1857 की क्रांति: बहादुर शाह जफर ने 16 सितंबर को ऐलान किया कि वो बागियों का नेतृत्व करेंगे। वो अपने हाथी पर बैठकर नेतृत्व के लिए निकल भी गए। सडक पर अंग्रेजों की तरफ से गालियों की बौछार हो रही थी। जो भी आगे जाए गोली खाकर वहीं गिर जाए।
बादशाह के हकीम अहसनुल्लाह खां ने कान में कहा कि ऐसा ना कीजिए। नेतृत्व ना करें, कहीं गोली लग गई तो।
‘अगर आप फौज के साथ लड़ने जाएंगे, तो मैं कल आपके इस फैसले की अंग्रेजों के सामने क्या सफाई दूंगा? अगर आपने क्रांतिकारियों का साथ दिया तो मैं आपकी तरफ से क्या बहाना बनाऊंगा?'”
जफर अब और दुविधा में नहीं रह सकते थे। उन्हें कोई न कोई फैसला तो करना ही था। फिर भी वह सोचते रहे और हिचकिचाते रहे, लेकिन अंग्रेजों के तरफदार हकीम उनके अंदेशों का फायदा उठाकर उनके डर को बढ़ावा देते रहे। खुद उनका कहना है कि उन्होंने अपने आका से कहा, ‘खुदा न करे अगर सिपाही आपको बाहर लड़ाई के मैदान में ले जाएं और वह खुद भाग जाएं और आपको गिरफ्तार कर लिया जाए। कभी नहीं… यह लोग आपको बिना वजह कलंकित कर रहे हैं। आपको इस तरह यहां कतई नहीं आना चाहिए था।’
सईद मुबारक शाह ने लिखा है, “यह सुनकर बादशाह जुलूस छोड़कर शाम की नमाज़ पढ़ने का बहाना बनाकर किले वापस चले गए। बाहर लोगों और सिपाहियों की भीड़ हैरान रह गई और आखिरकार वह बिखर गए।
अगर 11 मई को बगावत को अपना आशीर्वाद देने का जफर का फैसला एक ऐसा निर्णयात्मक मोड़ था, जिसने एक फौजी बलवे को अंग्रेज राज के खिलाफ उन्नीसवीं सदी की सबसे बड़ी बगावत बना दिया था, तो 14 सितंबर को उनके हौसले का टूट जाना वह फैसलाकुन लम्हा था, जिसने उस बगावत के खात्मे की शुरुआत कर दी। विभिन्न ऊर्दू स्रोतों से पता चलता है कि अंग्रेजों से मुकाबला करने के लिए जिस आत्मविश्वास और दृढ़ता ने अभी तक बगावत को कायम रखा था, वह अब धीरे-धीरे कम होती गई। ऐसा नहीं था कि उनकी शिकस्त हो गई थी। कतई नहीं। अंग्रेज उस वक्त काफी बिखरे हुए थे और उनके सिपाहियों का जोश और हौसला बराबर टूट रहा था।
18 सितंबर तक भी विल्सन अपने घर यही लिख रहा था कि “हमारे लोगों को सड़क पर लड़ना पसंद नहीं है। वह घबरा जाते हैं और आगे नहीं बढ़ते। मेरी समझ में नहीं आता मैं क्या करूं।”” लेकिन अब क्रांतिकारियों का हौसला जफर के खौफजदा होकर पीछे हटने से टूट गया था और एक बार जो दहशत फैली, तो हर दस्ते में इसका असर हो गया। दोनों फौजों ने आमने-सामने आंख से आंख मिलाकर तीन दिन तक मुकाबला किया था, लेकिन अब जफर के नेतृत्व के इंकार की बदौलत बागी पहले टूटे।