जोना शाह, जिसे अलग खां भी कहते थे, 1325 ई. में गद्दी पर बैठा और उसने 1351 ई. तक राज्य किया। गद्दी पर बैठकर उसने अपना नाम मोहम्मद बिन तुगलक रखा, मगर आम लोग उसे खूनी सुलतान के नाम से जानते थे, क्योंकि उसके जुल्मों की कोई हद न थी। दिल्ली की चारदीवारी इसी ने बनवाई।

उसके महल को, जो दिल्ली में था, दारेसरा कहते थे। उसमें कई दरवाजों में से होकर जाना पड़ता था। पहले दरवाजे पर पहरेदार रहते थे। नफीरी नक्कारे वाले भी इसी दरवाजे पर रहते थे। जिस वक्त कोई अमीर या बड़ा आदमी आता तो नफीरी नक्कारा बजने लगता।

यही बात दूसरे, तीसरे दरवाजे पर भी होती। यह नौबत इस तरह बजाई जाती थी कि उससे पता चल जाता था कि कौन व्यक्ति आ रहा है। पहले दरवाजे के बाहर जल्लाद बैठा रहता। जब किसी की गरदन काटने का हुक्म होता तो वह कने हजार सुतून के सामने मारा जाता और उसका सिर पहले दरवाजे के बाहर तीन दिन लटका रहता। तीसरे दरवाजे पर मुत्सद्दी रहते थे, जो अंदर आने वालों का नाम दर्ज करते जाते थे।

दरवाजे पर दिन में जो कुछ वाकयात गुजरते, उसका रोजनामचा बादशाह के सामने पेश होता था। मुलाकात के लिए जो भी आता था, उसे नजर देनी पड़ती थी। मौलवी हो तो कुरान, फकीर हो तो माला, अमीर हो तो घोड़ा, ऊंट, हथियार, आदि एक बड़ा दीवानखाना लकड़ी के हजार मुतूनों पर बना हुआ था। इसमें सब दरबारी जमा होते थे। बादशाह का जुलूस भी एक खास शान से निकलता था, खासकर ईद की नमाज का।

इसकी सब बातें निराली होती थीं। खाने का ढंग भी निराला था। सखावत भी खूब करता था। परदेसियों पर बहुत मेहरबान रहता था। हिंदुओं के साथ भी उसका बर्ताव अच्छा था। उसके जमाने में मिस्र का सफीर भी आया था। उसकी सखावत, इंसाफ और रहमदिली की तथा जुल्म और वहशत को बहुत सी कहानियां मशहूर हैं, जिनको सुनकर यह अंदाजा लगाना कठिन है कि यह व्यक्ति इंसान था या हैवान ।

आदिलाबाद या मोहम्मदाबाद या इमारत हजार सुतून

तुगलकाबाद के दक्षिण में इसी किले के साथ दो और किले हैं। दक्षिण-पूर्व के कोने में जो एक छोटी-सी पहाड़ी है, उस पर एक किला है। यह मोहम्मद शाह तुगलक के नाम पर है और मोहम्मदाबाद कहलाता है। चूंकि बादशाह का पूरा नाम मोहम्मद आदिल तुगलक शाह उर्फ फखरुद्दीन जूना था, इसलिए इसका नाम आदिलाबाद भी पड़ा। इस किले में हजार सुतून संगमरमर के लगाए गए थे। इसलिए इसे इमारत हजार सुतून भी कहते थे। यह जगह पहाड़ों के बीच के मैदान में है, जहां पानी भरा रहता था। इसलिए इसका नाम जल महल भी पड़ा। बादशाह ने शहर तुगलकाबाद के दरवाजे से इस किले के दरवाजे तक एक पुल बनवाया और मकबरे और इस किले के दरवाजों के पास भी पुल बनवाया और किले की उत्तरी दीवार के आगे पानी के किनारे इमारत हजार सुतून बनवाई। अब यह किला खंडहर की हालत में है, केवल दीवारें खड़ी हैं। अंदर जाने के लिए पुल है, जो सड़क पर से अंदर जाता है। बरसात में अब भी इस मैदान में पानी भर जाता है। अंदर के महल का कोई निशान बाफी नहीं है। आदिलाबाद का घेरा कोई आधा मील है। इब्नबतूता का ख्याल है कि हजार सुतून संगमरमर के नहीं, बल्कि लकड़ी के थे, जिन पर रोगन हुआ था और छत भी लड़की की थी। किले में चारों और मकानों और बाजार के खंडहर पड़े हैं। यह किला महरौली से पांच मील दाएं हाथ पर पड़ता है। इसे 1326 ई. में बनाया गया।

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