीच में पड़ता था, रेल की नजर हो गया। काबुली दरवाजे से लाहौरी दरवाजे तक की फसील का बहुत बड़ा हिस्सा इसी काम के लिए तोड़ दिया गया। तीस हजारी और रोशनआरा बाग का बड़ा हिस्सा रेल के काम में आ गया। रेल निकालने के लिए कई सड़कें भी निकाली गई। डफरिन पुल के पूर्व में रेल के साथ लोथियन रोड की ओर जो हैमिल्टन रोड गई हैं, वह 1870 में निकली। दिल्ली रेलवे के बड़े स्टेशन के साथ, कंपनी बाग के सामने जो क्वीन्स रोड है, वह भी उन्हीं दिनों निकली। तीस हजारी के साथ सब्जीमंडी को जो बुलवर्ड सड़क गई है, वह 1872 ई. में बनी।

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