तुगलक खानदान ने 1320 ई. से 1414 ई. किया था शासन
इस खानदान में सब मिलाकर कुल आठ बादशाह हुए, जिनमें दो बहुत विख्यात हैं। एक अपनी बुराइयों के कारण और दूसरा, अपनी नेकियों के कारण। बदनामी का टीका है- मोहम्मद तुगलक के माथे पर, और नेकनाम हुआ फोरोज तुगलक।
गयासुद्दीन तुगलक 1320 ई. में गद्दी पर बैठा और उसने 1324 ई. तक चार वर्ष राज्य किया। वास्तव में वह भी गुलाम था। वह अलाउद्दीन के जमाने में खुरासान से दिल्ली लाया गया था। उसका बाप तुर्क और मां जाटनी थी। अपनी योग्यता के कारण ही यह देपालपुर (मिंटगुमरी) और लाहौर का गवर्नर बना था। चार वर्ष के समय में उसने अच्छी योग्यता दिखाई और नाम पाया।
गद्दी पर बैठते ही उसने अपने नाम का एक नया शहर तुगलकाबाद कुतुब से पांच मील के अंतर पर बनवाना शुरू किया, जो मुसलमानों की चौथी दिल्ली थी। कहते हैं कि इस शहर में बादशाह के महलात और खजाने थे। उसने एक बड़ा महल ऐसा बनाया था, जिसकी ईंटों पर सोना चढ़ा हुआ था। कोई व्यक्ति महल की ओर दृष्टि नहीं जमा सकता था। उसने बहुत सामान जमा किया था। कहते हैं कि उसने एक हौज बनवाकर और सोना पिघलवाकर उसमें भरवा दिया था। उसके बेटे ने वह तमाम सोना खर्च किया। उसकी दौलत का कोई हिसाब न था।
इसने भारी लश्कर देकर अपने बेटे जोना शाह को दक्षिण फतह करने भेजा था, मगर लोगों ने उड़ा दिया कि बादशाह दिल्ली में मर गया। इस खबर से लश्कर में निराशा छा गई। जोना शाह दिल्ली लौट आया। बाद में बादशाह ने स्वयं बंगाल पर चढ़ाई की और अपने लड़के को दिल्ली में राज्य का काम देखने छोड़ दिया।
उसने अपने बाप को मरवा डालने की तरकीब सोची। बादशाह जब बंगाल से लौट रहा या तो वापसी पर उसे ठहराने के लिए तुगलकाबाद के करीब अफगानपुर में एक ऐसा महल बनवाया कि जरा-सा धक्का लगने से गिर पड़े। बादशाह जब ढाका से फरवरी 1325 ई. में वापस लौटा तो अफगानपुर में आराम करने उतरा। उसका छोटा लड़का और चंद उमरा बैठे हुए थे कि चंद हाथी सामने लाए गए और यकायक तमाम इमारत गिर पड़ी, जिसके नीचे दबकर सब मृत्युलोक को सिधार गए। बादशाह को अपने बनवाए हुए शहर तुगलकाबाद में फीले के पेटे में, जहां उसने अपना गुंबद बनवा रखा था, दफन किया गया। अपने बाप को इस प्रकार मरवाने की जो यह किंवदंती है, उसके बारे में भिन्न-भिन्न मत हैं। कुछ का कहना है कि महल बिजली गिरने से गिरा था।