अंग्रेजी सेना की दूर से पदचाप सुनते ही शहरी-ग्रामीण अंचल में दशहत फैल जाता था। घरों के दरवाजे बंद हो जाते। चंद मिनट पहले गुलजार रहने वाली गलियां, बाजारों में सन्नाटा पसर जाता था। बुजुर्ग हो या जवान, सभी अंग्रेजी सेना से खौफजदा रहते थे। अंग्रेजों के जुल्मों सितम से बचाने एवं देश को स्वाधीनता की बेड़ियों से आजाद कराने के मकसद से महात्मा गांधी ने 8 अगस्त 1942 को अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का शंखनाद किया। अंग्रेजों ने आंदोलन दबाने की भरपूर कोशिश की इस बीच द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजों को उलझता देख नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने दिल्ली चलो नारा दिया। इस नारे ने आजादी के आंदोलन में जान फूंक दी। सुभाष चंद्र बोस के जय हिंद, तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा, जैसे देशभक्ति से लबरेज नारे आज भी जब सरजमीं पर गूंजते हैं तो देशवासियों में देशभक्ति की भावना हिलोरे मारने लगती है। 23 जनवरी 1897 में ओड़िसा में जन्में नेताजी सुभाष बोस एवं आजाद हिंद फौज का दिल्ली से गहरा नाता रहा है। यही वजह है कि उनकी स्मृतियां दिल्ली के टीकरी कलां गांव, लाल किला परिसर और आईएनए में आज भी बसी है। इस अंक में हम आजाद हिंद फौज के दिल्ली चलो नारे के परिप्रेक्ष्य में नेताजी की जिंदगी से जुड़ी खास चीजों एवं स्मृतियों से रूबरू कराएंगे–
हर तरफ दहशत का माहौल
इतिहासकार कहते हैं कि रूह कांप जाती थी, बाजारों में सन्नाटा पसर जाता था। शाम के बाद तो लोग कहीं आने जाने में डरते थे। डर था कहीं ब्रितानी सेना पकड़ ना लें। भारत छोड़ो आंदोलन को दबाने में अंग्रेजों को करीब एक साल लग गए। इस बीच दिल्ली चलो के नारे ने आजादी की लड़ाई को और भभका दिया। चांदनी चौक में धरना प्रदर्शनों की बाढ़ आ गई। देश के कोने कोने से युवा धरना प्रदर्शन में शरीक होने आते थे। क्लाक टावर के सामने प्रदर्शन होते थे। प्रदर्शनों के चलते इसे क्रांति चौक कहकर पुकारा जाता था। चांदनी चौक में इस जगह का नाम क्रांति चौक रखने की भी योजना बनाई गई थी। यहां से सेना प्रदर्शनकारियों को पकड़ वर्तमान मौलाना आजाद मेडिकल कालेज के स्थान पर मौजूद दिल्ली जेल ले जाया जाता था।
दिल्ली में आजाद हिंद फौज की तीन बैठकें
20 मई का दिन आजाद हिंद फौज के लिए विस्मरणीय है। क्यों कि इसी दिन पहली बार फौज के उच्च पदस्थ अधिकारियों की दिल्ली में बैठक हुई। इस्टर्न हाउस में लक्ष्मी सहगल अन्य अधिकारियों संग भविष्य की योजनाओं पर चर्चा की। बैठक में फौजियों के राहत और पुर्नवास पर ठोस रणनीति बनी। 21 मई को बिरला हाउस में एक अन्य बैठक हुई। जिसमें पंजाब, उत्तरप्रदेश, मुंबई, मद्रास से पदाधिकारी आए। आजाद हिंद फौज के चेयरमैन के रूप में मेजर जनरल एमजी कियानी, जनरल सेक्रेटरी कर्नल एनएस भगत, ज्वाइंट सेक्रेटरी कर्नल पीके राठौर और कर्नल सीजेएस का चयन हुआ। 23 और 24 मई की बैठक में सेना के लिए धनराशि इक्टठा करने पर चर्चा हुई। शहीद सैनिकों की पत्िनयों, बच्चों के पुर्नवास पर चर्चा हुई। माना जाता है कि इसी दौरान दिल्ली के आईएनए में आवास आवंटित करने पर पहली बार सहमति बनी थी।
दिल्ली चलो और युवाओं का उत्साह
इतिहासकारों की मानें तो भारत छोड़ों आंदोलन के बाद दिल्ली चलो के नारे से देश में उत्साह की लहर दौड़ पड़ी। उम्मीद की डोर और बलवती हो गई कि आजादी मिल के रहेगी। यही कारण था कि आजाद हिंद फौज संबंधी किस्से गली-गली, प्रत्येक घर में गाकर सुनाए जाते थे। फौजियों की बहादुरी के ऐसे ही कुछ किस्से प्रस्तुत है—-
मशीनगन के सामने छलनी हो लिखी विजयगाथा
अप्रैल 1944 की एक रात कालादान सेक्टर में एक पहाड़ पर दुश्मन की मजबूत सेना के खिलाफ नाइक मोलर सिंह की यूनिट ने हमला बोल दिया। जीत के लिए जरुरी था कि किसी तरह दुश्मन की मशीनगन का मुंह बंद कर दिया जाए। नाइक मोलर सिंह ने अपनी जान की परवाह नहीं की और मशीनगन के सामने खड़े हो गए। दुश्मनों की गोलियों से शरीर छलनी हो गया लेकिन हिम्मत नहीं टूटी। इस बीच आजाद हिंद फौज सेना ने पहाड़ी पर कब्जा जमा लिया।
गोलियों की बौछार के बीच दिखाई दिलेरी
18 मई 1944 को हिंद-वर्मा सरहद पर वटी सेक्टर में आजाद हिंद फौज की एक यूनिट पहाड़ी पर तैनात थी। तभी दुश्मनों ने तड़के सुबह पहाड़ी को चारो तरफ से घेर लिया। उस समय नाइक केहर सिंह की डयूटी थी। एक फौजी मशीनगन चला रहा था कि दुश्मनों की गोली से जख्मी हो गया। एक अन्य मशीनगन चलाने वाला फौजी शहीद हो गया। जख्मी सिपाही किसी को मशीनगन उठाने के लिए पुकार रहा था। केहर सिंह थोड़ी दूरी पर थे। ये देख उनका खून खौल उठा। वो दुश्मन की गोलियों की बौछार के बीच दौड़ते मशीनगन तक ना केवल पहुंचे बल्कि उठाकर तब तक फायरिंग की जब तक दुश्मन पहाड़ी से नीचे नहीं उतर गए।
26 ब्रितानी सिपाही से भिड़ा एक जवान
रंजीत सिंह नंबर 1 बहादुर समूह का एक हवलदार था। एक दिन उसे हाका के फलम में आजा हिंद फौज की खबर ब्रितानी सेना में फैलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। जासूसों ने उनका सुराग लगा लिया और तत्काल 26 अंग्रेज सैनिकों को गिरफ्तार करने भेजा गया। रंजीत सिंह को चारो तरफ से घेर लिया गया। उन्हें घुटनों के बल बैठकर हाथ ऊपर उठाने के लिए कहा गया। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और ताबड़तोड़ फायरिंग कर कईयों को मौत के घाट उतार दिया। दुश्मनों की गोलीबारी में रंजीत सिंह शहीद हो गए। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने रंजीत सिंह को शहीदे आजम की उपाधि दी।
हाजिर जवाबी के किस्से
फरवरी महीने में ही बिशनपुर सेक्टर इलाके में आजाद हिंद फौज के हवलदार रामलू नायडू और छह अन्य जवानों को दुश्मन की सेना ने घेर लिया। घुटनों पर बैठाकर हाथ पैर बांधने की तैयारी करने लगे। दुश्मनों को आरामतलब देख अचानक रामलू नायडू तेजी से इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाने लगे। दुश्मन इसके लिए तैयार नहीं थे। वो इस कदर हड़बड़ाए कि आजाद हिंद फौज के जवानों को भागने का मौका मिल गया।
गाने जो दिल्लीवासियों की जुबां पर थे
हम गोली खाकर झुमेंगे-हम मौत को भरकर चुमेंगे
मतवाले हैं आजादी के-हम दरिया जंगल घुमेंगे
हम दिल्ली-दिल्ली जाएंगे
हम बिगड़ी हिंद बनाएंगे
सुभाष हमारा हावी है-और राम बिहारी साथी है
फिर कैसा खतरा बाकि है-जापान हमारा साथी है
हम दिल्ली-दिल्ली जाएंगे
हम बिगड़ी हिंद बनाएंगे।।
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हम मारेंगे, मर जाएंगे
अंग्रेज को मार भगाएंगे
हिंदु-मुस्लिम मिल जाएंगे
लंदन तक तेग चलाएंगे
हम जफर का कौल निबाहेंगे
नाना साहब बन जाएंगे
टीपू, हैदर, सिराज सबका
हम बदला आज चुकाएंगे
चिड़ियों से बाज लड़ाएंगे
अंग्रेज को मार भगाएंगे।।
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आईएनए से गहरा नाता
इतिहासकार विवेक शुक्ला कहते हैं कि दिल्ली-6 और नई दिल्ली में सुभाष चंद्र बोस कई बार आए। वर्तमान आईएनए इलाके से तो आजाद हिंद फौज का गहरा नाता रहा है। कारण, कालोनी का नाम ही आजाद हिंद फौज के नाम पर रखा गया है। यहां आजाद हिंद फौज के जवानों को फ्लैट आवंटित किए गए थे। बाद में जवानों की मृत्यु, उनके परिवार के सदस्य चले गए। फ्लैट तोड़कर बाद में उसी स्थान पर डीडीए का विकास सदन बनाया गया।
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नेताजी की यांदों को संजोता टीकरी गांव
बाहरी दिल्ली स्थित टीकरी गांव वर्तमान में आजाद हिंद ग्राम के नाम से जाना जाता है। गांव के लोगों का कहना है कि साल 1939 में नेताजी ने यहां भाषण दिया था, इसलिए यह स्थान लोगों के लिए पूजनीय है। लोगों की कोशिशों से 16 साल पहले यहां स्मारक बनाया गया, जिसमें एक संग्रहालय भी शामिल है। दो एकड़ में फैले नेताजी के इस ग्राम में सिंगापुर से देशवासियों का संबोधन की तस्वीरें, हिटलर से हाथ मिलाते हुए उनकी तस्वीर के साथ महिला ब्रिगेड रानी झांसी रेजीमेंट को ट्रेनिंग देते हुए कुछ तस्वीरें शामिल हैं। नेताजी पर बनी शार्ट फिल्म भी दिखाई जाती है। साल 1940 में देश से भेष बदल कर अपने भतीजे शीशीर के साथ कार में बैठे नेताजी की तस्वीर, आजाद हिंद फौज की रणनीति बनाते नेताजी, गांधी जी, नेहरू से बात करते नेताजी की तस्वीरें दिल को छूने वाली है। गांव वालों की मानें तो एक पीपल का पेड़ हुआ करता था जिसके नीचे सुभाष चंद्र बोस ने लोगों को संबोधित किया था। दिल्ली में यह उनका आखिरी भाषण था।
लाल किले में संरक्षित इतिहास
लाल किले के स्वतंत्रता संग्रहालय में नेताजी से जुड़ी यादों को तस्वीरों के जरिए सहेजा गया है। यहां फौज को संबोधित करते हुए नेताजी, नेहरू और इंदिरा के साथ नेताजी की बातें, कहीं लक्ष्मी सहगल के साथ रानी झांसी रेजिमेंट का जायजा लेते नेताजी की तस्वीरें हैं। देश भक्ति से लबरेज उनके भाषण की प्रतियां भी उपलब्ध है। संग्रहालय में रखी उनकी शानदार कुर्सी, उनकी तलवार, उनके द्वारा इस्तेमाल की गई कुछ सिगार पाइप, चश्मा उनके जीवन शैली पर भी प्रकाश डालता नजर आता है। संग्रहालय में आजाद हिंद फौज के जांबाज कमांडरों पर चले मुकदमें का डायरोमा भी है। यहां कर्नल प्रेम सहगल, मेजर जनरल शहनवाज खान और कर्नल गुरबख्श ढिल्लन पर मुकदमा चला था।