सादात वंश (1414 ई. से 1451 ई. तक)

मोहम्मद शाह की मृत्यु के बाद दौलत खां लोदी को तख्त पर बैठाया गया, लेकिन इसके गद्दी पर बैठते ही खिजर खां, जो इससे अधिक शक्तिशाली था एक बड़ी भारी फौज ले आया और सीरी के किले में बादशाह को कैद कर गद्दी पर बैठ गया।

1424 ई. में खिजर खां की दिल्ली में मृत्यु हुई और उसके बेटे और जानशीन अब्दुल मुबारक शाह ने अपने बाप की कब्र पर एक मकबरा बनवाया, जिसे खिजर की गुमटी कहते हैं। खिजर खां को यमुना के किनारे ओखला गांव के पास दफन किया गया था, जो दिल्ली से आठ मील दक्षिण में है। एक चारदीवारी के अहाते में, जिसका तीन चौथाई हिस्सा गिर चुका है, एक बहुत साधारण चौकोर कमरा खड़ा है जिसके चारों ओर महराबदार चार दरवाजे हैं। इसके नजदीक ही एक गुंबद बना हुआ है। पहली इमारत खिजर खां के मकबरे की बताई जाती है।

नीला बुर्ज या सैयदों का मकबरा

यह मकबरानुमा इमारत दिल्ली-निजामुद्दीन सड़क के चौक पर बनी हुई है, जिसके दाएं हाथ सड़क सफदरजंग को जाती है और बाएं हुमायूँ के मकबरे को इस पर नीली चीनी के टायल लगे हुए हैं, इसलिए यह नीला बुर्ज कहलाता है। यह सैयदों के समय (1414 ई. से 1443 ई.) का माना जाता है। इसमें पुलिस चौकी हुआ करती थी। यह एक अठपहलू चबूतरे पर बना हुआ है, जो 42 फुट मुरब्बा और सवा चार फुट ऊंचा है। चढ़ने को चार सीढ़ी हैं। इसमें अंदर-बाहर चीनी का काम नीले, सुख, सफेद रंग की फूल-पत्तियों में बना हुआ है। यह बहुत कुछ झड़ चुका है। मकबरा 34 फुट ऊंचा है। अंदर कब मिट्टी की हैं।

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