Lok Sabha chunav 2024 के बीच विदेशी नागरिकों की हो रही तलाश

लेखक: कौशल किशोर (वरिष्ठ पत्रकार)

अठारहवीं लोक सभा चुनाव (Lok Sabha chunav 2024) के दौरान दिल्ली पुलिस (Delhi Police) ऐसे बासठ हजार विदेशी लोगों का पता लगाने में लगी है, जिनका वीजा खत्म हो चुका है। हाल ही में विदेश मंत्रालय (Ministry of External Affairs) द्वारा इन लापता विदेशियों के बारे में केंद्रीय गृह मंत्रालय (ministry of home affairs) को जानकारी भेजी गई है। फॉरनर्स रीजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस (Foreigners Registration Office) के पास इन लोगों की कोई जानकारी नहीं है। साथ ही इनके रिश्तेदारों ने लापता होने की सूचना संबंधित देशों में भारतीय दूतावास अथवा उच्चायोग को नहीं दी है। इसलिए केन्द्रीय गृह मंत्रालय इसे गंभीर खतरे की घंटी मान रही है। उनके निर्देश पर पुलिस की विशेष शाखा द्वारा इस मामले में जांच भी शुरु किया गया है।

क्या दिल्ली के तमाम जिलों में कार्यरत अतिरिक्त पुलिस आयुक्त को जानकारी भेजने पर थानों की पुलिस सक्रिय हो गई है? इसका जवाब तो भविष्य के गर्भ में है। उल्लेखनीय है कि यह आंकड़ा पढ़ने, ईलाज करवाने या घूमने के लिए भारत में आकर गुम होने वाले विदेशी नागरिकों का है। बांग्लादेश (bangladesh), म्यांमार (myanmar), पाकिस्तान (Pakistan) और नेपाल (Nepal) जैसे पड़ोसी देशों के रास्ते रोहिंग्या मुसलमानों (rohingya muslims) की तरह अवैध रूप से आने वाले विदेशी लोगों को इसमें शामिल नहीं किया गया है।

 पड़ोसी देशों से लगती खुली सीमा पार कर भारत आने वाले विदेशी नागरिकों में पाकिस्तान और अफगानिस्तान (Afghanistan) के अलावा बांग्लादेश और बर्मा के घुसपैठिए और शरणार्थी शामिल हैं। संसद में 14 जुलाई 2004 को मनमोहन सिंह सरकार (Manmohan singh government) में गृह राज्य मंत्री रहे श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा था कि देश में 1 करोड़ 20 लाख अवैध बंग्लादेशी मौजूद हैं। इनमें से 50 लाख असम (Assam) में और 57 लाख पश्चिम बंगाल (west bengal) में रह रहे हैं। इस मामले में नरेन्द्र मोदी सरकार में गृह राज्य मंत्री रहे किरण रिजिजू (kiren rijiju) ने 2016 में संसद के पटल पर दो करोड़ बंग्लादेशी लोगों के भारत में अवैध होने का आंकड़ा पेश किया था।

दिसंबर 2019 में केन्द्र सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम पारित कर घुसपैठिए और शरणार्थी के बीच भेद स्पष्ट किया गया। इस कानून में नियम बनाने का काम भी बीते 11 मार्च को संपन्न हो गया है। यह दिसंबर 2014 तक अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत आने वाले सीमित विदेशियों को नागरिकता प्रदान करता है। करीब 30 से 50 हजार लोगों को इससे फायदा मिल सकता है। अपने देश में विभाजनकारी अवयवों की कमी नहीं रही है। 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने बड़े सलीके से इस वर्ग को खड़ा किया था। यदि ऐसा नहीं होता तो 1947 में देश का विभाजन नहीं हुआ होता। आज भी सड़क से संसद एवं न्यायालय तक ऐसे अवयवों की मौजूदगी के प्रमाण मिलते हैं।

बहरहाल सुर्खियों में बने लापता विदेशी लोगों में बड़ी संख्या में नाइजीरिया और अफगानिस्तान के नागरिक हैं। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, चेन्नई और गोवा जैसे स्थानों पर इन अवैध प्रवासियों की संख्या लाखों में पहुंच चुका है। अवैध रूप से भारत में रहने वाले इन विदेशी नागरिकों में शायद ही कोई होगा, जो किसी अवैध काम धंधे में नहीं संलिप्त हो। साथ ही वैध रूप से भारत में रहने वाले सहयोगियों की मदद के बिना इनका टिक पाना भी संभव नहीं है।

विदेशी नागरिकों के रात्रि विश्राम की सूचना आज एफआरआरओ को देने का नियम प्रायः सभी राज्यों में लागू है। इसी तरह किसी अपरचित व्यक्ति को किराया पर मकान देने पर पुलिस से सत्यापन कराने का नियम है। लेकिन दिल्ली जैसे महानगरों में इन नियमों का पालन करने वाले लोग कम ही हैं। यदि ऐसा ही नहीं होता तो हजारों अवैध विदेशी नागरिकों की खोज करने की अतिरिक्त जिम्मेदारी पुलिस पर नहीं होती। इन सभी लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई और भारी जुर्माना वसूलने के बदले आज देशप्रेम का पाठ पढ़ाने की जरुरत है। देशवासियों के सहयोग के बिना यह लक्ष्य साधना संभव नहीं है।

पश्चिमी दिल्ली में उत्तम नगर का इलाका आज मिनी नाइजीरिया कहलाने लगा है। मकान मालिक इन लोगों से मोटी रकम ऐंठते हैं। माफिया भी पुलिस की मदद के बिना पनप नहीं सकता है। एक दशक पहले दक्षिणी दिल्ली में मालवीय नगर क्षेत्र के खिड़की एक्सटेंशन में देह व्यापार की सूचना पर कार्रवाई करने पहुंचे दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री सोमनाथ भारती सुर्खियों में बने रहे। नाइजीरियाई नागरिकों के इन आपराधिक कृत्यों में पुलिस का संरक्षण होने का आरोप तभी से आम आदमी पार्टी लगाती रही है। विधायिका और कार्यपालिका देशहित के बदले यदि स्वार्थ और दलीय राजनीति को वरीयता देगी तो वह दिन दूर नहीं जब भारत फिर से पतन के गर्त में डूब जायेगा।

पिछले महीने की घटना है। ग्रेटर नोएडा में 25 किलो ग्राम मादक पदार्थ एमडीएमए बरामद किये जाने के बाद पुलिस चार नाइजीरियाई नागरिकों को गिरफ्तार करती है। ये सभी अवैध रूप से भारत में रहते रहे। एमडीएमए को मिथाइल एनीडियोक्सी मेथामफेटामाइन, एक्सटेसी और माली के नाम से जाना जाता है। बाजार में इस हार्ड ड्रग की कीमत आज 100 करोड़ रुपये से भी ज्यादा है। हर सप्ताह ऐसी खबरें सामने आ रही है। प्रायः सभी केस में अवैध रुप से भारत में रहने वाले अफ्रीकी मूल के लोग पकड़े गए हैं। विशेष कर नाइजीरियाई नागरिक। इसके एक सप्ताह पहले भी उत्तर प्रदेश की पुलिस ने दो नाइजीरियाई नागरिकों को नोएडा सेक्टर 18 से गिरफ्तार किया था। साइबर ठगी के अपराध में शामिल होने की वजह से। दो महीना पहले तेलंगाना की पुलिस द्वारा एक नाइजीरियाई नागरिक को 500 ग्राम कोकीन (नमक) के साथ गिरफ्तार किया गया तो पता चला कि देश भर में खपने वाले एक तिहाई बाजार को संचालित करने वाला वही था। गिरोह बना कर हेरोइन और एलएसडी समेत तमाम हार्ड ड्रग की सप्लाई देश भर में की जा रही है।

भारत ही नहीं, बल्कि इस तरह के कई अपराधों से आज पूरी दुनिया त्रस्त है। इनमें नाइजीरियाई संगठित गिरोह के कारनामे हैरत में डालने वाली है। यह सुखद आश्चर्य का विषय है कि केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह व विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस मुद्दे पर कार्रवाई करने का संकल्प लिया है।

जनवरी के पहले सप्ताह में दक्षिण दिल्ली के नेबसराय इलाके में नारकोटिक्स स्क्वॉड बिना वीजा के अवैध तरीके से रहने वाले नाइजीरियाई नागरिकों को पकड़ने पहुंची थी। विरोध करने के लिए शीघ्र ही अफ्रीकी मूल के सैकड़ों लोग जमा हो गए थे। इन्होंने पुलिस का घेराव किया और बदसलूकी शुरू कर दी थी। बड़ी मुश्किल से पुलिस अपना बचाव कर लौट सकी। सोमनाथ भारती की कहानी दिल्ली पुलिस के साथ भी दोहराती है। हालांकि बाद में उन्हें पकड़ लिया गया। एक दशक पहले गोवा में हार्ड ड्रग्स की तस्करी में शामिल नाइजीरियाई अपराधी की हत्या के बाद उत्पात मचाने हेतु सैकड़ों की संख्या में जमा होने वाला गिरोह सुर्खियों में रहा। जेल जाने से बचने की इन अपराधियों की पूरी कोशिश रहती है। परंतु पकड़े जाने पर निर्वासन के बदले जेल जाने की रणनीति अपनाते हैं और निर्वासित होने पर नाम पता बदल कर लौट आते हैं।

पांच साल पहले बीबीसी (BBC) की अफ्रीका आई ने एक स्टिंग ऑपरेशन किया था। इसमें भारत में अफ्रीकी महिलाओं से देह व्यापार कराने और ड्रग्स के कारोबार से जुड़े रहस्य का पर्दाफाश किया गया था। एंस्का (ऑल इंडिया नाईजीरियन स्टूडेंट्स एंड कम्युनिटी एसोसिएशन) नामक संस्था की सक्रियता का पता चलता है। तुरंत मौके पर सैकड़ों की संख्या में जमा होने वाले अफ्रीकी मूल के लोगों के पहुंचने का रहस्य भी समझ से परे नहीं रहता। इनका कार्यक्षेत्र नाइजीरिया तक ही सीमित नहीं है। अफ्रीका के तमाम देशों के असहाय और गरीब लोग एक अरसे से अपराध की दुनिया में धकेले जा रहे हैं। इसमें नाइजीरिया दूतावास और पुलिस की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। ऐसी दुरुह परिस्थिति में क्या गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय लक्ष्य साध सकेगा? यह सवाल मुंह बाए खड़ा है।

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