गयासुद्दीन तुगलक शाह अपने एक लड़के और चंद साथियों के साथ 1325 ई. में मकान के नीचे दबकर मर गया। उसके शव को रातोंरात ले जाकर उस मकबरे में दफन किया गया, जो बादशाह ने खुद तुगलकाबाद में बनवाया था। कई इतिहासकारों का यह भी मानना है कि इसे मोहम्मद तुगलक ने अपने बाप की मृत्यु के बाद एक ही साल के अंदर बनवा दिया।

कनिंघम ने इस मकबरे के बारे में लिखा है- यह मकबरा एक बनावटी झील के पेटे में बना हुआ है, जिसमें हौज शम्सी से, जो कुतुब के पास है, नहर लाई गई है और चारों ओर के नालों का पानी जमा होता है। किसी जमाने में यह किले की खंदक का काम भी देती थी। यह झील छह सौ फुट लंबे महराबदार पुल से मिला दी गई है। पुल के 27 दर हैं।

मकबरा मुरब्बा शक्ल का है, जो अंदर से 34.5 फुट ऊंचा है। नीचे से ऊपर की दीवारें ढलवां बनाई गई हैं। गुंबद का माप अंदर से 35 फुट और बाहर से 55 फुट है और ऊंचाई 20 फुट है। तमाम गुंबद संगमरमर का है। कुल मकबरे की ऊंचाई 70 फुट है और कलस जो संगमरमर का है- की ऊंचाई करीब 10 फुट गुंबद के चारों ओर चार बड़े-बड़े महराबदार चौबीस-चौबीस फुट ऊंचे दरवाजे हैं, जिनमें पश्चिम का दरवाजा बंद है।

यह मकबरा 1321-25 ई. में बनकर तैयार हुआ। इसकी दीवारें गावदुम हैं। मकबरे का बाहर का दरवाजा बड़ा आलीशान लाल रंग के पत्थर का बना हुआ है, जिस पर 32 सीढ़ियां चढ़कर जाते हैं। अहाते की दीवारों में बहुत-से हुजरे हैं, जो गरीबों के आराम के लिए बनाए गए है। गुंबद में तीन कब्रें हैं। बीच वाली कब्र सुलतान गयासुद्दीन तुगलक की है। बाकी दो में से एक मोहम्मद शाह की है, जो सिंध में 1351 ई. में फौत हुआ और दूसरी उसकी बेगम की। कब्रें सादी, चूने मिट्टी की बनी हुई हैं। ये करें पूर्व की और हटकर बनी हुई हैं, मकबरे के बीच में नहीं। शायद और कब्राँ के लिए जगह छोड़ी गई होगी। तीनों तरफ के दरवाजों पर संगमरमर की जालियां हैं।

दक्षिण की तरफ एक दालान के बाहर कुआं है, जो पर्दे का कुआं कहलाता है। इस तरफ तहखाने का दरवाजा है, जो अंदर-अंदर चला गया है। मकबरे के चारों ओर कंगूरेदार फसीलनुमा कंपाउंड है, जिसकी दीवार 12 फुट ऊंची है और जिसमें 46 कोठरियां हैं। कंपाउंड के चारों कोनों में सैदरियां बनाई गई हैं। मकबरे के पूर्व के दालान में एक छोटी-सी कब्र है, जो कुत्ते की बताई जाती है। मकबरे के दरवाजे के दाएं हाथ अंदर पूर्वी कोने में एक और छोटा मकबरा बना हुआ है। मालूम नहीं, वह किसका है, मगर है बहुत सुंदर। इसके दो दर हैं।

अंदर के दर आठ हैं। इस मकबरे में दो कब्रें हैं। मकबरे का सदर दरवाजा काफी बड़ा है, जो लाल पत्थर का बना हुआ है। 23 सीढ़ियां चढ़कर अंदर जाते हैं। दरवाजे में एक दालान भी है। मकबरे का नाम तिकोनिया कोट भी है। सड़क से मकबरे के दरवाजे तक पहुंचने के लिए एक पुल बना हुआ है। शायद फीरोज शाह तुगलक ने इसे बनवाया होगा। पूर्व में तुगलकाबाद का किला है, पश्चिम में पहाड़, दक्षिण में इमारत हजार सुतून और उत्तर से पानी आकर किले के नीचे कोसों तक भरा रहता है। उस वक्त यह मकबरा कटोरा-सा दिखाई देता था। चारों ओर पानी रहता था। अब सब सूख गया है। पुल के दोनों ओर कटारे की दीवार है और छायादार वृक्ष लगे हुए हैं।

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