1857 की क्रांति: अंग्रेजों ने दिल्ली पर दोबारा कब्जा कर लिया। हर तरफ कत्लेआम मचा हुआ था। इस दौरान हुकूमत के वसूली एजेंट भी काम में लग गए। मिसेज म्यूटर ने अपने पति के बारे में लिखा कि वह “सुबह नाश्ते के बाद निकल जाते थे।
उनके साथ एक कुलियों का दल लोहे की सलाखें, हथौड़े और नापने के फीते लेकर चलता। अगर किसी घर के बारे पता चलता कि वहां खजाना हो सकता है, तो उसे पूरा एक दिन दिया जाता, और काम की शुरुआत बारीकी से घर के अध्ययन के साथ होती…. ऊपर की छतों और नीचे के कमरों को नापने से छिपी हुई जगह का पता चल जाता।
फिर दीवारें तोड़ी जातीं और अगर कोई चोर कमरा या ताक बना होता, तो उसको ढूंढ़ा जाता और जल्द ही उसमें छिपे माल की शक्ल में उनकी तलाश का इनाम मिल जाता। एक बार… वह तेरह छकड़े भरकर सामान लाए, जिसमें दूसरी कीमती चीजों के अलावा अस्सी हजार रुपए भी थे, यानी आठ हजार ब्रिटिश पाउंड। एक बार और उन्हें चांदी के बर्तन, सोने के जेवर और… एक हजार रुपयों का थैला मिला।
चार्ल्स ग्रिफिथ्स का कहना है कि “कुछ ही समय में माल एजेंटों के कमरे हर तरह के खजानों से भर गए। जेवरात, जवाहरात, हीरे, याकूत और बेहिसाब मोती, मुर्गी के अंडों के आकार से लेकर मालाओं के लिए छोटे मोतियों तक, और सोने के आभूषण, बर्तन और बेहतरीन कारीगरी वाली सोने की जंजीरें, ठोस कड़े और चूड़ियां। मैं एक कमरे में गया, जहां एक लंबी मेज इतनी कीमती चीज़ों से लदी थी कि आंखें सचमुच चकाचौंध हो जाएं।