चारो तरफ बनी दीवारें गिर गई, नामोंनिशा आज भी मौजूद

गुलामों के जमाने में किला रायपिथौरा के चारों ओर की बस्ती दूर-दूर तक फैल गई थी। कहते हैं कि मेवातियों से दिल्ली परेशान थी। अलाउद्दीन खिलजी जब गद्दी पर बैठा तो उसे इस लूट-मार से बड़ी परेशानी हुई। औरतें तक सुरक्षित न थीं। सरेआम लूट हुआ करती थी और सूरज डूबने से पहले शहर के दरवाजे बंद हो जाते थे। इस बादशाह ने मेवातियों को ठीक किया। फिर मुगलों ने शहर लूटकर बरबाद कर डाला, तब अलाउद्दीन ने सीरी शहर बसाया और उसकी आबादी इतनी बढ़ी कि पिथौरा की दिल्ली, हौज रानी, टूटी सराय और खिड़की सब एक साथ मिल गए।

जब मोहम्मद तुगलक गद्दी पर बैठा तो इसने सोचा कि क्यों न सब शहरों को मिलाकर एक कर दिया जाए, जिससे मुगलों और मेवातियों की रोज की लूटमार से रक्षा हो सके, चुनांचे 1327 ई. में उसका यह इरादा पूरा हुआ। पुरानी दिल्ली और सीरी- दोनों की आबादियों को चारदीवारी खड़ी करके मिला दिया गया और उसका नाम जहांपनाह रखा गया। यह मुसलमानों की पांचवीं राजधानी थी।

उत्तर-पश्चिम की ओर की फसील करीब दो मील और उत्तर-दक्षिण व उत्तर-पूर्व की ओर की फसील सवा दो मील लंबी है। तीनों फसीलों की लंबाई पांच मील है। उत्तर-पूर्व की दीवार सीधी न थी, बल्कि टेढ़ी-मेढ़ी थी। वह गिर गई। पूर्वी दीवार सीधी थी, मगर वह भी गिर गई। दक्षिण की दीवार का कुछ भाग गिर गया, कुछ बाकी है। इस नए शहर जहांपनाह के पुरानी दिल्ली और सोरी को मिलाकर 13 दरवाजे थे। इन 13 में से 6 उत्तर-पश्चिम में थे, जिनमें से एक का नाम मैदान दरवाजा था, लेकिन यजदी ने इसका नाम हौज खास दरवाजा लिखा है, क्योंकि वह इस नाम के हौज की ओर खुलता था। बाकी दरवाजे दक्षिण तथा उत्तर की ओर थे, जिनमें से दो के नामों का पता चलता है।

एक हौज रानी दरवाजा था और दूसरा बुरका दरवाजा। इस चारदीवारी के अंदर एक इमारत ‘विजय मंडल’ नाम की थी। इस शहर के सात किले या 52 दरवाजे की एक कहावत है, जो इस प्रकार माने जाते हैं- (1) लाल कोट, (2) किला रायपिथौरा, (3) सीरी या किला अलाई, (4) तुगलकाबाद, (5) किला तुगलकाबाद, (6) आदिलाबाद, और (7) जहांपनाह। बावन दरवाजों की बिगत इस प्रकार है: लालकोट 3. किला रायपिथौरा 10, सीरी 7, जहांपनाह 13, तुगलकाबाद 13, किला तुगलकाबाद 3, आदिलाबाद व अन्य। कनिंघम ने किलोखड़ी और गयासपुर के दो किलों को मिलाकर 9 किले बताए।

इब्नबतूता ने जो तैमूर से 70 वर्ष पहले दिल्ली आया था. जहांपनाह की बाबत लिखा है- ‘दिल्ली एक बहुत बड़ा शहर है, जिसकी आबादी बेहदोहिसाब है। इस वक्त यह चार शहरों का समूह है- 1. असल दिल्ली, जो हिंदुओं की थी और जिसे 1199 ई. में जीता गया था. 2. सीरी, जिसे दारुल खिलाफत भी कहते हैं, 3. तुगलकाबाद, जिसे सुलतान तुगलक ने बसाया, और 4. जहांपनाह, जिसे उस वक्त के बादशाह मोहम्मद तुगलक की रिहाइश के लिए खास नमूने का बनाया गया था। मोहम्मद तुगलक ने इसे बनाया और उसकी इच्छा थी कि चारों शहरों को एक ही दीवार से जोड़ दें। उसने इसका एक भाग तो बनाया, मगर उस पर इस कदर खर्च आया कि उसे इसका इरादा छोड़ना पड़ा। इस दीवार का सानी नहीं है। यह ग्यारह फुट मोटी है। तैमूर ने इस दीवार की बाबत यों लिखा-

“मेरा दिल जब दिल्ली की आबादी की बरबादी से ऊब गया तो मैं शहरों का दौरा करने निकला। सीरी एक गोलाकार शहर है। इसकी बड़ी बड़ी इमारतें हैं। उनके चारों ओर किले की दीवारें हैं, जो पत्थर और ईंट की बनी हुई हैं और बड़ी मजबूत हैं। पुरानी दिल्ली (पृथ्वीराज की) में ऐसा ही मजबूत किला है, लेकिन वह सौरी के किले से बड़ा है। शहरपनाह गिर्द बनी हुई है, जो पत्थर और चूने की है। इसके एक हिस्से का नाम जहांपनाह है, जो शहर की आबादी के बीच में होकर गई है। जहांपनाह के तेरह दरवाजे हैं, सीरी के सात पुरानी दिल्ली के दस दरवाजे हैं, जिनमें से कुछ शहर के अंदर की तरफ खुलते हैं. कुछ बाहर की तरफ। जब मैं शहर को देखता देखता थक गया, तो मैं जामा मस्जिद में चला गया (यह मस्जिद कौन-सी थी. पता नहीं) जहां सैयद, उलेमा, शेख और दूसरे खास-खास मुसलमानों की मजलिस लगी हुई थी। मैंने उन सबको अपने सामने बुलाया, उन्हें तसल्ली दी और उनके साथ भद्रता का व्यवहार किया, उनको बहुत से तोहफे दिए और उनकी इज्जत अफजाई की। मैंने अपना एक अफसर इस काम के लिए नियत कर दिया कि वह शहर में उनके मोहल्ले की रक्षा करे और खतरे से उनको बचाए। तब मैं फिर घोड़े पर चढ़कर अपने मुकाम पर लौट आया।’

जहांपनाह के 13 दरवाजों में से छह पश्चिमी दीवार में थे और सात पूर्वी दीवार में लेकिन उनमें से एक ही का नाम बाकी है मैदान दरवाजा, जो पश्चिम में पुरानी ईदगाह के निकट है। शेरशाह ने जब अपनी दिल्ली बसाई तो वह इसकी दीवार तोड़कर मसाला वहां ले गया।

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