Bihar Politics LIVE: बिहार की राजनीति एक बार सुर्खियों में है। कयास लगाए जा रहे हैं कि नीतीश कुमार एक बार फिर भाजपा का दामन थाम सकते हैं। हालांकि आरजेडी बार बार यह कह रही है कि सरकार सुरक्षित है। इस बीच हम आपको नीतीश कुमार की जिंदगी से जुड़ी कुछ दिलचस्प कहानी सुनाते हैं।

ये बात तब की है जब नीतीश कुमार को 1977 और 1980 में कई विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा। इससे नीतीश कुमार बिलकुल विचलित नहीं हुए। वह अपने मिशन में लगे रहे, जबकि उनके समकालीन लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान केंद्र की राजनीति में अपनी जड़ें मजबूत कर रहे थे । नीतीश कुमार को इस बात का कोई मलाल नहीं था कि वह राजनीति में पिछड़ रहे हैं, बल्कि इस बात की ओर उनका ध्यान था कि वह किस प्रकार राजनीति में अपना एक अलग मुकाम हासिल करें। उसी का परिणाम रहा कि नीतीश कुमार 1985 में पहली बार हरनीट विधानसभा से चुने गए।

उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार सियासत में अपनी एक खास पहचान बनाने में जुटे रहे। 1985 की जीत ने नीतीश के अंदर उत्साह भर दिया था। 1989 में वह कांग्रेस के दिग्गज नेता रामलखन सिंह यादव को हराकर लोकसभा पहुंचे और 6 बार लगातार सांसद होने का गौरव भी हासिल किया। 1990 में प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के मंत्रिमंडल में वे केंद्रीय कृषि और सहकारिता राज्य मंत्री बने । 1994 में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव से अलग होकर समता पार्टी का गठन किया।

लालू-राबड़ी के खिलाफ जंग छेड़कर उन्होंने बिहार में एक नए राजनीतिक समीकरण के उदय का संकेत दे दिया। नीतीश, जॉर्ज फर्नाडिस और 12 अन्य सांसदों के साथ मिलकर राजद को चुनौती देने लगे । 1995 में राज्य विधानसभा चुनाव में समता पार्टी की जबरदस्त हार के बावजूद नीतीश का मनोबल कम नहीं हुआ । उस समय तक बिहार से झारखंड अलग नहीं हुआ था । राज्य में विधानसभा सीटों की संख्या 324 थी, जिसमें नीतीश कुमार की पार्टी से केवल 6 विधायक ही जीत सके।

नीतीश ने इस अनुभव से सीख लेते हुए दिसंबर, 2003 में जनता दल (यूनाइटेड) के साथ समता पार्टी का विलय कर लिया । नीतीश कुमार अपने काम को लेकर काफी सिद्धांत वाले नेता माने जाते हैं। इसकी एक मिसाल उन्होंने केंद्रीय मंत्री के तौर पर भी दी। जब 1998 में राजग सरकार का गठन हुआ, तो नीतीश कुमार रेल मंत्री बने और उन्हें भूतल परिवहन मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार भी सौंपा गया। जब अगस्त, 1999 में पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी के निकट गैसल रेल हादसा हुआ, तो उन्होंने जिम्मेदारी लेते हुए रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। अपने पद की जिम्मेदारी को समझते हुए ऐसा कदम इससे पहले रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने ही उठाया था।

रेल मंत्री के पद से इस्तीफा देने के कुछ समय बाद नीतीश को राजग सरकार में फिर से शामिल किया गया। इस बार उन्हें कृषि मंत्री का पद मिला। वे नवंबर, 1999 से मार्च, 2000 तक और फिर मई 2000 से मार्च, 2001 तक राजग सरकार में कृषि मंत्री के रूप में कार्य करते रहे। इस बीच 3 मार्च, 2000 को बिहार में बदले राजनीतिक हालात के बीच नीतीश को बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेनी पड़ी, लेकिन 10 मार्च, 2000 तक वे केवल 7 दिन के लिए राज्य के मुख्यमंत्री रहे। नीतीश विधानसभा में बहुमत सिद्ध कर पाने में विफल रहे।

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