जफर के बेटों को इस तरह किया गया गिरफ्ताार

1857 की क्रांति: ब्रिटिश अफसर होडसन ने मिर्जा इलाही बख्श की मदद से बादशाह बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार कर लिया। जफर को लाल किले ले जाया गया। जफर की गिरफ्तारी के अगले दिन होडसन ने विल्सन को एक और दस्ता हुमायूं के मकबरे भेजने को मना लिया।

इस बार उसका मकसद था मिर्जा मुगल, खिजर सुल्तान और अबूबक्र को गिरफ्तार करना। यानी वह तीनों शाहजादे जिन्होंने बगावत के जमाने में मुगल फौजों का नेतृत्व किया था और जिनके मकबरे में होने की खबर थी।

अब इलाही बख्श ने तस्दीक कर दी थी (ऐसा करके इलाही बख़्श ने खुद अपने नवासे से दगा की थी, क्योंकि अबूबक्र मिर्जा फखरु का बेटा था और उसकी मां इलाही बख्श की अपनी बेटी थीं। बाद में उसे अंग्रेजों तक ने ‘दिल्ली का गद्दार’ कहा। पहले की तरह विल्सन ने फिर शर्त लगाई कि उसे कैदियों के मामले में परेशान नहीं किया जाए, और चूंकि शाहजादों की जिंदगी की गारंटी की कोई बात नहीं हुई थी, इसलिए होडसन ने अपने जनरल के आदेशों का अपने हिसाब से अर्थ निकाला।

होडसन 100 सवारों और पहले की तरह अपने मध्यस्थों मौलवी रजब अली और इलाही बख्श के साथ सुबह आठ बजे रवाना हुआ। और फिर वह और उसके दो सहायक हुमायूं के मकबरे के दरवाज़े के बाहर रुके और फिर उसने दोनों हिंदुस्तानियों को अंदर बातचीत करने भेजा। मेजर मैकडॉवेल जो अकेला शख्स है, जिसने इस वाकए का कहीं जिक्र किया वहां मौजूद था। उसका कहना है:

हमने उन्हें यह कहकर अंदर भेजा कि शाहजादे अपने आपको बगैर किसी शर्त के हमारे हवाले कर दें, वर्ना नतीजे भुगतने को तैयार रहें। आधा घंटा गुजर गया, फिर एक संदेशवाहक बाहर आया और उसने कहा कि शाहजादे जानना चाहते हैं कि अगर वह बाहर आएं तो क्या उनकी जान बख्शने का वादा किया जाएगा। जवाब था, ‘बिना शर्त आत्मसमर्पण’। हम फिर इंतज़ार करते रहे। यह बड़ी मुश्किल का वक़्त था। हम ज़बर्दस्ती उन्हें गिरफ्तार कर नहीं सकते थे, वर्ना सब किये-कराये पर पानी फिर जाता। हमें शक था कि वह आएंगे या नहीं। हमें कट्टर क्रांतिकारियों  की आवाजें साफ सुनाई दे रही थीं, जो शाहजादों से मिन्नत कर रहे थे कि वह हमसे लड़ने में उनका नेतृत्व करें। हम सिर्फ सौ लोग थे और दिल्ली से छह मील दूर थे, जबकि अंदर मकबरे की चारदीवारी में उनके तीन हजार मददगार थे, और नजदीक ही निजामुद्दीन बस्ती में भी और तीन हजार थे, सब हथियारों से लैस, यह बड़ा पेचीदा काम था…

“आखिरकार शाहजादों को ख्याल हुआ होगा कि देर-सवेर वह पकड़े ही जाएंगे। इसलिए उन्होंने अपने आपको बिना शर्त सुपुर्द करने का फैसला कर लिया। शायद वह सोच रहे हों कि जैसे हमने बादशाह की जान बख्शी थी, शायद उनकी भी बा देंगे। इसलिए एक संदेशवाहक भेजा गया कि वह आ रहे हैं। हमने दस आदमी उनसे मिलने भेजे और होडसन के आदेश पर मैंने अपने सिपाहियों को सड़क के बीच में खड़ा कर दिया, जो किसी के जरिए उन्हें छुड़ाए जाने की कोशिश की सूरत में उन्हें गोली से उड़ाने को तैयार थे। थोड़ी देर में शाहजादे एक रथ में बैठकर बाहर आए, जिसे बैल खींच रहे थे और जिसके दोनों ओर पांच सैनिक साथ चल रहे थे। उनके पीछे दो या तीन हजार लोग आ रहे थे। हमने उनसे मुलाकात की और फौरन होडसन और मैं घोड़े पर सवार उनके सामने बढ़े, वह हमारे सामने झुके और होडसन ने झुकते हुए रथ वाले से चलने को कहा।”

होडसन ने अपने सवारों से कहा कि शाहजादों को जल्दी से आगे ले चलें। मैकडॉवेल और उसके सिपाही शाहजादों और मजमे के बीच में आ गए और उन्होंने दरबारियों और नौकरों को पीछे हटकर मकबरे के बाग में जाने पर मजबूर कर दिया। “

मैं और होडसन, जिनके साथ में लगातार लगा रहा, अपने चार आदमियों के साथ मेहराब के पार सीढ़ियों तक गए, और वहां होडसन ने मजमे को आदेश दिया कि वह अपने हथियार नीचे रख दें। पहले तो कुछ बड़बड़ाने की आवाजें आयीं, और फिर (खुदा जाने क्यों, मेरी कभी समझ में नहीं आया) उन्होंने ऐसा ही करना शुरू कर दिया…

असल में हम शाहजादों को दूर जाने देने के लिए समय चाहते थे क्योंकि अगर मजमा हम पर हमला कर देता तो हम कुछ नहीं कर सकते थे… हम वहां दो घंटे रहे और उनके हथियार जमा करते रहे। मेरा यकीन करें कि मुझे हर लम्हें ऐसा लगता रहा कि वह अभी हम पर हमला कर देंगे। मैं कुछ नहीं बोल रहा था, बल्कि मैं पूरे वक़्त इस तरह सिगरेट पीता रहा जैसे मुझे कुछ फिक्र नहीं है। लेकिन आखिर में जब सबकुछ हो गया और हथियार एक गाड़ी में रख दिए गए, तो होडसन मेरी तरफ मुड़कर बोले, ‘अब हम चलते हैं’। बहुत आहिस्ता आहिस्ता हम घोड़ों पर चढ़े, अपने दस्ते को तरतीब दी और होशियारी से चल दिए, जबकि लोग हमारे पीछे थे। जब हम एक मील दूर आ गए, तो होडसन फिर से मेरी और मुड़कर बोले, ‘मैक, आखिर हमने उन्हें पकड़ ही लिया, और हम दोनों ने इत्मीनान की सांस ली।

उसके बाद जो कुछ हुआ उसके बारे में भिन्न राय हैं। होडसन का कहना है कि जब वह तीन मील बाद दिल्ली की दीवारों के नजदीक शाहजादों तक पहुंचे, तो एक दरवाज़े के पास, जो तभी के बाद से ‘खूनी दरवाजा’ कहलाता है, शाहजादों के गिर्द एक बड़ा और खतरनाक मजमा जमा हो गया, जो ऐसा लगता था कि उनको छुड़ाने ही वाला है। लेकिन कुछ दूसरे लोगों के मुताबिक (जिनमें मैकडॉवेल भी शामिल है) मजमा काफी छोटा था और किसी तरह खतरनाक नहीं था। लेकिन इस बात में कोई भिन्न राय नहीं है कि होडसन ने उस वक़्त क्या किया।

उसने रथ रोककर तीनों शाहजादों से उतरने को और फिर नंगा होने को कहा। फिर एक कॉल्ट रिवॉल्वर निकालकर उसने तीनों को गोली मार दी। क्रूरतापूर्वक, बिल्कुल करीब से, एक के बाद एक। फिर उसने लाशों की मुहर वाली अंगूठियां और फीरोजे के बाजूबंद उतारे और अपनी जेब में रख लिए। और उनकी जड़ाऊ तलवारों पर भी कब्ज़ा कर लिया। अगले दिन उसने अपनी बहन को लिखा कि हालांकि वह अपने विभिन्न मुश्किल कामों से बुरी तरह थका हुआ था, ‘फिर भी मुझे बहुत खुशी हुई, जब चारों तरफ से लोगों ने मुझे मुबारकबादें दीं कि मैंने अपनी नस्ल के दुश्मनों को कामयाबी से खत्म कर दिया। अब हमारी सारी कौम खुशी मनायेगी।’ उसने आगे लिखाः “मैं क्रूर नहीं हूं, लेकिन मैं स्वीकार करता हूं कि मुझे उन कमीनों को दुनिया से मिटा देने का मौका मिलने पर बहुत लुत्फ आया।”

उन लाशों को कोतवाली के सामने नंगा डाल दिया गया, जहां अंग्रेज़ सिपाही कतार लगाए उनका नजारा करने आते गए। फ्रेंड मेसी ने लिखा है कि ‘मैंने उनको वहां नंगा और अकड़ा पड़े देखा। और यह देखकर मुझे बहुत खुशी हुई क्योंकि उनके अपराधों के बारे में तो कोई शक नहीं था। मुझे यकीन है कि बादशाह उनके हाथों में महज एक कठपुतली की हैसियत रखते थे’ ।’ चार्ल्स ग्रिफिथ्स ने भी होडसन की बहुत तारीफ़ की कि उसने ‘दुनिया को उन बदमाशों से मुक्त कर दिया। उसने यह भी कहा किः

“दिल्ली की पूरी फौज इस काम में होडसन के साथ है और इस मामले में घर बैठे इंग्लैंड के जज़्बाती लोगों के मुकाबले यही लोग बेहतर फैसला कर सकते हैं। मैंने उनको उसी दोपहर को देखा था। मैंने और जिन लोगों ने भी उनकी बेजान लाशों को देखा, किसी के दिल में भी उन बदमाशों के लिए जरा सा भी रहम या अफसोस नहीं था, जिनको अपने गुनाहों की इतनी जायज सजा मिली थी। सबसे बड़ा मिर्जा मुग़ल एक ताकतवर आदमी था, जो अपनी जिंदगी के शबाब पर था। दूसरा खिजर सुल्तान उससे कुछ छोटा था, जबकि तीसरा अबूबक्र काफी कमउम्र था, शायद बीस साल से कम का। हर शाहजादे के जिस्म पर दिल के करीब दो गोलियां लगी थीं, जिसके इर्द-गिर्द बारूद से झुलसी त्वचा थी क्योंकि गोली बहुत करीब से चलाई गई थी… तीन दिन तक लाशें वहां पड़ी रहीं और फिर उनको बेनाम कब्रों में बहुत बेइज़्ज़ती से दफना दिया गया।””

जो रवैया मेसी और ग्रिफिथ्स का था, वह दिल्ली के अंग्रेजों में आम था। हालांकि बाद में होडसन के बर्ताव पर बहुत जांच-पड़ताल हुई। लेकिन इसके लिए नहीं कि उसने शहजादों को मारा बल्कि इसके लिए कि उसने जफर की जिंदगी की गारंटी लेने की जुर्रत कैसे की। आखिरकार इसका इल्जाम हर्वी ग्रेटहैड पर डाल दिया गया, जोकि मर चुका था। होडसन के इस दावे के बारे में कुछ नहीं कह सकता था कि जफर की जान की गारंटी लेने की इजाजत होडसन को उसने दी थी।

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here