अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव देश (loksabha chunav 2023)की राजनीति (Indian politics) की दिशा और दशा के लिए निर्णायक साबित होंगे। ऐसे में लोकसभा (Lok Sabha election 2024) से पहले होने वाले प्रत्येक चुनाव का बहुत महत्व है। इससे जनता के मूड का तो पता चलता ही है सियासी दलों की नीतियों का भी मूल्यांकन होता है। इस लिहाज से भी कर्नाटक विधानसभा और यूपी नगर निकाय चुनावों (UP nagar nikay chunav) का महत्व बढ जाता है। कर्नाटक में भाजपा (BJP) भले ही सत्ता से दूर रह गई हो लेकिन यूपी निकाय चुनाव परिणामों ने पार्टी को जश्न मनाने का पूरा मौका दिया है। सर्वाधिक लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के निकाय चुनाव को लोकसभा चुनाव की तैयारियों के तौर पर देखा जा रहा था। चाहे सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (bharatiya janata party)और उसके सहयोगी दल हों, विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (Samajwadi party), बहुजन समाज पार्टी (BSP) या कांग्रेस (Congress) हो… प्रत्येक राजनीतिक दल के लिए संगठन के लिहाज से भी ये चुनाव मायने रखता था। सभी दल अपने-अपने हिसाब से जोर भी खूब लगा रहे थे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (up cm yogi adityanath) के लिए निकाय चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं था। क्योंकि यह पहला चुनाव था, जो ‘अकेले’ योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी लड़ रही थी। योगी के ऊपर पूरे चुनाव का दारोमदार था। ऐसे में जीत का श्रेय भी योगी आदित्यनाथ को मिलना लाजमी है। निकाय चुनाव परिणामों से बीजेपी के कार्यकर्ताओं का तो हौसला बढेगा ही, ताज्जुब नहीं की लोकसभा चुनाव प्रचार में योगी के ‘यूपी मॉडल’ की गूंज सुनाई दे।

यूपी में 2017 के विधानसभा चुनावों से लेकर अब तक हुए हर चुनाव में योगी की छवि कद्दावर नेता के तौर पर उभरती नजर आती है। 2017 में योगी आदित्यनाथ जब बीजेपी की प्रचंड जीत के बाद मुख्यमंत्री बनाए गए तो उनकी अगुवाई में बीजेपी ने पहला चुनाव, नगर निकाय का ही लड़ा था। चुनाव में बीजेपी ने 16 नगर निगमों में से 14 पर जीत का परचम लहराया था। इतना ही नहीं 70 नगर पालिका अध्यक्ष समेत नगर पंचायतों की 100 सीटों पर दमदार प्रदर्शन किया था। भले ही पीएम नरेंद्र मोदी ने खुद इस परिणाम के बाद योगी आदित्यनाथ और उनकी टीम की प्रशंसा की थी लेकिन चुनावी पंडितों ने जीत की वजह ‘मोदी मैजिक’ बताया था। इसके 5 साल बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए दोबारा यूपी की सत्ता हासिल की। इस प्रचंड जीत से योगी की बेहतर प्रशासक की छवि पुष्ट हुई लेकिन राजनीतिक पंडित अभी भी इस सवाल से जूझ रहे थे कि क्या योगी अकेले पार्टी की चुनावी नैया पार लगा सकते हैं?  

13 दिन में संवाद का अर्धशतक

कर्नाटक विधानसभा और यूपी निकाय चुनाव एक साथ हुए। चुनाव के दौरान बीजेपी की पूरी केंद्रीय टीम ने कर्नाटक में ताकत झोंक रखी थी। योगी आदित्यनाथ निकाय चुनाव में अकेले ही मोर्चे पर डटे रहे। वह अपने मंत्रियों, विधायकों के साथ स्टेट बीजेपी टीम की अगुवाई कर रहे थे। निकाय चुनाव की योगी के लिए क्या अहमियत थी इसका अंदाजा चुनावी रैलियों से लगाया जा सकता है। योगी आदित्यनाथ ने महज 13 दिन में ‘संवाद का अर्धशतक’ लगाया, 50 रैलियां की। सपा मुखिया अखिलेश यादव से लेकर तमाम दूसरी पार्टियों की तुलना में योगी ने चुनाव प्रचार में कहीं ज्यादा पसीना बहाया। हर दिन वो अलग अलग जिलों के दौरे पर रहे। इतना ही नहीं निकाय चुनाव के बीच में 3 दिन कर्नाटक कर्नाटक में भी चुनाव प्रचार किए।

मुख्यमंत्री ने प्रत्येक चुनावी रैली में यूपी ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट की सफलता, यूपी में नए मेडिकल कॉलेज, हाईवे समेत इंफ्रास्ट्रक्चर एवं चौतरफा विकास पर खूब बोला लेकिन सबसे ज्यादा जोर अपराधियों के खिलाफ एक्शन पर दिया। पूरे चुनाव में ‘माफियाओं को मिट्‌टी में मिला देंगे’ वाला बयान सर्वाधिक चर्चा में रहा। उमेश पाल हत्याकांड के बाद यूपी सरकार का बुलडोजर एक्शन से लेकर शूटर्स का एनकाउंटर हो या माफिया अतीक अहमद और उसके भाई की पुलिस कस्टडी में हत्या…बीजेपी हाल के इन घटनाक्रमों को इस तरह से पेश किया जैसे योगी सरकार में ही यह संभव था।

अतीक-अशरफ की हत्या के बाद प्रयागराज पहुंचे योगी आदित्यनाथ ने किसी का नाम लिए बिना कहा भी था कि यहां की धरती अत्याचार बर्दाश्त नहीं करती। प्रकृति न्याय जरूर करती है। जो जैसा करेगा, उसको वैसा ही फल मिलता है। जिन लोगों ने अन्याय किया था प्रकृति ने न्याय कर दिया। इसी निकाय चुनाव के दौरान पश्चिम उत्तर प्रदेश में यूपी एसटीएफ ने दुर्दांत गैंगस्टर अनिल दुजाना को एनकाउंटर में मार गिराया, जिसकी खूब चर्चा हुई। अपनी रैलियों में योगी ने No कर्फ्यू, No दंगा, यूपी में सब चंगा… रंगदारी न फिरौती, अब यूपी नहीं है किसी की बपौती…सरीखे लोकप्रिय नारे गढे।

योगी आदित्यनाथ ने तो नगर निकाय चुनावों को देवासुर संग्राम तक कह डाला था। सहारनपुर में जनसभा को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा था कि यह चुनाव देवासुर संग्राम से कम नहीं है। चुनाव में दानव के रूप में भ्रष्टाचारी हैं, दुराचारी हैं और अपराधी प्रवृत्ति के लोग हैं। जनता की मदद से निकाय चुनाव में ऐसी ताकतों को किनारे लगा देना है।

योगी सरकार एक तरफ चौतरफा विकास पर ध्यान दे रही है तो वहीं दूसरी तरफ कानून व्यवस्था की बेहतरी पर प्राथमिकता से ध्यान दे रही है। दुर्दांत माफियाओं पर नकेल कसने के साथ सतत पुलिस सुधारों की प्रक्रिया भी शुरू की गई है। इसके सकारात्मक परिणाम अब दिखने लगे है। कानून व्यवस्था की स्थिति सुधरने की वजह से निवेश बढा है। कभी बीमारू राज्यों में गिना जाने वाला यूपी आज ना केवल घरेलू बल्कि विदेशी निवेशकों को भी आकर्षित कर रहा है। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2023 में मुकेश अंबानी, कुमार मंगलम बिडला, टाटा समूह के एन चंद्रशेखर से लेकर ज्यूरिख एयरपोर्ट एशिया के सीईओ डेनियल बिचर समेत उद्योगजगत के दिग्गजों की उपस्थिति इसका प्रमाण था। कुल 33 लाख करोड रुपये के निवेश समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। बीजेपी को पता है कि यूपी बदलाव के दौर से गुजर रहा है। जनता विकास और तरक्की चाहती है, ना कि जातिगत द्वंद। माफियाओं से पूरा प्रदेश मुक्ति चाहता है। इसलिए राजनीतिक दल भले ही बुलडोजर कार्रवाई की निंदा करें लेकिन योगी अपने पथ पर अडिग चले जा रहे हैं।

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