दर्शकों का रिएक्शन जानना होगा मजेदार

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

Kakuda Review: ‘स्त्री’ से शुरु हुई हॉरर फिल्म का सफर अब तेजी से आगे बढ़ रहा है। ‘रूही’, ‘भेड़िया’ और हाल ही में सफल ‘मुंज्या’ से, वे हॉरर कॉमेडी में एक और नाम जुड़ गया है। अब, ओटीटी प्लेटफॉर्म ज़ी5 में ‘काकुड़ा’ के  फिल्म रिलीज हो गई है। सोनाक्षी सिन्हा, रितेश देशमुख और साकिब सलीम की मुख्य भूमिका में नजर आ रहे हैं।

क्या फिल्म की कहानी? kakuda Story

कथानक लोककथा से बिल्कुल अलग है। जहां ग्रामीणों ने अपने प्रवेश द्वार पर एक छोटा दरवाजा बनाया है और हर मंगलवार शाम को एक भूत ‘काकुड़ा’ का इंतजार करते हैं। अगर यह अलौकिक प्राणी दरवाजा बंद पाता है, तो वह परिवार के किसी व्यक्ति को लात मारता है, जिससे उनकी पीठ पर एक उभार आ जाता है और उनके पास जीने के लिए केवल 13 दिन बचते हैं।

इंदिरा (सोनाक्षी सिन्हा) और सनी (साकिब सलीम) एक प्रेमी जोड़े की भूमिका निभाते हैं, जो शादी करने के लिए संघर्ष करते हैं। मुख्य बाधा – इंदिरा के पिता एक अंग्रेजी बोलने वाला दामाद चाहते हैं।

साकिब का किरदार भाषा परीक्षण में विफल हो जाता है, इसलिए दोनों भागने का फैसला करते हैं। अपनी शादी के दिन, सनी घर पहुंचने में देर हो जाती है और इस तरह उसे ककुडा के क्रोध का सामना करना पड़ता है। जब वह अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहा होता है, तो उसकी नवविवाहिता सावित्री और यमराज की कहानी की तरह अपने पति को बचाने का फैसला करती है।

अब एंट्री होती है भूतों के शिकारी विक्टर (रितेश देशमुख) की, जो दिवंगत आत्माओं के लिए कामदेव की भूमिका भी निभाता है। इंदिरा के साथ, वह मामले को सुलझाने की यात्रा पर निकल पड़ता है।

उनके साथ जोड़े का दोस्त किलविश (आसिफ खान) भी आता है, जो भूत के विचार से घबरा जाता है, लेकिन अपने दोस्तों के लिए बहादुरी का परिचय देता है। अब क्या सोनाक्षी अपने पति को बचा पाती हैं जानने के लिए आपको पूरी फिल्म देखनी होगी।

रितेश देशमुख बेहद शांत, नए जमाने के तांत्रिक के रूप में शो चुरा लेते हैं सोनाक्षी सिन्हा भी अच्छी लगती हैं और इस किरदार में उन्हें कई शेड्स दिखाने का मौका मिलता है। साकिब सलीम और आसिफ खान ईमानदार हैं, लेकिन उनका योगदान बहुत ज़्यादा नहीं है।

‘मुंज्या’ की सफ़लता से अभी-अभी लौटे निर्देशक आदित्य सरपोतदार ने ‘काकुड़ा’ के साथ भी काफ़ी अच्छा काम किया है। ऐसा लगता है कि वह शैली और लोक कथाओं को समझते हैं, जिससे उनकी कहानी कहने की प्रक्रिया काफी आकर्षक बन जाती है।

कहानी, पटकथा और संवाद अविनाश द्विवेदी और चिराग गर्ग ने लिखे हैं, जो खुद अभिनेता हैं। कहानी काफ़ी बेहतरीन है, लेकिन उनकी पटकथा और भी सटीक हो सकती थी। दूसरी ओर, संवाद भी बेहतरीन हैं, जिसका श्रेय अभिनेताओं को जाता है जिन्होंने अपनी टाइमिंग के साथ दमदार अभिनय किया है।

आप इसे वीकेंड पर घर पर इसे देख सकते हैं, समय बर्बाद बिल्कुल नहीं होगा।

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