कुलदीप नैयर ने अपनी किताब में इस पर विस्तार से लिखा है। वो लिखते हैं कि तिरुवलुर थतई कृष्णामचारी (टी.टी.के.) लगभग दस वर्ष तक केबिनेट मंत्री रहे थे और नेहरू के बहुत करीब माने जाते थे। उन्होंने कुलदीप नैयर से बताया था कि अपने अन्तिम दिनों में नेहरू काफी धार्मिक हो गए थे। “जब 1954 में दक्षिण के एक मन्दिर में प्रवेश करने के लिए उन्हें अपनी कमीज उतारने के लिए कहा गया तो उन्होंने मना कर दिया था, लेकिन उनकी मृत्यु के समय उनके बिस्तर के पास गीता और उपनिषदों की प्रतियां रखी हुई थीं।
गीता और उपनिषद धार्मिक ग्रन्थ हैं या दर्शन शास्त्र, इसके बारे में अलग-अलग मत हो सकते हैं। नेहरू की नजर में, जैसाकि एक बार उन्होंने लिखा भी था, “उनमें एक सम्मोहक यथार्थ था।” नेहरू का मानना था कि ये ग्रन्थ किन्हीं दिव्य शक्तियों का सृजन न होकर मनुष्यों द्वारा रचे गए थे। “वे अत्यन्त बुद्धिमान और दूरदर्शी थे, लेकिन वे सामान्य मनुष्य थे।” वे अपने ब्रीफकेस में हमेशा गीता की एक प्रति और यू.एन. चार्टर का संक्षिप्त संस्करण रखते थे।

क्या उनका धर्म बुद्ध की तरह ईश्वरविहीन था, क्योंकि वे किसी देवता या अलौकिक शक्ति की कल्पना करने में अपने-आपको असमर्थ पाते थे? मथई का कहना था कि अगर नेहरू किसी धर्म को मानते थे तो वह बुद्ध धर्म था। या फिर नेहरू का धर्म इंग्लैंड के डेइस्ट आन्दोलन की तरह था, जिसके अनुसार ईश्वर और प्रकृति में कोई अन्तर नहीं है? या फिर उनका धर्म मानवतावाद था? उनके स्टडी रूम में कुल्लू की पहाड़ियों की पेंटिंगें टैंगी हुई थीं। फ्रांसीसी बुद्धिजीवी आन्द्रे मॉलरो ने दिल्ली में मुझे बताया था कि एक बार नेहरू ने उनसे कहा था, “शायद मेरा सर्वोच्च मूल्य सत्य है। मुझे नहीं मालूम, पर मैं इसके बिना नहीं जी सकता ।”

एक बार किसी ने उनसे पूछा था, “आप ईश्वर के बारे में और ईश्वर के साथ मनुष्य के सम्बन्धों के बारे में क्या सोचते हैं?” नेहरू कुछ क्षणों के लिए सोच में डूब गए। फिर बड़े दार्शनिक अन्दाज में उन्होंने कहा

इस प्रश्न का ठीक-ठीक जवाब देना बड़ा मुश्किल है। ईश्वर को लेकर मनुष्य की धारणा स्थायी नहीं है और समय के साथ बदलती रहती है। उदाहरण के लिए ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ में ईश्वर को एक निष्ठुर, क्रोधी और भयानक पिता के रूप में दिखाया गया है जो मनुष्य को हर पाप और कुकर्म की सजा देने का काम करता है। लेकिन ‘न्यू टेस्टामेंट’ में ईश्वर की धारणा बदल गई और उसे एक प्यार करनेवाले दयालु पिता के रूप में चित्रित किया गया, जो हमारी भूलों को भी क्षमा करने के लिए तैयार रहता है। ईश्वर की धारणा में यह बदलाव मनुष्य के विकास का एक महत्त्वपूर्ण चरण था। इसने मानवीय सभ्यता के विकासक्रम के दौरान मनुष्य की सोच को एक नया स्वरूप दे दिया।

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here