मनमोहन देसाई (manmohan desai) अपने भाई सुभाष देसाई (subhash desai) को असिस्ट करते थे। एक दिन सुभाष ने उनसे पूछा कि आप फिल्म डायरेक्ट करोेगे। मनमोहन देसाई ने हां कह दिया। सुभाष ने उनसे पूछा कि किस अभिनेता-अभिनेत्री को फिल्म में लेना चाहेंगे। इस पर मनमोहन जी ने राज कपूर (raj kapoor) और नूतन (nootan) का नाम लिया। यहां यह दिक्कत थी कि राजकपूर बहुत व्यस्त थे। खैर, सुभाष देसाई ने राजकपूर को मना लिया। राजकपूर ने कहा कि वो फिल्म करेंगे, एक शर्त रख दी।
क्या थी शर्त
राजकपूर ने कहा कि पहले वो कुछ दिन मनमोहन देसाई का काम देखेंगे। यदि उनका काम पसंद आता है तो आगे भी फिल्म वही निर्देशित करेंगे। यदि काम पसंद नहीं आता है तो किसी और निर्देशक को फिल्म की कमान सौंपी जाएगी। सुभाष ने यह बात अपने भाई से नहीं बताई।
इस तरह चला पता
जब फिल्म के टाइटल सांग की शूटिंग पूरी हुई तो राजकपूर बहुत खुश नजर आए। उन्होने मनमोहन देसाई की जमकर तारीफ की। मनमोहन केे निर्देशन कौशल ने उन्हें प्रभावित किया। जब राजकपूर, मनमोहन से मिले तो कहा कि यू आर आन। फाइनली इस फिल्म को तुम ही डायरेक्ट करोेगे। मनमोहन को यह बात समझ नहीं आई। एक साल बाद सुभाष जी ने उन्हें सारी बात बताई। उस समय तक फिल्म बनकर तैयार हो चुुकी थी। तब मनमोहन देसाई ने कहा कि अच्छा हुआ यह बात पता नहीं चली, नहीं तो वो डिप्रेशन में आ जाते।