मुंशी भैरों प्रसाद दिल्ली के कायस्थ घराने से संबद्ध थे। मुंशीजी ने दिल्ली कॉलेज (the delhi collage) में शिक्षा पाई थी। बड़े होनहार और योग्य थे। बी.ए. की परीक्षा में फर्स्ट आए थे और आर्नल्ड गोल्ड मेडल भी हासिल किया था। दिल्ली कॉलेज में असिस्टेन्ट प्रोफ़ेसर बन गए थे। साँवले रंग के थे और ऐनक पहनते थे। जाड़े में मखमल की अचकन और गर्मी में कुर्ता और चूड़ीदार पायजामा पहनते थे। सर पर अमामा होता था और इजारबंद अक्सर लटकता रहता था। पीने-पिलाने के शौक़ीन थे। शिक्षित वर्ग उनकी बड़ी क़द्र करता था और विद्यार्थी तो उनकी पूजा करते थे।

मुंशी भैरों प्रसाद 1865 ई. में गर्वनमेंट हाईस्कूल दिल्ली के हेड मास्टर नियुक्त हुए थे उनको भाषा पर पूरा अधिकार था और उनके लेखन में बड़ा प्रवाह था । दिल्लीवाले होने के नाते से उर्दू उनकी दासी थी। कायस्थ होने की वजह से फ़ारसी में भी दक्ष थे। जब 1877 ई. में यह फैसला किया गया था कि दिल्ली कॉलेज बंद किया जाएगा तो मुंशी भैरों प्रसाद ने उसके विरुद्ध हुए आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। जो शिष्ट-मंडल इस संबंध में वायसराय से मिला था उसमें दूसरी मशहूर हस्तियों के साथ मुंशी भैरों प्रसाद थे। रिटायर होने के बाद उन्होंने दिल्ली में एक लिटरेरी सोसायटी की स्थापना की थी। इस सोसायटी ने उर्दू की बड़ी सेवा की। एक अनुमान के अनुसार मास्टर भैरों प्रसाद का निधन 1912 ई. में दिल्ली में ही हुआ।

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