छाछी बिल्डिंग चौक…दिल्ली के अन्य चौक की तरह ही यहां का भी माहौल दिखता है। मसलन, सड़क किनारे बस का इंतजार करते लोग, चंद कदम दूर वाहनों की लंबी कतार। लेकिन एक चीज जो इस चौक को यूनिक बनाती है वो है शाही दही भल्ले। विगत 20 सालों से शाही दही भल्ले जायका पसंद लोगों का पसंदीदा ठौर बनी हुई है। सतविंदर सिंह का मधुर व्यवहार और जायके का तालमेल इस दुकान को बेजोड़ बना देता है। जायके के साइंटिस्ट ने वर्षों की मेहनत के बाद डेढ़ गज में सिमटी इस दुकान को इतना प्रसिद्ध कर दिया है कि अब तो लोग दूर दूर से आकर यहां गोल गप्पे, दही भल्ले, पापड़ी चाट, भरवा पापड़ी चखते हैं।
दुकान मालिक सतविंदर (52) परिवार के साथ कृष्णा नगर में ही रहते हैं। कहते हैं कि पहले मैं गांधी नगर में ट्रांसपोर्ट का काम करता था। काम ठीक चल नहीं रहा था। इसलिए एक दिन काम छोड़ने का निर्णय लिया। लेकिन आगे क्या? का सवाल दिल को बेचैन कर देता था। काफी उधेड़बुन के बीच मैंने दुकान खोलने का निर्णय लिया। जब मैं दुकान खोलने की सोच ही रहा था, इसी बीच एक व्यक्ति से मुलाकात हुई। जिसने मेरी काफी मदद की और इस तरह दुकान खुल गई। हालांकि वह व्यक्ति महज एक साल के अंदर दुकान छोड़कर चला गया। तब से अब 18-20 साल हो चुके हैं दुकान चलाते हुए। अब तो मेरा बेटा हरनीत सिंह भी दुकान पर हाथ बंटाता है। बेटे ने पत्राचार से बीए तृतीय वर्ष की परीक्षा दी है एवं रिजल्ट का इंतजार कर रहा है। भविष्य के बारे में पूछने पर हरनीत कहते हैं कि पिता के व्यवसाय को ही आगे बढ़ाना है।
मसालों का कमाल
सतविंदर कहते हैं कि दही भल्ले, गोलगप्पे खाने के लिए दूर दूर से लोग अब आते हैं। हम ड्राईफ्रूटस, अनार, कचालू, फूलक्रीम की दही से दही भल्ले बनाते हैं। हमारी खासियत घर पर बनाए खास मसाले हैं। बकौल सतविंदर दुकान से साबुत मसाले, हीरा, लौंग, जीरा, हींग,काली मिर्च, लाल मिर्च, धनिया समेत करीब 19 मसाले खरीद कर ले आते हैं एवं उन्हें घर पर बनाते हैं। यही मसाले हम प्रयोग करते हैं। मूंगदाल के भल्ले में ड्राई-फ्रूट्स की फीलिंग है, इसलिए शाही नाम जुड़ा है। ऊपर डाले गए मसाले, ठंडी दही और खट्टी-मीठी चटनी सौंठ से टेस्ट उभर आता है। दही भल्ले के अलावा, भल्ले पापड़ी, पापड़ी चाट, भरवा पापड़ी, गोल गप्पे, दही सौंठ के गोल गप्पे मिलते हैं।
मसालों का एक्सपेरिमेंट
सतविंदर कहते हैं कि पहले पहल तो बहुत दिक्कत होती थी। मसालों का अनुपात तक नहीं पता था। लेकिन धीरे धीरे मैंने खुद ही एक्सपेरिमेंट करना शुरू किया। इसे इस तरह समझें कि मसाले का अनुपात मैंने खुद से सीखा। मसाला बनाते समय कभी काली मिर्च बढ़ा देता था तो कभी लाल मिर्च। कभी हींग, जीरा आदि बढ़ाकर चखता कि टेस्ट कैसा है। यह प्रयोग एक दो दिन नहीं किया अपितु दो-तीन वर्षों तक चलता रहा। तब कहीं जाकर एक पैरामीटर तय हो पाया, जो लोगों को पसंद आता है। सतविंदर की मानें तो बिक्री बढ़ने के बाद अब सामान घर पर तैयार होता है एवं दुकान पर सिर्फ बेचा जाता है।
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समय : दोपहर बाद 2 बजे से रात 10 बजे तक
स्थल- डी 1, छाछी बिल्डिंग चौक।
छुट्टी : हर मंडे
कीमत : 50 रुपये से शुरू।
नजदीकी मेट्रो स्टेशन : वेलकम