1857 की क्रांति: क्रांति के दरम्यान मेरठ के सिविल कमिश्नर हर्वी ग्रेटहैड ने 6 अगस्त को लिखा कि-“अब लोगों का बड़बड़ाना कम हो गया है और अब यहां रिज पर अंग्रेजी फौजों में ज्यादा खुशी का माहौल है।
जबसे हम यहां जमे हुए हैं, बागी 25 मुकाबलों में हार चुके हैं। अब जितनी भी मदद की वह उम्मीद कर सकते थे, सब खत्म हो चुकी है। उनकी सारी रसद खत्म होती जा रही है, जबकि हमारी फौज को जल्द ही मदद मिलने वाली थी, और अब लगता था कि शहर की शिकस्त में इस महीने के आखिर से ज्यादा देर नहीं लगेगी।
यह शक और गलतफहमी जो दिमागों में पनप रही थी कि हमारे राज का खात्मा होने वाला है, अब गायब होता जा रहा है। और अब हमारी हुकूमत फिर से कायम होने में कोई मुश्किल नहीं होगी।
दूसरे लोग अपना हौसला दिल्ली की दौलत के ख्वाब देखकर बनाए हुए थे, जो नीचे उनके सामने बिखरी हुई थी। उनको उम्मीद थी कि वह कैसे ‘अमीर काले देसियों’ से एक-दो हीरे छीन सकेंगे।
चार्ल्स ग्रिफिथ्स ने लिखा है, “1857 में दिल्ली हिंदुस्तान के सबसे बड़े, खूबसूरत और निश्चित रूप से सबसे मालदार शहरों में से एक था। हमें मालूम था कि उसकी दीवारों के अंदर बेअंदाजा दौलत है, और उस वक्त भी जब हम उसके बारे में सोचते थे, तो हमारे दिल में खुशी की लहर दौड़ जाती थी और हम उस इनाम का ख्याल करके खुश हो जाते थे, जो उस बागी शहर को फतह करने के बाद हमारे हिस्से में आने वाला था।