दिल्लीवालों ने बादशाह बहादुर शाह जफर को लिखी थी कई चिट्ठियां

1857 की क्रांति: बगावत के समय ऐसे कई सबूत मिलते हैं जिनसे जनता के महंगाई से जूझने का पता चलता है। उस वक्त स्थिति कितनी खराब थी इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि बहादुर शाह जफर के सामने शाही बागवानों की भी कई अर्जियां आयी। जिसमें शिकायत की गई थी कि महल के चौकीदारों की मौजूदगी के बावजूद विद्रोही बाग के फलों पर हमले करते हैं।

ऐसी ही एक शिकायत में लिखा गया कि-

“जहांपनाह हमारे केलों, अंगूरों और आलू बुखारों की 1000 रुपए की फसल तैयार थी लेकिन विद्रोही आए और उन्होंने सब लूट लिया। जो कुछ बचा उसको भी साथ ले गए। हुकूमत की तरफ से जो पहरेदार नियुक्त हैं वह बिल्कुल बेकार हैं क्योंकि विद्रोही उनकी कोई बात नहीं मानते और जब वह ज़्यादा विरोध करते हैं तो वह उनकी बंदूकें छीन लेते हैं।

इन सब मुश्किलों के बावजूद अंदरूनी रूप से अब भी लोगों में भरोसे की ज़बर्दस्त लहर थी कि अंग्रेजों की जो संक्षिप्त फौज रिज पर जमी है, उससे जल्द मुकाबला होने वाला है। जब दिल्ली वाले अंग्रेजों के वापस आ जाने के धचके से संभले, तो उनको अंदाज़ा हुआ कि अंग्रेजों की यह फील्ड फोर्स बहुत कम तादाद में है और कमज़ोर है, और शहर की दीवारों के अंदर क्रांतिकारियों  की सुरक्षा फौज की ताकत रोज-बरोज बढ़ रही है।

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