Sardar Swaran Singh biography in Hindi: भारत में सबसे अधिक समय तक केन्द्रीय मंत्री रहने वालों में से एक, सरदार स्वर्ण सिंह एक उत्कृष्ट नेता थे जिन्होंने राज्य के मामलों को एक दुर्लभ कौशल के साथ निभाया। वह पंडित जवाहरलाल नेहरू, श्री लाल बहादुर शास्त्री और श्रीमती इंदिरा गांधी के निकट सलाहकार थे और उन्होंने स्वयं को एक महान राजनेता सिद्ध भी किया। वह एक बहुमुखी प्रतिभा संपन्न राजनीतिक नेता थे जो सरकार में अनेक महत्वपूर्ण पदों पर रहे और भारत की विदेश नीति के मामलों में तो उनका महत्वपूर्ण नाम है।
पंजाब में जन्म,Sardar Swaran Singh personal life
सरदार स्वर्ण सिंह का जन्म 19 अगस्त 1907 को पंजाब के जालंधर जिले के शंकर ग्राम में एक कृषक परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता शिक्षा पर काफी बल देते थे और कपूरथला के रणधीर कॉलेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद उन्हें अध्ययन हेतु गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर भेज दिया गया। गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर से एम.एससी. की डिग्री हासिल करने के पश्चात् उन्होने खालसा कॉलेज लायलपुर में भौतिक विज्ञान के व्याख्याता के रूप में कार्य किया। उन्होंने कानून की भी पढ़ाई की और राजनीति में कदने से पूर्व वह वकालत कर रहे थे। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सरदार स्वर्ण सिंह का राजनीतिक करियर, Sardar Swaran Singh Political Career
सरदार स्वर्ण सिंह 1946 में राजनीति में शामिल हुए और पंजाब विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। उन्हें 1946 में ही संसदीय सचिव नियुक्त किया गया और आगे चलकर 1952 तक उन्होंने पंजाब सरकार में महत्वपूर्ण पदों की शोभा बढ़ाई। अंग्रेजी शासन की समाप्ति के समय, जब पंजाब को भारत और पाकिस्तान के बीच बांट दिया गया, सरदार स्वर्ण सिंह उस समिति में थे जिसकी देख-रेख में पंजाब की परिसंपत्तियों को दोनों देशों के बीच बांटा जाना था।
सरदार स्वर्ण सिंह 1952 से 1957 तक राज्य सभा के सदस्य और दूसरी से पांचवीं लोक सभा तक पंजाब के जालंधर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से लगातार चार कार्यावधियों तक लोक सभा के सदस्य रहे।
लगातार तीन बार केंद्रीय मंत्री
1952 में देश के पहले आम चुनावों के पश्चात् जब पं. जवाहर लाल नेहरू ने सरकार बनाई, सरदार स्वर्ण सिंह को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। 1952 में पहली बार सरकार में शामिल होने के बाद से वह 1975 तक लगातार तीन प्रधानमंत्रियों के अधीन केन्द्रीय मंत्री के रूप में सेवा करते रहे।
पं. जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में सरदार स्वर्ण सिंह निर्माण, आवास और आपूर्ति मंत्री, 1952-57; इस्पात, खान और ईंधन मंत्री, 1957-62; रेल मंत्री, 1962; तथा खाद्य और कृषि मंत्री, 1963-64 रहे। सरदार स्वर्ण सिंह की स्थिरचित्तता और सूक्ष्म बातों पर भी ध्यान देने की उनकी क्षमता से प्रभावित होकर प्रधानमंत्री नेहरू सीमा विवाद के मुद्दे पर चीन से वार्ता के दौरान उन्हें अपना सहयोगी बनाकर ले गए। सरदार स्वर्ण सिंह ने 1962 और 1963 के बीच कश्मीर मामले पर पाकिस्तान के साथ छह दौर की वार्ता के दौरान भारतीय शिष्टमंडल का भी नेतृत्व किया। राजनीतिक और कूटनीतिक मसलों पर प्रधानमंत्री के निकट सलाहकार होने के नाते उनके विचारों पर विशेष ध्यान दिया जाता था।
महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाई
पं. नेहरू का 1964 में निधन हो जाने के पश्चात् सरदार स्वर्ण सिंह श्री लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में उद्योग और आपूर्ति मंत्री बने। पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंधों के मामले में अपने अनुभव और पं. नेहरू के मंत्रिमंडल में काफी लम्बे समय तक मंत्री रहने के कारण, नये प्रधानमंत्री के लिए यह स्वाभाविक ही था कि सरदार स्वर्ण सिंह को विदेश मंत्री चुना जाता।
उन्होंने 1964 से 1966 तक श्री लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री के रूप में सेवा की। यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं थी क्योंकि स्वतंत्र भारत की विदेश नीति के निर्माता पं. नेहरू स्वयं ही विदेश मंत्री का कार्य देखते थे और गुट निरपेक्षता, देश की विदेश नीति की स्वतंत्रता, जातीय भेदभाव और साम्राज्यवाद का विरोध, एशियाई एकता और विश्वभर के दमित औपनिवेशिक देशों की एकता जैसे विदेश नीति से संबंधित महत्वपूर्ण मसलों को जिस दक्षता के साथ उन्होंने सुलझाया था उसे आगे जारी रखना काफी कठिन था। तथापि, सरदार स्वर्ण सिंह इस कार्य में खरे साबित हुए और भारत के हितों के एक कुशल और सख्त संरक्षक के रूप में उनकी ख्याति हुई।
रक्षा मंत्री का दायित्व संभाला
विदेश मंत्री के रूप में दो वर्षों तक कार्य करने के उपरान्त सरदार स्वर्ण सिंह ने 1966 से 1970 तक श्रीमती इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में रक्षा मंत्री के रूप में अपनी सेवा प्रदान की। 1970 में वह पुनः विदेश मंत्री बने। वह 1970 से 1974 तक दूसरी बार भारत के विदेश मंत्री रहे और इस दौरान पाकिस्तानी सेना द्वारा तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के अत्याचारपूर्ण दमन तथा भारत में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तानी शरणार्थियों को भारी घुसपैठ के परिणामस्वरूप भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ और बांग्लादेश का जन्म हुआ।
सरदार स्वर्ण सिंह ने संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद को सम्बोधित किया और युद्ध के लिए जिम्मेदार कारणों को बताते हुए भारत के पक्ष का जोरदार ढंग से बचाव किया और विश्व समुदाय से “बांग्लादेश की वास्तविकता ” को मान्यता देने की गुजारिश की। 1974-75 में उन्हें पुनः रक्षा मंत्री बनाया गया जो कि 1952 से ही सरकार में उनके लम्बे योगदान से लेकर 1975 में रक्षा मंत्री के पद से त्यागपत्र देने तक मंत्रिमंडल में उनका आखिरी पद था।
सरदार स्वर्ण सिंह समिति की रिपोर्ट
राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा के बाद, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान के कार्यकरण की समीक्षा करने तथा विगत के अनुभवों के आलोक में आवश्यक संशोधनों की सिफारिश करने के लिए 1976 में सरदार स्वर्ण सिंह के सभापतित्व में एक समिति गठित की।
सरकार में अपनी लम्बी पारी के दौरान, सरदार स्वर्ण सिंह ने अनेक अवसरों पर संयुक्त राष्ट्र भेजे गए भारतीय शिष्टमंडल का नेतृत्व किया और राष्ट्रमंडल तथा गुटनिरपेक्ष देशों की शिखर बैठकों में कई बार शामिल हुए। उन्होंने कई अवसरों पर अफ्रीकी-एशियाई और अन्य देशों को गए भारतीय सद्भावना मिशनों का भी नेतृत्व किया।
भारत की विदेश नीति के कट्टर समर्थक
एक लब्धप्रतिष्ठ सांसद तथा लोकतंत्र में अटूट निष्ठा रखने वाले एवं एक मजबूत, पंथनिरपेक्ष एवं समाजवादी भारत का सपना देखने वाले सरदार स्वर्ण सिंह भारत की विदेश नीति के कट्टर समर्थक थे। उनका विश्वास था कि शीत युद्ध काल के दौरान महाशक्तियों की गुटबाजी की मौजूदगी से उत्पन्न तनाव के बीच विश्व शांति कायम रखने तथा उपनिवेशवाद के अवशेषों एवं समूचे विश्व से रंगभेद का सफाया करने के लिए शक्ति संतुलन के रूप में गुट निरपेक्ष आंदोलन का अपना महत्व है। विभिन्न मंचों, यथा-संयुक्त राष्ट्र संघ, गुट निरपेक्ष आंदोलन तथा राष्ट्रमंडल देशों के शिखर सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए सरदार स्वर्ण सिंह ने इन अवसरों का लाभ उठाया और विभिन्न मुद्दों पर भारत का दृष्टिकोण सामने रखा। “रोविंग एम्बैसडर” (घुमन्तू राजदूत) के रूप में विख्यात, उन्होंने श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में पाकिस्तान, इंडोनेशिया और नाईजीरिया सहित अनेक देशों का दौरा प्रधानमंत्री के दूत के रूप में किया। साथ ही, पंजाब में 1980 में आए संकट को हल करने के प्रयास में भी उन्होंने एक सक्रिय भूमिका निभाई।
सक्रिय राजनीति से सन्यास
सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने के बाद, सरदार स्वर्ण सिंह ने विभिन्न संगठनों के लिए काम किया और अपना असीम योगदान दिया। 1976 से 1981 तक वह “थिंक टैंक इंडियन काउंसिल आफ वर्ल्ड अफेयर्स” के अध्यक्ष रहे।
वह रंगभेद समाप्त करने हेतु बातचीत की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने तथा दक्षिण एशिया में वर्ण भेद रहित लोकतंत्र की स्थापना के लिए गठित “क्रामनवेल्थ एमिनेन्ट पर्सन्स ग्रुप उन साउथ अफ्रोका” (दक्षिण अफ्रोका संबंधी राष्ट्रमंडल देशों के लब्धप्रतिष्ठ व्यक्तियों का समूह के भी सदस्य थे।
इसके अतिरिक्त, वह 1982 84 के दौरान क्षेत्रीय और अंतर क्षेत्रीय सहयोग के लिए लब्धप्रतिष्ठ व्यक्तियों को लेकर गठित संयुक्त राष्ट्र संघ पैनल के भी सदस्य रहे थे। राजनीति की दुनिया से बाहर उन्होंने अनेक वर्षों तक यूनेस्को के लिए काम किया और वर्ष 1984-86 के दौरान वह यूनेस्को बोर्ड के उपाध्यक्ष भी रहे। अपने जीवन के अंतिम वर्ष उन्होंने भाई वीर सिंह सदन में सिख पत्रों के अध्ययन में व्यतीत किए।
पद्म विभूषण से किया गया सम्मानित
सरदार स्वर्ण सिंह सादे जीवन और उच्च विचारों वाले व्यक्ति थे। वैयक्तिक तौर पर आजीवन उनकी निष्ठा बेदाग रही और उनके व्यक्तिगत स्वभाव में कभी भी बड़बोलापन नहीं रहा। संभवतः उनके प्रशंसकों और अनुरागियों द्वारा उन्हें जो सर्वाधिक उपयुक्त और सच्ची श्रद्धांजलि दी गई वह यह थी कि वह हमेशा एक “भद्रपुरुष” थे। वह व्यक्तिगत तौर पर, अपने मोहक और दिलकश अन्दाज के लिए जाने जाते थे।
स्वभाव से शांतचित्त, और किसी वकील की तरह प्रशिक्षित नरम मिजाज सरदार स्वर्ण सिंह एक प्रखर वक्ता होने के साथ-साथ वाद-विवाद में भी माहिर थे। बातचीत में धैर्य और निपुणता का परिचय देने वाले सरदार स्वर्ण सिंह कई भाषाओं के ज्ञाता थे और इसीलिए वह कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों का निपटान दृढ़ता से किन्तु शांतिपूर्वक करने में सफल रहे। राष्ट्र के प्रति उनके असीम योगदान के लिए, उन्हें 1992 में पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 30 अक्तूबर, 1994 को सरदार स्वर्ण सिंह का देहांत हो गया। उनके देहांत पर समूचे देश ने अपना शोक प्रकट किया।
तत्कालीन राष्ट्रपति, डा. शंकर दयाल शर्मा, ने अपने शोक संदेश में कहा कि राष्ट्र के पुनर्निर्माण में सरदार स्वर्ण सिंह के योगदान को लोगों द्वारा हमेशा याद किया जाएगा। उन्होंने आगे कहा कि सरदार स्वर्ण सिंह ने देश की रक्षा और विदेश नीति तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राष्ट्रपति महोदय ने उनके साथ लम्बे समय तक अपने व्यक्तिगत संबंध को याद करते हुए कहा कि सरदार स्वर्ण सिंह. सार्वजनिक जीवन में उच्च मानदण्डों का प्रतिनिधित्व करते थे।
तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री के.आर. नारायणन ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा, “स्वर्ण सिंह भारतीय राजनीति के अग्रणी व्यक्तियों में से थे।” संसद के दोनों सदनों ने भी 7 दिसंबर, 1994 को सरदार स्वर्ण सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित की। उनके द्वारा की गई देश की निःस्वार्थ सेवा भारत के लोगों के लिए सदैव प्रेरणास्रोत रहेगी।
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